नई दिल्ली। अपनी सरजमीं पर 1966 में मिली खिताबी जीत के अलावा इंग्लैंड के पास विश्व कप में इतिहास के नाम पर कुछ नहीं है और 1990 में अगर गाजा के आंसू मैदान पर नहीं गिरे होते तो शायद अंग्रेजों का फुटबाल प्रेम खत्म ही हो गया होता। हुड़दंग, दर्शकों के खराब बर्ताव और स्टेडियमों में घटती उनकी तादाद ने इंग्लैंड में फुटबाल को लगभग गर्त में पहुंचा दिया था।
फिर 1990 में इटली में विश्व कप हुआ जिसमें न्यूकासल के 23 बरस के मिडफील्डर पाल गेसकोइने उर्फ गाजा के आंसुओं ने देशवासियों में इस खूबसूरत खेल का जुनून फिर लौटाया। इंग्लैंड के सेमीफाइनल तक पहुंचने में गाजा की भूमिका अहम थी। ग्रुप चरण में औसत प्रदर्शन के बाद इंग्लैंड ने अंतिम-16 में बेल्जियम को हराया और क्वार्टर फाइनल में कैमरून को हराकर अंतिम चार में प्रवेश किया जहां सामना पश्चिम जर्मनी से था।
दोनों टीमों की टक्कर बराबरी की थी। इंग्लैंड ने दबदबा बनाये रखा लेकिन पहला गोल पश्चिम जर्मनी के लिये आंद्रियास ब्रेहमे ने किया। निर्धारित समय से दस मिनट पहले गैरी लिनाकेर ने इंग्लैंड के लिये बराबरी का गोल दागा। अतिरिक्त समय में गाजा को टूनार्मेंट का दूसरा पीला कार्ड दिखाया गया जिससे वह फूट फूट कर रो पड़े। इसके मायने थे कि इंग्लैंड फाइनल में पहुंचता तो वह नहीं खेल पाते। इंग्लैंड हालांकि पेनल्टी शूटआउट में हार गया। इस मैच से इंग्लैंड की रूचि फिर फुटबाल में जगी और कमाई भी खूब होने लगी। इंग्लैंड फुटबाल पर धनकुबरों की नजरें इनायत हुई और स्टेडियमों की दशा भी सुधरी। मैदान पर फिर दर्शन उमड़ने लगे।