- केपी सिंह
इंदौर। नगर निगम के एआरओ और बिल कलेक्टर घर-घर दुकान-दुकान दस्तक देते हैं कि आपका सालों से हजारों-लाखों रुपए बकाया है। ऐसे में निगम के जिम्मेदारों को बकायादार सेटिंग कर रवाना कर देते थे, जिसके चलते निगम का खजाना खाली ही रहता है। यहां से शुरू होता था भ्रष्टाचार। बेलदार असलम जैसे दलालों का गढ़ बनता था, लेकिन अब यह सब नहीं होगा।
अब सीधे निगम का पैसा बैंक अकाउंट में जमा हो जाएगा। इसके लिए न तो जिम्मेदारों को दरवाजा खटखटाना पड़ेगा और न ही बिल जनरेट करना पड़ेगा। क्योंकि हर महीने की तय तारीख में सीधे उपभोक्ता के बैंक खाते से निगम की राशि काट ली जाएगी। यह प्लान नगर निगम के कमिश्नर आशीष सिंह लेकर आए हैं। इनका मानना है कि इस व्यवस्था से निगम में काफी हद तक सुधार होगा और जनता को परेशानी भी नहीं होगी। इसीलिए शुरुआती दौर में पायलेट प्रोजेक्ट के तहत इसे लागू कर रहे हैं।
फायदा होने से निगम का फोकस दूसरे कामों पर लग सकेगा। यह व्यवस्था शहर को हाईटेक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी। क्योंकि बेहतर प्लानिंग से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है। खास बात यह है कि नगर निगम द्वारा जो नई व्यवस्था लागू की गई है उससे दूसरे विभाग भी सीख ले सकते हैं और व्यवस्था को लागू कर सकते हैं। फिर बात मप्र पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी की ही क्यों न करें। इसके अलावा भी अन्य विभाग भी इस व्यवस्था को लागू कर सकते हैं। क्योंकि जब पैसा सीधे अकाउंट से हर माह कट जाएगा तो जनता को दफ्तरों के चक्कर भी काटना नहीं पड़ेंगे और खजाने में पैसा भी समय पर आना शुरू हो जाएगा।
संपत्ति कर की राशि भी जाएगी सीधे खाते में
निगम मार्केट विभाग में 100 प्रतिशत सफलता मिलते ही दूसरे टैक्स की तरफ ध्यान दिया जाएगा। इसमें जलकार्य विभाग में भी पानी का पैसा सीधे बैंक खातों में जमा करवाया जाएगा। क्योंकि 200 रुपए लेने कोई अधिकारी घर-घर नहीं पहुंच पाता है। इस कारण जलकार्य की राशि बकाया होना शुरू हो जाती है। इसी तरह डोर टू डोर कचरा कलेक्शन की राशि भी सीधे खातों से जमा करने की प्लानिंग है। इन सबके बाद संपत्ति कर।
तब तक जीआईएस सर्वे भी पूरा हो जाएगा और रेट जोन व टैक्स के स्लैब की स्थिति भी स्पष्ट हो जाएगी। इसमें उपभोक्ताओं के घर जाकर फॉर्म भरवाया जाएगा, जिसके आधार पर पैसा सीधे निगम के खजाने में पहुंच जाएगा। इसमें बकायादारों का झंझट पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। आंकड़ों की मानें तो शहर में संपत्ति करदाता करीब 5.31 लाख है, जबकि जल करदाता 2.42 लाख है। इसमें संपत्ति कर, जलकार्य, ठोस अपशिष्ठ प्रबंधन के करीब 200 से 250 करोड़ बकाया है। इनपर सख्ती से राशि वसूली का जाए तो निगम की सारी परेशानी दूर हो सकती है।
बिल भरने में होती है थोड़ी लापरवाही
शहर की जनता टैक्स अदा करने में सबसे आगे है। इसमें 40 फीसदी लोग तो वो है जो एडवांस्ड टैक्स जमा कर देते हैं, जबकि 60 फीसदी लोग डिफॉल्ट की श्रेणी में शामिल हो जाते हैं। इसमें भी 40 फीसदी लोग वो रहते हैं जो पैसा और बिल साथ में रखते है। मतलब, ये लोग बिल अदा करने को तैयार रहते हैं, लेकिन किसी कारण से ये लोग व्यस्त हो जाते हैं और समय पर बिल का भुगतान नहीं कर पाते, इसलिए डिफॉल्टर की श्रेणी में आ जाते हैं, लेकिन नई व्यवस्था के तहत ये लोग भी नगर निगम के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने को तैयार है।
इससे साफ होता है कि 80 फीसदी करदाताओं निगम को पैसा अदा करने के लिए तैयार है, जबकि 20 फीसदी रहते है जो राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल करते है। इनके विरुद्ध सख्ती से निगम दंडात्मक कार्रवाई करते हुए संपत्तियों की जब्ती कुर्की कर नीलामी करें, ताकि ये लोग भी सुधर जाए। नए साल से 80 फीसदी लोगों के साथ शामिल होकर समय पर टैक्स का भुगतान करना कर देंगे।
ये मिलेगा फायदा
- निगम स्टाफ को जिम्मेदारी सौंप वसूली के लिए रवाना किया जाता है, जो बाले-बाले सेटिंग कर लेते थे।
- बार-बार बकायादार के चक्कर काटना नहीं पड़ेगा।
- लाखों रुपए बिलों की छपाई पर बर्बाद किए जाते हैं।
- दुकानों पर सालों का बकाया अब नहीं रह सकेगा।
- जल कर, संपत्ति कर और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की राशि के लिए घर-घर चक्कर नहीं लगाना पड़ेंगे।
मार्केट विभाग की दुकानों से शुरुआत
नगर निगम के मार्केट विभाग की दुकानों से इसकी शुरुआत कर दी है। क्योंकि निगम स्वामित्व की सैकड़ों दुकानों पर लाखों रुपए तक बकाया पहुंच गया है और जिम्मेदार भरने को तैयार नहीं है। इसमें से कुछ दुकानदारों ने तो जब से दुकान ली है तब से निगम को किराया ही नहीं दिया। ये पूरा मामले कमिश्नर सिंह को बताया गया तो उन्होंने सीधे बैंक से किराया काटने की व्यवस्था करने की प्लानिंग तैयार की और मैदान में अफसरों को दौड़ाया।
...और टैक्स पर भी लागू हो जाएगी व्यवस्था
अब सीधे बैंक खातों से निगम का पैसा जमा हो जाएगा। इसमें शुरुआत दौर में निगम स्वामित्व की दुकानों के किराय में यह व्यवस्था लागू कर रहे है। इससे अब दुकानों पर जाकर बकाया राशि लेने की जरूरत नहीं है। इन्हें सिर्फ एक फॉर्म भरवाना है, जिसमें हर माह किराये की राशि निगम खजाने में आॅटोमेटिक बैंक से कट जाएगी। निगम की करीब 3400 दुकानें हैं, जिसमें 700 दुकानों की राशि आॅनलाइन बैंक खाते में जमा हो रही है। हमारा टारगेट है कि सारी दुकानों का पैसा सीधे बैंक में जमा हो, इसलिए डेढ़ माह का समय दिया है। यह व्यवस्था ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, जलकार्य और संपत्ति कर पर भी लागू करेंगे।
-आशीष सिंह, कमिश्नर, नगर निगम