19 Apr 2024, 06:36:17 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

रफी मोहम्मद शेख इंदौर। यूनिवर्सिटी में पिछले साल राजस्व खाते में 12.19 करोड़ रुपए का घाटा बताया गया था, जो वास्तव में 5.55 करोड़ रुपए ही हुआ है। इस साल भी 13.68 करोड़ रुपए का घाटा बताया गया है, जो होना नहीं है।
 
पिछले सालों में परीक्षा से लेकर सेल्फ फाइनेंस विभागों सहित अन्य आय लगभग दोगुना हुई है, ऐसे में यह घाटा केवल कागजी है। जबकि यूनिवर्सिटी के पास 80.41 करोड़ रुपए मौजूद है और इस साल 41.49 करोड़ रुपए आय होने वाली है। वास्तव में शासन ने वेतन व भत्तों का अनुदान 1991 के बाद से आज तक एक रुपया भी नहीं बढ़ाया है, जो इस कागजी घाटे का मुख्य कारण है। यूनिवर्सिटी के 2014-15 के बजट में पूंजी और राजस्व खाते के मूल आय-व्यय में कुल 12,19,77,400 रुपए का घाटा बताया गया था। इसमें प्रारंभिक अनुमानित आय 70,99,86000 आंकी गई थी जबकि वास्तव में हुई 66,15,07,500। इसी प्रकार प्रारंभिक व्यय 83,19,63,400 का अनुमान लगाया गया था जो वास्तव में 71,70,74,000 रुपए हुआ। यानी यूनिवर्सिटी ने अपने खर्चों में करीब 12 करोड़ रुपए की कटौती की। उधर आय भी करीब चार करोड़ रुपए कम हुई। कुल मिलाकर यूनिवर्सिटी ने अनुमानित घाटे में 6.64 करोड़ रुपए की कमी की, जिससे यह 5,55,66,500 रुपए ही रह गया है।
 
 
इस साल भी होगी कमी
2015-16 के बजट में भी राजस्व और पूंजी खाते में अनुमानित आय 81.76 करोड़ और व्यय 95.45 करोड़ रु. आंकते हुए घाटा 13.68 करोड़ बताया गया है। जिस प्रकार पिछले साल का घाटा इसी के करीब था और कम हुआ तो ऐसी उम्मीद इस साल भी लगा सकते हैं। यह
घाटा करीब 7 करोड़ रु. रहेगा। पिछले सालों में लगातार यही स्थिति रही। वास्तव में अधिकतम की गणना करने के कारण ऐसा होता है। यूनिवर्सिटी के पास इस साल तक 80.41 करोड़ है और इस साल 41.49 करोड़ और आ जाएंगे। 13.68 करोड़ का घाटा इसी से पूरा किया जाएगा। यह घाटा नहीं होकर वास्तव में मूल राशि में से कम हो जाएगा। इस प्रकार पूरा घाटा कागजों पर ही है।
 
 
सालों से घाटे का बजट
यूनिवर्सिटी में सालों से घाटे का बजट प्रस्तुत किया जाता रहा है। उसकी सबसे बड़ी आय परीक्षा से होती है। दो साल पहले तक यूनिवर्सिटी में वार्षिक परीक्षा सिस्टम में साल में एकही बार परीक्षा होने से उसे एक ही बार आय होती थी लेकिन अब सेमेस्टर सिस्टम है। इसमें दो बार परीक्षा होने से यूनिवर्सिटी को दो बार आय होती है फिर भी घाटा का गणित वही है। एफिलिएशन फीस से लेकर कॉलेज दोगुना हुए, जिनसे भी आय बढ़ी है।
 
 
एफडी बढ़ रही फिर भी..
यूनिवर्सिटी की आय का एक और प्रमुख स्रोत उसके सेल्फ फाइनेंस डिपार्टमेंट हैं। इनसे होने वाली आय हर साल बढ़ रही है और करोड़ों रुपए फिक्स डिपाजिट हो रहे हैं। इस बार लोन के मद में 91.41 करोड़ रुपए आय और 107.94 करोड़ रुपए खर्च प्रस्तावित किया गया है। इसमें सेल्फ फाइनेंस के आय-व्यय भी शामिल हैं। यूनिवर्सिटी इसकी पूर्ति पिछले सालों में सेल्फ फाइनेंस विभागों की बचत से करने की बात कह रही है जबकि वर्तमान आय से ही यह हो सकता है।
 
 
1991 से नहीं बढ़ा शासन का अनुदान
प्रदेश की प्रत्येक यूनिवर्सिटी को शासन हर साल अनुदान देता है। शासन ने 1991 के बाद इस अनुदान में कोई बढ़ोतरी नहीं की, जबकि इन 23 सालों में यूनिवर्सिटी में कर्मचारियों की संख्या से लेकर अन्य खर्च लगभग तीन गुना हो चुके हैं। कर्मचारियों को दिए गए छठे वेतनमान का अतिरिक्त खर्च भी यूनिवर्सिटी उठा रही है तो ग्रेच्युटी का भुगतान भी उसे अपने स्रोतों से करना पड़ रहा है। ऐसी ही स्थिति दैनिक वेतनभोगी व अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति पर है। देखा जाए तो यूनिवर्सिटी को शासन से करीब 200 करोड़ रुपए लेना बाकी है।
 

 

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