- संतोष शितोले
इंदौर। नोटबंदी व जीएसटी के चलते प्रदेश के भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों ने भले ही रिश्वत लेने का तरीका बदल लिया हो या अवैध कमाई का कोई दूसरा रास्ता निकाल लिया हो लेकिन नकदी को लेकर अब उनकी हालत भी खराब होती जा रही है। एक समय में अपने फ्लैट-बंगलों में लाखों रुपए नकदी रखने वाले इन भ्रष्ट अधिकारियों के घरों की तिजोरियों व बैंक लॉकर्स में नोटों की गड्डियां अब नहीं है। इसका खुलासा नोटबंदी के बाद इन 10 महीनों में हुआ।
लोकायुक्त पुलिस ने प्रदेश में जहां भी छापामार कार्रवाई की, वहां कोई बड़ी नकदी राशि नहीं मिली। खास बात यह कि भ्रष्ट अधिकारी खुद यह कहने से नहीं चूकते कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसी घेराबंदी की है कि घर से लक्ष्मी (नकदी) ही गायब हो गई है। हाल ही में लोकायुक्त पुलिस इंदौर ने टीएंडसीपी की डिप्टी डायेक्टर अनीता कुरोठे के निवास पर छापा मारा। अब तक उनके पास 30 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति का पता चला है।
दरअसल, लोकायुक्त को जो सूत्र मिले तो उसमें करोड़ों की संपत्ति के तो थे ही, इसके अलावा तगड़ी नकदी राशि की भी सूचना थी। मामले में चार ठिकानों पर 15 घंटे की छानबीन के बाद कुरोठे के निवास से केवल 1.26 लाख रुपए ही मिले। इसके पूर्व 11 जुलाई को लोकायुक्त ने मध्य प्रदेश ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण (एमपीआरआरडीए) इंदौर के महाप्रबंधक अशोक चावला को दो लाख की रिश्वत लेते पकड़ाया। अगले दिन उनके घर मारे गए छापे में तीन करोड़ की संपत्ति मिली लेकिन नकदी करीब तीन लाख ही मिले। इंदौर के अलावा प्रदेश में ऐसी ही स्थिति भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर, सागर, उज्जैन, रीवा व अन्य संभागों की है जहां अधिकारियों की घर की तिजोरियों में अब तगड़ी नकदी नहीं है। यही कारण है प्रारंभिक सूत्र नहीं मिलने से छापमारी की कार्रवाई भी कम हो गई है। नोटबंदी के बाद इंदौर संभाग में छापामारी की यह दूसरी कार्रवाई थी।
...और इसके पूर्व मालामाल की स्थिति
इसके पूर्व एक दशक में लोकायुक्त छापामारी की स्थिति ऐसी थी कि भ्रष्ट अधिकारियों के पास करोड़ों की संपत्ति के साथ नकदी भी भारी मात्रा में मिलती थी। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नोटबंदी के बाद लोकायुक्त पुलिस के पास पिछले 10 साल के दौरान मारे गए 30 छापों में 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोटों की शक्ल में जब्त करीब 1.61 करोड़ रुपए थे। चूंकि 8 नवंबर 2016 की नोटबंदी की घोषणा के चलते अब वैध मुद्रा नहीं रह गए थे इसलिए हाईकोर्ट के एक आदेश के तहत इनकी एफडी कराने के लिए उक्त नकदी को सरकारी कोषालय से निकालकर एक राष्ट्रीयकृत बैंक में अलग-अलग एफडी कराई गई। यानी औसतन हर छापे की कार्रवाई में 5.50 लाख रुपए से ज्यादा जब्त किए गए।
छापामार कार्रवाई में खास नकदी नहीं
इसे नोटबंदी का असर ही कहा जा सकता है कि शुरुआती पांच महीनों में कुछ खास सूत्र नहीं मिले। इस साल इंदौर संभाग में दो छापामार कार्रवाई में मात्र 3.26 लाख रुपए जब्त हुए हैं जबकि संपत्ति कई गुना ज्यादा मिली है।
दिलीप सोनी, एसपी (लोकायुक्त)
ये हैं कारण
- अवैध कमाई से अर्जित 1000 रु. व 500 रु. के नोटों को नोटबंदी के कारण ठिकाने लगाना पड़ा।
- भ्रष्टों ने बीच के रास्ते तलाशकर इन्हें बैंकों में भर दिया या कहीं और खर्च कर दिया।
- इधर, इसका असर रिश्वतखोरी पर भी पड़ा। रिश्वत देने वाले को भी बड़ी राशि देने की फजीहत हो गई।
- अगर भारी राशि हासिल कर भी ली तो उसे घर में रखना ठीक नहीं समझा।
- वर्तमान में 100 रुपए के बाद 500 और 2000 रुपए का नोट है। ऐसे में खर्चे की स्थिति भी अलग है इसलिए नकदी नहीं रह पाते।
नकदी के बदले मांगा सोना
नकदी नहीं होने का असर यह है कि जून 2017 में लोकायुक्त पुलिस ने सतना के निगमायुक्त सुरेंद्र कथुरिया को 22 लाख रुपए की रिश्वत लेते पकड़ा था। इसमें 12 लाख नकद थे जबकि 10 लाख के सोने के बिस्किट थे। उन्होंने 50 लाख रुपए की रिश्वत मांगी थी। इसमें 40 लाख नकद मांगे थे लेकिन संबंधित से इतनी नकदी का इंतजाम नहीं हुआ।