- शैलेंद्र वर्मा
इंदौर। शिक्षा के अधिकार कानून का मजाक कभी निजी स्कूल संचालक बनाते हैं तो कभी स्कूल शिक्षा विभाग। इस वर्ष भी कुछ ऐसा ही हुआ है। आरटीई प्रवेश के तहत पहले दौर की लॉटरी निकालने में ही शिक्षा विभाग की लेटलतीफी सामने आ चुकी है। इस गलती को सुधारने की बजाय स्कूल शिक्षा विभाग अब दूसरे दौर की लॉटरी निकालना ही भूल गया, जिससे हजारों छात्रों को प्रवेश नहीं मिल पाया। पिछले वर्ष दूसरे दौर की लॉटरी निकाली गई थी। इस बार दूसरे दौर की लॉटरी नहीं खुल पाई, जिससे इंदौर जिले के 1425 पात्र बच्चों को निजी स्कूलों की महंगी शिक्षा मुफ्त में नहीं मिल पाएगी।
करोड़ों की फीस वसूली
प्रदेश सरकार अभी भी आरटीई के तहत हजारों बच्चों को निजी स्कूलों में प्रवेश दिलवाने के लक्ष्य से कोसों दूर है। आंकड़ों पर नजर डालें तो इंदौर जिले के 1375 स्कूलों में कुल 39 हजार 929 आरक्षित सीटें हैं। इसके लिए कुल 16,983 आवेदन आए। आवेदनों के सत्यापन होने के बाद 9200 बच्चों को आरटीई के तहत प्रवेश देने का पात्र घोषित किया गया। हालांकि इनमें से 7775 बच्चों ने ही आरटीई के तहत प्रवेश लिया। 1425 बच्चों को प्रवेश ही नहीं मिल पाया।
इस बीच, स्कूल शिक्षा विभाग दूसरे राउंड की लॉटरी निकालने की भूल कर बैठा। इस कारण हजारों बच्चों को पात्र होने के बाद भी अच्छे स्कूलों में प्रवेश नहीं मिल पाया। सरकारी नुमाइंदों की लापरवाही से इन बच्चों का भविष्य तो खराब हुआ ही, लेकिन इसका सीधा लाभ निजी स्कूलों को हुआ है। निजी स्कूलों द्वारा आरक्षित सीटों पर सामान्य बच्चों को प्रवेश देकर करोड़ों रुपए की मोटी फीस वसूली गई।