रफी मोहम्मद शेख-
इंदौर। दो साल बाद हो रही एमफिल और पीएचडी की एंट्रेंस परीक्षा अब और भी ज्यादा कठिन हो गई है। अब तक पीएचडी परीक्षा में सिलेक्शन के बाद रिसर्च मेथडोलॉजी पढ़ना पड़ता था, लेकिन अब एंट्रेंस परीक्षा में ही इसकी पढ़ाई के बिना इंट्री नहीं मिलेगी। नए नियमों के अंतर्गत एंट्रेंस परीक्षा में इसका एक अलग पेपर होगा। इसके अतिरिक्त अब कोर्स वर्क में अपने विषय का स्पेशलाइज्ड पेपर भी अलग से होगा।
देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी में 10 अगस्त को होने वाली एमफिल व पीएचडी की परीक्षा पास करना अब आसान नहीं रह जाएगा। इस बार पीएचडी करने के लिए होने वाली एंट्रेंस परीक्षा में एक नहीं, दो पेपर होंगे। इसमें एक पेपर रिसर्च मेथडोलॉजी का होगा। पहली बार यह पेपर एंट्रेंस परीक्षा में शामिल किया गया है।
सभी प्रश्न हल करना जरूरी
पीएचडी परीक्षा को-ऑर्डिनेटर डॉ. वीबी गुप्ता के अनुसार पीएचडी या एमफिल की रिसर्च में होने वाले पहले पेपर में 50 ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न होंगे, ये सारे प्रश्न हल करना जरूरी होंगे। इस पेपर का उद्देश्य विद्यार्थी का रिसर्च एप्टीट्यूड टेस्ट करना है। इसके साथ ही रीजनिंग एबिलिटी, डाटा इंटरप्रिटेशन और क्वांटीटेटिव एप्टीट्यूड के प्रश्न भी रिसर्च के संबंध में होंगे। यह पेपर सबके लिए कॉमन होगा, जबकि दूसरा पेपर सब्जेक्टिव होगा, जो प्रत्येक विषय के लिए अलग-अलग होगा। यह पेपर भी 50 प्रश्नों का होगा, जिसके लिए 50 नंबर तय हैं। इसमें भी सभी प्रश्न हल करना होंगे।
वास्तव में रिसर्चर ही
यह परिवर्तन यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन के नियमों में संशोधन के कारण किया गया है। यूजीसी की मंशा साफ है कि एमफिल और पीएचडी में केवल वही विद्यार्थी एडमिशन लें जो इसमें एक्सपर्ट हैं और वास्तव में रिसर्च करना चाहते हैं। अभी रिसर्च मेथडोलॉजी को एंट्रेंस परीक्षा में सिलेक्ट होने के बाद कोर्स वर्क में पढ़ाया जाता है। कोर्स वर्क के पहले इसे पढ़ाने या पढ़ने की कोई व्यवस्था नहीं थी। इससे पहले पीएचडी के विद्यार्थियों को खुद ही यह समझकर कर रिसर्च करना पड़ता था।
50 प्रतिशत मार्क्स लाना जरूरी
अब विद्यार्थियों के सामने समस्या है कि उन्हें एंट्रेंस परीक्षा के पहले ही इसकी पढ़ाई करना पड़ेगी। अधिकांश विद्यार्थी इससे अनजान रहते हैं। पीएचडी में पास होने के लिए एंट्रेंस परीक्षा में कम से कम 50 प्रतिशत मार्क्स लाना भी जरूरी कर दिया गया है। यानी 50 प्रतिशत मार्क्स लाने के बाद मेरिट के आधार पर इसमें सिलेक्शन होगा। इस बार सीटों की संख्या कम होने से कॉम्पिटिशन बढ़ेगा। उधर, साइंस में रिसर्च मेथडोलॉजी न होने के कारण यूनिवर्सिटी ने इस पेपर को रिसर्च एप्टीट्यूड का नाम दिया है, ताकि कोई विवाद नहीं हो। साइंस की रिसर्च में यह विषय नहीं होता है।
स्पेशलाइज्ड पेपर भी जरूरी
अब सिलेक्शन के बाद होने वाले कोर्स वर्क को भी कठिन बना दिया गया है। इसमें रिसर्च मेथडोलॉजी और कम्प्यूटर एप्लीकेशन के पेपर के साथ अब रिसर्चर जिस विषय में एमफिल या पीएचडी कर रहा है, उसका स्पेशलाइज्ड पेपर भी पढ़ना होगा, यह भी पहली बार ही होगा।
इसके पीछे उद्देश्य विद्यार्थी को संबंधित विषय का वृहद ज्ञान देना है। अब सभी डिपार्टमेंट ने अपने-अपने विषय का सिलेबस इसके लिए तय कर लिया है, जो इस बार के कोर्स वर्क में लागू किया जाएगा।
ये बदलाव आए हैं लगातार
- एंट्रेंस टेस्ट में रिसर्च मेथडोलॉजी का पेपर होगा।
- पीएचडी में एडमिशन के लिए 50 प्रतिशत नंबर लाना जरूरी।
- कोर्स वर्क में सब्जेक्ट का स्पेशलाइज्ड पेपर।
- कोर्स वर्क में पास होने के लिए न्यूनतम नंबर की सीमा।
- पीएचडी रिसर्चर से लेकर गाइड तक का डाटा ऑनलाइन।
- डाटा की चोरी और कॉपी रोकने के लिए पीएचडी की जांच ऑनलाइन सॉफ्टवेयर द्वारा।
- पीएचडी रिसर्च के दौरान नेशनल कॉन्फ्रेंस या सेमिनार में पेपर प्रेजेंटेशन जरूरी।
- पीएचडी ओपन वाइवा के पहले प्री-वाइवा।
- वाइवा में अब यूजीसी के प्रतिनिधि को बैठाने की तैयारी, ऑनलाइन व्यवस्था।
बार-बार बदलाव
यूजीसी एमफिल और पीएचडी रिसर्च करने वालों के लिए लगातार फोकस कर रही है। इसके लिए बार-बार बदलाव किए जा रहे हैं, ताकि यह पार्टटाइम न होकर वास्तविक रिसर्च के रूप में सामने आए।
- डॉ. गणेश कावड़िया
चेयरमैन, पीएचडी कमेटी