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इस मोबाइल ने जनता के मन को पढ़ा और बाजार जीत लिया

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jul 16 2017 2:57PM | Updated Date: Jul 16 2017 2:57PM
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पंकज मुकाती, स्टेट एडिटर दैनिक दबंग दुनिया

मोबाइल हैंडसेट के बाजार में नोकिया का कब्जा और उसका पीछा करता सैमसंग। इस दौर मैं ब्लैकबेरी, एलजी, सोनी जैसी कम्पनीज भी पीछे जा रही थी। मुकाबला सिर्फ नोकिया और सैमसंग के बीच रह गया। किसी भी मोबाइल शॉप पर नोकिया के अलावा कोई और हैंडसेट के लिए ग्राहक को राजी कर लेना
 
किसी भी सेल्समैन के लिए पसीने ला देने वाला था। आज बहुत सारी कंपनियां बाजार में हैं, पर कुछ साल पहले तक नोकिया, सैमसंग के अलावा जो भी मोबाइल बाजार में थे, वे सब चाइना मेड कहे जाते थे। लोगों के लिए भरोसा सिर्फ नोकिया और सैमसंग ही थे। ऐसे दौर में बाजार में जगह बनाना बेहद कठिन था। उस चुनौती के दौर में एक पूरी तरह से इंडियन मोबाइल माइक्रोमैक्स भारत में आया। इस मोबाइल कंपनी ने रिसर्च से ज्यादा प्रैक्टिकल दिक्कतों को समझा। इनका सूत्र -जो जनता की जरुरत वही बनाएंगे। चार युवाओं ने एक ऐसा मोबाइल पेश किया जिसने बाजार को बदल दिया। चेन्नै का नोकिया का कारखाना आज बंद हो गया है, वो नए ढंग से स्मार्ट मोबाइल के बाजार में आने की तैयारी में है। जबकि इन युवाओं के जूनून और रणनीति ने एक ऐसा कारखाना खड़ा कर दिया जो आज सालाना 20 लाख से जयादा हैंडसेट तैयार कर रहा है। सैमसंग के बाद भारतीय बाजार में दूसरा सबसे ज्यादा पसंदीदा मोबाइल हैंडसेट है, माइक्रोमैक्स। 2008 में धंधे में उतरकर माइक्रोमैक्स आज दुनिया के टॉप टेन हैंडसेट बेचने वाली कंपनी है। ये मोबाइल बाजार में भारत की पहली ऐसी कंपनी है जो हैंडसेट बाजार में 14 फीसदी और स्मार्टफोन में 18 फीसदी हिस्सेदारी रखता है। 2012 में आए कंपनी ने कैनवास फोन ने पूरे बाजार की रंगत ही बदल दी। इस कैनवास से माइक्रोमैक्स ने सफलता की कहानी रच दी। कैनवास इस टेक्नालॉजी वाले दूसरे हैंडसेट सी आधी कीमत में उपलब्ध था। पर जैसा हमारी आदत है शुरूआत में सस्ता होने के कारण कई लोग इसे खरीदने से बचते थे। वे इसे चीनी प्रोडक्ट की तरह ही समझते थे, पर आज हर कंपनी में और हर वर्ग की पसंद है माइक्रोमैक्स। सन 2000 में कंपनी सॉफ्टवेर डेवेलपमेंट की काम से शुरू हुई। 
 
गुड़गांव में कंपनी का हेड आॅफिस है। इसे शुरू किया चार अलग-अलग पढाई करके आये युवाओं, राहुल शर्मा, विकास जैन सुमित अरोड़ा, राजेश अग्रवाल ने। इनका मकसद एक ही रहा-आम आदमी की जरुरत समझो और उसे कम कीमत में पूरा करो। यही कारण है कि सैमसंग और नोकिया की बड़ी भारी रीसर्च टीम जो न पकड़ सकी, वो इस चौकड़ी ने पकड़ ली। बाकि कंपनी बाजार को पढ़ती रही, माइक्रोमैक्स ने ग्राहक के मन को पढ़ा। वह दौर था जब मोबाइल ऑपरेटर एक पैसा प्रति सेकंड जैसे ऑफर लाए ज्यादा बात, रात में फ्री कालिंग जैसी सुविधा दे रही थी। पर इतनी बात करने की लिए लंबे समय चलने वाली बैटरी चाहिए। इसी को लक्ष्य मानते हुए माइक्रोमैक्स ने लंबी चलने वाली बैटरी बनाई। कुछ बैटरी में तो एक महीने तक के टॉक टाइम का वादा था। वाजिब कीमत में ये बड़ा काम है। 2008 में आई कंपनी आज 12000 करोड़ का कारोबार करती है, करीब 60 मॉडल हैं। देश के एक लाख पच्चीस हजार आउटलेट से इसकी बिक्री होती है। कंपनी ने सिर्फ लंबी बैटरी ही नहीं ड्यूल सिम हैंडसेट के साथ रिमोट कंट्रोल मोबाइल फोन भी बाजार में उतारा। कंपनी के सीईओ 50 साल के विनीत तनेजा है।  विनीत पहले नोकिया और सैमसंग में रह चुके है। उनका कहना है, हम लंबी रिसर्च में नहीं पढ़ते, बस ये समझते हैं कि ग्राहक क्या चाहता है। इसीलिए माइक्रोमैक्स के बारे में कहा जाता है कि यहां टेक्नोलॉजी का लोकतंत्र है, जो जनता पसंद करती है।
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