दबंग दुनिया के स्टेट ऐडिटर पंकज मुकाती की टिप्पणी
किसान आंदोलन की हिंसा में डोडा तस्कर शामिल थे। करीब 25 दिन की पड़ताल के बाद इसे स्वीकारा मंदसौर के पुलिस अधीक्षक ने। ये किसानों को बेदाग साबित करने के साथ-साथ सच्ची पत्रकारिता की भी जीत है। इससे पत्रकारिता को ताकत मिलेगी। दबंग दुनिया ने 10 जून को इस खबर को प्रकाशित किया था। हम अकेले अखबार थे जिसने ये सच लिखा। ये सच यूं ही नहीं लिखा गया। इसके पीछे पुष्ट कारण थे। आखिर कैसे एक संभाग तक सीमित आंदोलन सीधे मंदसौर पहुंच गया। खास बात ये कि पिपलियामंडी में ही इतनी उग्रता। क्यों ? बस इसी क्यों को हमने पकड़ा और दो रिपोर्टर वहां भेजे। उनकी पड़ताल से ये चौंकाने वाला सच सामने आया। इसे छापने का निर्णय आसान नहीं था। उस वक्त पूरा प्रदेश और मीडिया इस आंदोलन की हिंसा को किसानों का गुस्सा मान रहा था। ऐसे वक्त में इस खबर को छापना पूरी लाइन के उलट चलने के समान था। इसको छापने के फायदे से ज्यादा तात्कालिक नुकसान सामने दिख रहे थे। पहला, लाखों किसानों को अखबार से दूर कर देना, दूसरा अखबार पर शिवराज सरकार के खुशामदी का ठप्पा लगना। दोनों नुकसान की चुनौतियों को हमने स्वीकारा।
ये सब लिखने का मकसद खुद का महिमामंडन या दूसरों को कमतर दिखाना नहीं है। ये लिखना हमारी जरूरत है, क्योंकि इस खबर के बाद हमारी पत्रकारिता पर सवाल उठे। तमाम दूसरे मीडिया हाउस के पत्रकारों ने इसे एक मनगढंÞत और आंदोलन को भटकाने वाली खबर बताया। बिना पड़ताल के हम खारिज कर दिए गए, क्योंकि आज की तारीख में सच्ची पत्रकारिता, बड़ी प्रसार संख्या और पूंजी की ताकत से दबा दी जाती है। पूंजी की ताकत वाले अखबार समूह सच्ची खबरों वालों को खत्म करने की कोशिश करते हैं। पत्रकारिता के बाहर ये नया प्रयोग है। इसमें तमाम मीडिया हाउस मिलकर नए और सच्चे का एनकाउंटर करने में लगे रहते हैं। इन समूहों को ये दम्भ है कि ‘जो हम छापें वही खबर’।
खबरों का चूक जाना, अखबारी दुनिया में पहली और आखिरी बार नहीं है। चूक को सुधारकर उसके फॉलोअप करने के बजाय उसे गलत साबित करने की परंपरा बेहद गलत है।
ये पहला मामला नहीं है जिसमें ऐसा हुआ है। पिछले सप्ताह इंदौर के एमवाय हॉस्पिटल में हुई मौतों पर भी दबंग ने सार्थक पत्रकारिता से खुद को अलग साबित किया। लगभग सभी अखबारों ने बिकाऊ खबर के नजरिये से खबरें लिखी। दबंग ने पहले ही दिन पड़ताली खबर से साबित किया कि एमवाय में हुई मौतें सामान्य है, और इसके पीछे एक सीनियर डॉक्टर की रंजिश और पेड न्यूज की गैंग है। कुछ रुपयों या किसी को लाभ पहुंचाने के लिए प्रायोजित खबरें गढ़ना और छापना, कहां कि पत्रकारिता है। इसे ही ‘न्यूज आॅन डिमांड’ कहा गया है। अस्पताल वाले मामले में भी दबंग के अलावा किसी ने सही खबर नहीं छापी। क्यों? ये सवाल हमेशा बना रहेगा?