अशोक शर्मा-
इंदौर। एमवाय अस्पताल के कायाकल्प के नाम पर 35 करोड़ रुपए खर्च कर मरीजों के लिए अत्याधुनिक सुविधाएं शुरू की गई हैं, वहीं इससे सटा शासकीय कैंसर अस्पताल इन दिनों बदहाली का शिकार है। तीन दिन से अस्पताल की ड्रेनेज लाइन चोक होने से यहां गंदगी का साम्राज्य है। अस्पताल के एक बड़े चैंबर से गंदगी ओवर फ्लो होकर ओपीडी परिसर के बाहर व रहवासी क्षेत्र में पहुंच गई है। आलम ये है कि मलयुक्त पानी के कारण समीप स्थित ओपीडी तथा यहीं अनेक संस्थाओं द्वारा शुरू की गई भोजन व्यवस्था में भी गंदगी फैल रही है। इससे लोगों का भोजन करना दूभर हो रहा है तथा भिनभिनाती मक्खियों से भी बीमारी फैलने की आशंका बढ़ रही है।
कैंसर अस्पताल के पास मरीजों को कई सामाजिक संस्थाएं रोजाना बैठाकर नि:शुल्क भोजन कराती हैं। अभी तक ये व्यवस्था सुचारू चल रही थी, लेकिन पिछले हफ्ते अचानक बिगड़ गई। दरअसल, कैंसर अस्पताल के ड्रेनेज चोक होने की समस्या चार दशक पुरानी है। हर बार यहां रहवासियों द्वारा शिकायत करने के बाद भी समस्या जस की तस है। तमाम शिकायतों के बाद बमुश्किल यदा-कदा लाइन सुधारी जाती है, लेकिन इसका स्थायी निदान नहीं होता। नतीजतन, अस्पताल परिसर में गंदगी बनी रहती है और अब बाहर भी लोगों को परेशानी उठाना पड़ रही है। परिसर में और बाहर बैठने वाले मरीजों के परिजनों के लिए गंदगी के कारण यहां खड़े रहना भी दूभर हो गया है।
कमिश्नर ने भी देखी गंदगी
अस्पताल अधीक्षक को कई बार शिकायत के बाद भी समस्या का हल नहीं निकला। गंदगी बहकर नई ओपीडी तक आ गई है और उसी से होकर लोग गंदे पैरों से ओपीडी के अंदर जाते हैं। इससे बीमारी फैलने की आशंका है। शनिवार को कमिश्नर संजय दुबे ने भी दौरे के दौरान वस्तुस्थिति जानी। उन्होंने कहा अभी चुनौतियां बहुत हैं, फिर भी इस समस्या से निगम अफसरों को अवगत कराया जाएगा। जबकि एमवाय अस्पताल परिसर की सारी व्यवस्थाएं पीडब्ल्यूडी के अधीन हैं, ऐसे में निगम इससे दूरी बनाए हुए है। एमवायएच दो पाटों (निगम-पीडब्ल्युडी) के बीच पिस रहा है। सब सुविधाएं मुहैया होने के बाद भी प्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल बीमारू व्यवस्था का शिकार हो रहा है।
लील लिया था प्राचीन कुआं
कैंसर अस्पताल की ड्रेनेज लाइन चोक होने का मामला सालों पुराना है। इस अस्पताल के पास प्राचीन कुआं था। इसके पानी से ही अस्पताल, केईएच कंपाउंड और सीआरपी लाइन क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति होती थी। सालों तक इस कुएं के पानी ने मरीजों और परिजन की प्यास बुझाई, अस्पताल में भी उक्त पानी का उपयोग हुआ। 1981 में ड्रेनेज लाइन चोक होने के दौरान अस्पताल व पीडब्ल्यूडी के अफसरों ने ध्यान नहीं दिया।
राजबाड़े का मलबा भर दिया
1984 में इंदिरा गांधी हत्याकांड के दौरान सिक्ख विरोधी दंगा हुआ। इस दौरान दुकानों में आग लगने से राजबाड़ा भी चपेट में आ गया। बाद में इसका अधिकांश मलबा इस कुएं में भरकर इसे पाट दिया गया। यहां तक कि तब लोगों ने तोड़फोड़, शोरूम और होटलों की सामग्री भी इसी कुएं में भर दी। तब कुएं को समतल कर व ड्रेनेज लाइन सुधारकर अस्थायी हल निकाल लिया गया था, लेकिन प्राचीन कुएं की सुविधा अस्पताल व रहवासियों के लिए हमेशा के लिए खत्म हो गई।
...तो फिर जिंदा हो सकता है
पांच साल पहले शहर में जलसंकट के दौरान कुओं व बावड़ियों का जीर्णोद्धार शुरू हुआ तो उस कुएं को फिर से बनाने के लिए काम शुरू करने की योजना बनी। इसके तहत मलबा निकाला जाना था, लेकिन तब भी ड्रेनेज लाइन चोक होने से नगर निगम को निर्णय बदलना पड़ा। रहवासियों का कहना है कि ड्रेनेज लाइन चोक होने की समस्या का स्थायी हल निकाल दिया जाए तो फिर कुएं को जिंदा किया जा सकता है।