25 Apr 2024, 12:10:21 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

सुनील सिंह-
रायपुर। अब तक सुनते पढ़ते आए थे कि सरकार को सबसे ज्यादा चूना लगाने का काम उसके भ्रष्ट अधिकारी-कर्मचारी ही लगाते हैं। लेकिन अगर कोई आपसे कहे कि इनके अलावा कांव-कांव करने वाले कौवे भी सरकार को चूना लगाने में जी-जान से जुटे हुए हैं तो आपको सुनकर आश्चर्य होगा, पर यह हकीकत है। यह भी नहीं है कि एक ही जगह पर वे प्रदेश के ज्यादातर इलाकों में ऐसा कर रहे हैं। लेकिन सरकार कौवे सबसे ज्यादा नुकसान बस्तर संभाग में कर रहे हैं।
 
दरअसल प्रदेश के करीब सभी संभागों में प्रदेश सरकार ने रेशम उद्योग को बढ़ावा देने के लिए रेशम उत्पादन का कार्य करवा रही है। इसकी देखरेख और उत्पादन के लिए रेशम विभाग की भी स्थापना की गई है। रेशम विभाग कच्चा माल को पैदाकर हथकरघा और बुनकरों के माध्यम से रेशम के कपड़े तैयार करवाता है। तैयार कपड़ों को प्रदेश के अलावा अन्य प्रदेशों में ब्रिक्री की जाती है।
 
जिससे प्रदेश सरकार को राजस्व आय होती है। वहीं अब रेशम उत्पादन में कौवे बाधक बन रहे हैं। कौवे रेशम विभाग द्वारा रेशम उत्पादन के लिए पाले जाने वाले कीड़े जिसे इल्ली कहा जाता है, को ही खा ले रहे हैं। इससे हो यह रहा कि जब कीड़े ही नहीं रहेगें तो रेशम का उत्पादन कैसे होगा। जब उत्पादन ही नहीं होगा तो राजस्व कैसे आएगा। इसको लेकर विभागीय अधिकारी पूरी तरह से परेशान हैं। कौवे को रोकने के लिए भी विभाग के पास पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। 
 
 - सबसे ज्यादा नुकसान बस्तर में 
बस्तर क्षेत्र जंगल ज्यादा है। ऐसे में वहां पर कौवों की संख्या ज्यादा है। जिसका खामियाजा बस्तर क्षेत्र में रेशम विभाग द्वारा स्थापित रेशम उत्पादन केंद्रों को ही उठाना पड़ रहा है। प्रदेश के बाकी इलाकों में सरगुजा संभाग को छोड़ दे तो ज्यादातर इलाके मैदानी हैं। वहां पर कौवों की इतनी संख्या नहीं है। इसलिए प्रदेश के अन्य इलाकों में इतना नुकसान नहीं है। 
 
- यहीं होता है सबसे ज्यादा उत्पादन 
रेशम का सबसे ज्यादा उत्पादन बस्तर संभाग में होता है। इसके बाद सरगुजा और बिलासपुर संभाग आते हैं। बस्तर में रेशम से कपड़े तैयार करने के लिए हथकरघा विभाग ने बुनकर कारखाना भी बनाया है।  कच्चा रेशम बनाने के लिए रेशम के कीटों का पालन सेरीकल्चर या रेशम कीट पालन कहलाता है।
 
- रचा-बसा है संस्कृति में रेशम
अगर अपने देश की बात करें तो रेशम भारत में रचा बसा है। हजारों वर्षों से यह भारतीय संस्कृति और  परंपरा का अंग बन चुका है। कोई भी अनुष्ठान किसी न किसी रूप में रेशम के उपयोग के बिना पूरा नहीं माना जाता। रेशम उत्पादन में भारत विश्व में चीन के बाद दूसरे नंबर पर आता है। 
 
होते हैं 5 तरह के रेशम : रेशम का बड़ा उपभोक्ता प्रदेशों में छत्तीसगढ़ का नाम शामिल है। वहीं देश में पांच किस्म के रेशम- मलबरी, टसर, ओक टसर, एरि और मूंगा सिल्क का उत्पादन होता है। वहीं प्रदेश में गैर शहतूत रेशम का उत्पादन किया जाता है। 

ऐसे बनता है : रेशम, रसायन की भाषा में रेशमकीट के रूप में विख्यात इल्ली द्वारा निकाले जाने वाले एक प्रोटीन से बना होता है। यह रेशमकीट विशेष खाद्य पौधों पर पलते हैं। रेशमकीट का जीवन-चक्र 4 चरणों का होता है, अण्डा, इल्ली, प्यूपा तथा शलभ।  व्यक्ति रेशम प्राप्त करने के लिए इसके जीवन-चक्र में कोसों के चरण पर अवरोध डालता है जिससे व्यावसायिक महत्व का अटूट तन्तु निकाला जाता है तथा इसका इस्तेमाल वस्त्र की बुनाई में किया जाता है।
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