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क्लिनिक और घर मंजूर, बना दिया तीस बेड का अस्पताल

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 27 2017 10:03AM | Updated Date: Jun 27 2017 12:59PM
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विनोद शर्मा-
इंदौर। पं. दीनदयाल उपाध्यायनगर के दो प्लॉट जोड़कर अस्पताल बनाने वाले डॉ. सुनील बारोड़ के कारनामे गजब हैं। जिन दो प्लॉटों को जोड़कर हॉस्पिटल को बनाया गया है उनके नक्शे में कुल 10 प्रतिशत ही कमर्शियल निर्माण की मंजूरी दी गई थी। मतलब सीधे शब्दों में कहें तो प्लॉटों पर अस्पताल की अनुमति नहीं दी गई, अनुमति थी तो सिर्फ क्लिनिक और डॉक्टर के आवास की। यह बात अलग है कि क्लिनिक की अनुमति लेकर डॉ. बारोड़ ने 30 बेड का पूरा अस्पताल ही तान दिया। 
 
सुखलिया में डॉ. बारोड़ ने कैसे पंडित दिनदयाल उपाध्यायनगर (सुखलिया) के प्लॉट नं. 28 एएच और 29 एएच पर मनमाने तरीके से बारोड हॉस्पिटल तान दिया है? इसका खुलासा दबंग दुनिया ने सोमवार के अंक में ‘दो प्लॉट+दो नक्शे=बारोड़ हॉस्पिटल’ शीर्षक से प्रकाशित समाचार में किया था। इसके बाद भी एक तरफ जहां नगर निगम के अधिकारियों ने हॉस्पिटल की सूध नहीं ली। वहीं दबंग दुनिया के हाथ लगी फाइल के आधार पर बात करें तो उक्त दोनों प्लॉटों पर आवासीय अनुमति दी गई थी, कमर्शियल अनुमति सिर्फ 10 प्रतिशत थी। 
 
ये कहती है अनुमति 
प्लॉट नं. 28 एएच का 12 अक्टूबर 2012 को नक्शा (आईएमसी/0634/ जेड5/ डब्ल्यू35/ 2012)स्वीकृत हुआ था उसके अनुसार 3866.4 वर्गफीट प्लॉट आवासीय/व्यावसायिक निर्माण हो सकता था।  1.5 एफएआर के साथ कुल 5799.6 वर्गफीट निर्माण की अनुमति दी गई। इसमें 4518.53 वर्गफीट आवासीय, 454.30 वर्गफीट व्यावसायिक, 367.73 वर्गफीट स्टेयर और 231.98 वर्गफीट लिफ्ट के लिए मंजूर हुआ। 
इसी तरह प्लॉट नं. 29 एएच का 12 अक्टूबर 2012 को जो नक्शा (आईएमसी/0635/जेड5/डब्ल्यू35/2012) मंजूर हुआ था उसके अनुसार 3866.4 वर्गफीट प्लॉट 1.5 एफएआर के साथ कुल 5015.6 वर्गफीट निर्माण की अनुमति दी गई। इसमें 4498.77 वर्गफीट आवासीय, 451.00 वर्गफीट व्यावसायिक,  367.73 वर्गफीट स्टेयर और 231.98 वर्गफीट लिफ्ट के लिए मंजूर हुआ। 
 
आवासीय अनुमति पर कैसे बन गया अस्पताल
नगर निगम द्वारा स्वीकृत नक्शे के अनुसार बात करें तो जिन प्लॉटों पर 90 प्रतिशत उपयोग आवासीय मंजूर हुआ हो वहां शतप्रतिशत हिस्से में अस्पताल कैसे बन गया? यह बड़ा सवाल है लेकिन निगम के अधिकारियों को इससे गुरेज है नहीं क्योंकि वे इन्हीं सवालों के आधार पर डॉ. सुनील बारोड़ से लंबी-चौड़ी फीस लिए बैठे हैं। वरना, जिस जोन-5 ने नक्शा मंजूर किया उसके और अस्पताल के बीच की दूरी बमुश्किल 300 मीटर है। अस्पताल गली या किसी मोहल्ले में नहीं है। एक दम सुखलिया चौराहे पर है। जहां से दिनभर में कई दफा अधिकारियों की आवाजाही लगी रहती है। फिर भी उन्हें घर की जगह बनता अस्पताल नजर नहीं आया, यह संभव नहीं है।
 
हाउसिंग बोर्ड से निगम तक ने दिया साथ 
डॉ. बारोड़ द्वारा देखे गए बारोड़ हॉस्पिटल के सपने को पूरा करने में उनका साथ पं. दीनदयाल उपाध्यानगर विकसित करने वाले मप्र हाउसिंग बोर्ड से लेकर नक्शा मंजूर करने और निर्माण नजरअंदाज करने वाले नगर नगम तक ने अच्छे से दिया। इस काम में डॉ. बारोड़ के लाइजनर मित्रों ने भी दलाली के माध्यम से निर्माण पर सरकारी सख्ती की आंच नहीं आने दी। 
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