19 Mar 2024, 09:43:49 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

- संतोष शितोले 
इंदौर। पीएम नरेंद्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ व ‘नेशनल स्किल डेवलपमेंट’ को बढ़ावा देने का सिद्धांत प्रदेश के सरकारी विभागों में मजाक बन गया है। प्रदेश के कई आईटीआई को स्किल डेवलपमेंट मामले में गुणवत्ता के आधार पर ‘आईएसओ 29990 : 2010’ मिला है। जबकि हकीकत यह है कि यह आईएसओ सर्टिफिकेट गुणवत्ता के आधार पर नहीं बल्कि एक कागज के तौर पर थमा दिया गया।
 
तमाम मापदंडों की धज्जियां उड़ाकर सर्टिफिकेट जारी करने वाली दिल्ली की उक्त कंपनी देश या विदेश के किसी भी बोर्ड से अधिमान्य ही नहीं है। चौंकाने वाली बात यह है कि उक्त कंपनी ने न तो कोई आॅडिट किया न विजिट। मात्र पांच से 20 हजार रुपए में उक्त सर्टिफिकेट जारी कर दिए।   दरअसल यह मात्र ‘कम्पलाइंस सर्टिफिकेट’ है जिसे ‘आईएसओ 29990 : 2010’ का तमगा दे दिया गया। 4शेष पेज-12
जिन आईटीआई संस्थानों को उक्त फर्जी सर्टिफिकेट मिला है उनमें जबलपुर, उज्जैन, खरगोन, रतलाम, पन्ना, देवास, जावद, सिंगरौली हैं जबकि इसी तरह से इंदौर का सर्टिफिकेट मिलने की प्रक्रिया में है।
 
मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत केंद्र सरकार के विभागों के साथ मप्र के सरकारी विभाग भी इसे लेने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। जानकारी के मुताबिक औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं (आईटीआई) में ट्रेनिंग व स्कील डेवलपमेंट की गुणवत्ता के मामले में इंटरनेशनल स्टैंडर्ड आर्गेनाइजेशन द्वारा ‘आईएसओ 29990 : 2010’ दिया जाता है। आईएसओ देने वाली सर्टिफिकेशन बॉडी को देश की एनएबीसीबी (नेशनल एक्रिडिटेएशन बोर्ड फॉर सर्टिफिकेशन बॉडीज) या आईएएफ (इंटरनेशनल एक्रिडिटेशन फोरम) की सदस्य बॉडी (विदेशी बोर्ड) से संबद्ध होना चाहिए। आईएसओ सर्टिफिकेट के मामले में आईएएफ बना है।
 
भारत सहित 60 से अधिक देश इसके सदस्य हैं। भारत का अधिमान्य बोर्ड एनएबीसीबी है जो क्यूूसीआई (क्वालिटी काउंसिल आॅफ इंडिया) के अधीन है। एनएबीसीबी अधिकृत सर्टिफिकेशन आॅडिट कर आईएसओ सर्टिफिकेट जारी कर सकती है।  प्रदेश में कई विभागों ने विदेशी बोर्ड से सर्टिफिकेट लिया है तो कई विभागों ने एनएबीसीबी से।
 
यह है आईटीआई की स्थिति
जानकारी के मुताबिक 17 फरवरी 2016 को आईटीआई (इंदौर संभाग) के संयुक्त संचालक डीएस ठाकुर ने संभाग के सभी आईटीआई को आईएसओ लेने के लिए पत्र लिखा। इसमें डायरेक्टर जनरल आॅफ टेक्निकल एजुकेशन (डीजीटी, नई दिल्ली) के पत्र (क्र. एमएसडीएस-6/जनरल/2015 टीसी 17-12-2015) का हवाला दिया गया। साथ ही कहा गया कि इसे लेने की प्रक्रिया तत्काल प्रभाव से शुरू की जाए। इस बीच इंदौर संभाग के विभिन्न आईटीआई इसे लेने की तैयारी में जुट गए जबकि दूसरी ओर अन्य संभागों के जबलपुर, उज्जैन, खरगोन, रतलाम, पन्ना, देवास, जावद, सिंगरौली, गंजबासौदा आईटीआई ने प्रक्रिया पूरी कर ‘आईएसओ 29990 : 2010’ हासिल कर लिए। ये सर्टिफिकेट क्यूसीएल सर्टिफिकेशन प्रालि (दिल्ली) द्वारा जारी किए गए।
 
ऐसे हासिल किया सर्टिफिकेट
मामले में ‘दबंग दुनिया’ ने इन सर्टिफिकेट की पड़ताल की तो पता चला कि ये फर्जी हैं। दरअसल, संबंधित क्यूसीएल कंपनी ने न तो इन आईटीआई का आॅडिट किया न विजिट की। कंपनी को इन्फ्रास्ट्रक्चर व ट्रेनिंग की गुणवत्ता से भी कोई मतलब नहीं था। बस सर्टिफिकेट देने के एवज में पांच से 20 हजार रुपए संबंधित आईटीआई से ले लिए। फिर इन आईटीआई ने अपने आॅफिस में शान से उक्त आईसीओ का सर्टिफिकेट टांग दिया और इस तमगे के आधार पर संस्था की ब्रांडिंग की जा रही है। हकीकत यह है कि इन संस्थानों में न तो उक्त ‘आईएसओ 29990 : 2010’ के स्टैंडर्ड का फॉलो हो रहा है, न मैन्युअल बनाया गया है। 
 
ऐसे हुआ फर्जीवाड़े का खुलासा
‘दबंग दुनिया’ ने क्यूसीएल सर्टिफिकेशन प्रालि (दिल्ली) के उक्त सर्टिफिकेट की तस्दीक की तो पता चला कि उक्त कंपनी बिजनेस सर्विस प्रोवाइडर है। कंपनी का रजिस्ट्रेशन 11 मई 2016 का है और उसने 5 जुलाई 2016 को आईएसओ सर्टिफिकेट जारी भी कर दिए। उक्त कंपनी एनएबीसीबी या किसी भी विदेशी बोर्ड से अधिमान्य नहीं है। मामले में ‘दबंग दुनिया’ ने मप्र के एक आईटीआई का प्रतिनिधि बनकर कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर रमाकांत त्रिवेदी के मोबाइल (9990468811) पर बात की तो चौंकाने वाला खुलासा हुआ। बातचीत में त्रिवेदी ने बताया कि वे आसानी से उक्त सर्टिफिकेट जारी करवा सकते हैं वह भी मात्र आठ हजार रुपए में। उन्होंने यह भी कबूला कि कंपनी का सर्टिफिकेट अधिमान्य नहीं है और यह मात्र ‘कम्पलाइंस सर्टिफिकेट’ है। 
 
जब उनसे एक साथ पांच आईटीआई के सर्टिफिकेट बनाने का प्रस्ताव रखा तो बताया कि पांच से 10 दिन में जारी हो जाएंगे। इसके साथ ही शनिवार को डाक्युमेंट भिजवाने की बात कही। इतना ही नहीं इस कंपनी ने मप्र के जबलपुर, उज्जैन, खरगोन, रतलाम, पन्ना, देवास, जावद, सिंगरौली को जो आईएसओ सर्टिफिकेट जारी किए थे, वे सब रिपोर्टर को तुरंत मेल भी कर दिए। ‘दबंग दुनिया’ के पास कंपनी के डायेक्टर रमाकांत त्रिवेदी, स्टाफ प्रिया सहित अन्य की रिकॉर्डिंग बतौर सबूत है। खास बात यह है कि एक ओर मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ व ‘स्किल डेवलपमेंट’ के सिद्धांत तथा मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान कौशल संवर्धन विकास की योजनाओं के लिए प्रतिबद्ध है, वहीं प्रदेश के इस तरह के सरकारी विभाग फर्जी आईएसओ का तमगा लगाकर उनके सहित जनता को अंधेरे में रख रहे हैं।
 
विभाग कंपनी का बायकाट करेगा
विभाग ने आईएसओ सर्टिफिकेशन के लिए विज्ञापन दिया था जिसमें क्यूसीआई कंपनी को फाइनल किया था। कंपनी को सर्टिफिकेट का 18 हजार रुपए का भुगतान पांच महीने बाद किया था। कंपनी का कहना था कि सालभर बाद आॅडिट व विजिट होगा। विभाग इस कंपनी का बायकाट करेगा।
 
- सुनील ललावत, प्राचार्य (आईटीआई, उज्जैन)
इन प्रक्रियाओं के बाद मिलता है सर्टिफिकेट
कंसल्टिंग : इसकी निचली कड़ी कंसल्टिंग कंपनी/एजेंसी होती है जो संबंधित आईएसओ की तैयारी कराती है। इसमें मुख्यत: कंपनी/संस्था के डाक्युमेंटेशन जैसे पॉलीसीज, प्रोसेस, कार्य निर्देश, आवश्यक ट्रेनिंग्स आदि होता है। सबसे अहम उक्त आईएसओ स्टैंडर्ड कंपनी/संस्था की कार्यप्रणाली का मैन्युअल (निर्देश पुस्तिका/गाइड) होता है। इसके आधार पर संस्था का सर्टिफिकेशन बॉडी के आॅडिटर आॅडिट कराते हैं।
 
ऑडिट : तैयारी के बाद किसी भी अधिमान्य सर्टिफिकेशन बॉडी से सर्टिफिकेट प्राप्त करने के लिए उक्त बॉडी के आॅडिटर्स द्वारा आईएसओ के स्टैंडर्ड के अनुरूप संस्था का आॅडिट किया जाता है। ये आॅडिट दो स्टेज में होते हैं। आईएसओ मापदंड के अनुरूप कार्य पाए जाने पर आॅडिटर उक्त संस्था को आईएसओ प्रदान करने की सिफारिश सर्टिफिकेशन बॉडी को करता है।
 
सर्टिफिकेशन : ऑडिट में आईएसओ अनुरूप पाए जाने पर संस्था को आईएसओ सर्टिफिकेट प्रदान किया जाता है। यह सर्टिफिकेट तीन वर्षों के लिए दिया जाता है। इसका प्रति वर्ष आॅडिट कराना जरूरी होता है।
 
मामला प्रक्रिया में
इंदौर संभाग के अंतर्गत आने वाले आईटीआई को आईएसओ सर्टिफिकेट लिया जाना है, जिसकी तैयारी चल रही है। अन्य संभागों ने कैसे हासिल किए, इसकी जानकारी नहीं है। 
- डीएस ठाकुर, संयुक्त संचालक (कौशल विकास, इंदौर संभाग)
दिखवाता हूं
उक्त मामला मेरी जानकारी में नहीं है। यह जरूर है कि क्वालिटी और स्किल डेवलपमेंट को लेकर पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री ने मध्यप्रदेश की प्रशंसा की है। सार्वजनिक तौर पर कहा कि मप्र क्वालिटी में अव्वल है। मैं दिखवाता हूं कि उक्त सर्टिफिकेट किस आधार पर हासिल किए गए।
- दीपक जोशी, तकनीकी शिक्षा व कौशल विकास मंत्री
 
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