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जिसने भी इस बल्ले को थामा, खुद ब्रांड बन गया

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 18 2017 9:31AM | Updated Date: Jun 18 2017 9:31AM
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पंकज मुकाती, स्टेट एडिटर दैनिक दबंग दुनिया

आज चैंपियंस ट्रॉफी में भारत-पाकिस्तान के बीच मुकाबला है। ये फाइनल है, जो जीतेगा वो सिकंदर कहलाएगा। दोनों देशों के साथ-साथ पूरी दुनिया के क्रिकेट प्रेमी इसे देखेंगे। जब भी कोई बल्लेबाज सिक्स लगाए या बड़ी पारी खेलकर अपना बल्ला हवा में लहराए तो ध्यान से देखिएगा। बल्ले पर एक कंपनी का नाम और लोगो होगा। यही वह कंपनी है जिसके बल्ले से क्रिकेट की दुनिया में रन बरसे हैं। ये बल्ला लंबी और यादगार पारियों की पहचान बन गया है। खास बात ये है कि खेल अंग्रेजों का पर बल्ला हिंदुस्तानी चलता है।  दुनिया भर के क्रिकेटर्स की पसंद है सरीन स्पोर्ट्स इंडस्ट्री के बल्ले। इसका प्रचलित नाम है ‘एसएस’ याद आया कुछ।  मुझे अच्छे से याद है, अपने स्कूली लाइफ में हम दोस्तों के बीच ये बल्ला डबल एस के नाम से चर्चा में रहता था। जिसके पास ये ब्रांड होता था उसे हम ईर्ष्या से देखते थे। उन दिनों भी इस बल्ले से खूब रन निकलते थे।

उत्तरप्रदेश के मेरठ के मवाना रोड सालारपुर गावं में इसका कारखाना है।  इसके एमडी हैं, जतिन सरीन। 40 साल के जतिन के पिता एन के सरीन ने 1969 में ये कंपनी शुरू की। ये एन के सरीन की जिद और जूनून ही होगा, कि उन्होंने उस दौर में क्रिकेट बल्ले का कारखाना खोला, तब भारत में क्रिकेट बहुत फैला हुआ नहीं था। इस परिवार की कहानी दिलचस्प है, जतिन के दादा बंटवारे के बाद पाकिस्तान से मेरठ आकर बसे। उन्होंने बैडमिंटन के शटलकॉक बनाना शुरू किया. लेकिन उनके बेटे को इसमें रूचि नहीं थी, उन्होंने क्रिकेट के धंधे में दिलचस्पी ली। सरीन इंडस्ट्रीज का कारखाना चार एकड़ में है।  इस कंपनी का नया दौर शुरू हुआ 1997 से।  उस वक्त जतिन ने बिजनेस अपने हाथ में लिया। मेरठ से ग्रेजुएट जतिन बल्ला बनाने का गुर सीखने इंग्लैंड चले गए।  उस दौर में जॉन न्यूब्री के बनाए बल्लो की धूम थी। जतिन ने एक साल उनके साथ वो सब बारीकियां सीखी जो वर्ल्डक्लास बल्ला बनाने को जरुरी है। 
 
ऐसे चमका बल्ला- जब ये कंपनी शुरू हुई दुनिया में दो तरह के बल्ले बनते थे। एक कश्मीरी विलो के दूसरे इंग्लिश विलो के।  इंग्लिश विलो से सिर्फ सिर्फ रईस लोग खेलते थे, ये महंगे थे। कंपनी ने इंग्लिश विलो मंगवाकर बल्ले बनाना शुरू किया। इंग्लिश विलो के बल्ले हलके होते हैं, और बॉल इससे टकराकर तेज गति से जाती है। कंपनी ने सैयद किरमानी और रोजर बिन्नी से अनुबंध किया।  इसके बाद मनोज प्रभाकर ने इस बल्ले से खेलना शुरू किया।  विनोद कांबली ने 1993 में इसी बल्ले से इंग्लैंड के खिलाफ दोहरा शतक लगाया।
 
बदली बैट की चौड़ाई- तेंदुलकर और गांगुली सहित कई क्रिकेटर्स से चर्चा कर उन्होंने देश में 28 मिलीमीटर चौड़ाई वाले बल्ले की जगह 40 मिलीमीटर के मोटे बल्ले बनाना शुरू किए। इनके हैंडल खास तकनीक से बनाये ताकि लोच बनी रहे। तेंदुलकर और गांगुली की खास पसंद है ये बल्ले।
टी-20 का मंगूस भी- आईपीएल में मैथ्यू हेडेन की जो आतिशी बल्लेबाजी आप लोगों ने देखी उसके पीछे है खास ‘मंगूस’ बल्ला।  ये भी एसएस कंपनी ने ही तैयार किया था । इसकी तकनीक तो इंग्लैंड में बनी पर बना ये मेरठ में। ये खास तरह का छोटा बल्ला है, हैंडल लंबा होता है. टी-20 के लिए हलके बैट बनाने प्यूमा, नाइकी, एडिडास जैसी कम्पनीज भी जतिन से ही बल्ले बनवाती है।
नया कारखाना- 2006 में कंपनी ने नया कारखाना खोला यहां, हाथ से बल्ले बनाए जाते हैं। इनकी कीमत 700 से 25000 तक है। विराट कोहली, इंग्लैंड के रवि बोपारा सहित 50 से अधिक क्रिकेटर्स इस बल्ले से खेलते हैं।
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