26 Apr 2024, 00:22:43 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

विशेष टिप्पणी- पंकज मुकाती

इंदौर। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह सदमे में हैं। उनकी खामोशी इसका सबूत है। शिवराज सिंह इन दिनों दिखाई नहीं दे रहे हैं। जबकि हमेशा गायब रहने वाले राहुल गांधी मैदान में हैं। वे बोल भी रहे हैं। प्रदेश में किसानों पर फायरिंग और छह मौत का असर राजनीति पर साफ है। राहुल का दिखना और मुखर होना कितना असर करेगा। ये वक्त तय करेगा। पर शिवराज की खमोशी बड़ा  नकारात्मक असर करेगी। शिवराज एक ऐसे शख्स हैं, जो काम में भरोसा रखते हैं। इस वक्त भी वे सक्रिय हैं, होंगे। पर राजनीति में सक्रिय होने के साथ सक्रिय दिखना भी जरूरी है। जनता में विश्वास तभी लौटता है जब नेता सीधे सामने आता है। लोग उनका पक्ष सुनना चाहते हैं। वो भी सीधा। बिना लागलपेट उन्हें स्वीकारना चाहिए प्रशासन की गलती है, मैं इस चूक की जिम्मेदारी लेता हूं। पर इस वक्त उनके मंत्री और अफसर बोल रहे हैं। जो ठीक नहीं है। गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह और महिला बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस ने पहले ही दिन ये कहकर किसानों का गुस्सा बढ़ा दिया कि पुलिस की गोली से नहीं मरे किसान। अफसर भी ऐसा ही गोलमोल करते रहे। बेहतर होता शिवराज खुद आकर ये जवाब देते। शिवराज के  प्रति जो भरोसा जनता में है पिछले तीस साल में किसी नेता के प्रति नहीं रहा। महिलाओं, बेटियों व किसानों के भी बड़े वर्ग के बीच अभी भी वे चमकता चेहरा हैं। राजनीति भले कुछ भी कहती हो। वे मैदानी नेता हैं, और उन्हें वही रहना भी चाहिए। पिछले सप्ताह इंदौर नगर निगम के कार्यक्रम में पंडाल गिरने पर जो शिवराज दिखे थे, वैसे ही अभी भी दिखने चाहिए। निश्चित ही एक चूक ने उनकी राजनीति और प्रशासन दोनों पर सवाल लगा दिया। इन सवालों के जवाब वक्त नहीं शिवराज सिंह को खुद ही देने होंगे।

पुलिस फायरिंग में 6 किसानों की मौत के बाद मंदसौर में पुलिस अधीक्षक और प्रशासनिक तबादले किए गए। पर बड़ा मुद्दा ये है कि क्या सिर्फ एक-दो तबादले पूरी व्यवस्था को दुरुस्त कर देंगे? जांच होनी चाहिए कि आखिर किसके आदेश पर गोली चली और क्यों? आखिर शिवराज के करीबी अफसर इतने बड़े आंदोलन के खतरे को पढ़ क्यों नहीं सके? सीधी बात है अफसरों की मंडली फीलगुड में जी रही है। ये मंडली मुख्यमंत्री को भी वही दिखा रही है, जो बंद कमरों से वो देख रही है। सरकार के शीर्ष में अभी जो अफसर हैं, उनमें से आधे से ज्यादा वही हैं, जो दिग्विजय के कार्यकाल में भी कुछ ऐसी ही जिम्मेदारी पर थे। दिग्विजय को भी ये ऐसी ही रिपोर्ट देते रहे, कही कोई गुस्सा नहीं, सब खुश हैं। बिजली कटौती, शहरी लोगों के वोट नहीं चाहिए, सवर्णो के वोट की मुझे जरूरत नहीं जैसे बेतुके दिग्विजय के बयानों को भी अफसरों ने बहुत खूब, ‘राजा साहब’ कहकर कसीदे कढ़े। इन दरबारी अफसरों ने ही कांग्रेस की सत्ता का नाश किया। यदि ये वक्त रहते दिग्विजय को जमीनी हकीकत बताते तो शायद कुछ हालात सुधरते। शिवराज और दिग्विजय के कार्यकाल की कोई तुलना नहीं। ऐसे दरबारी अफसरों के कारण ही किसानों की असली परेशानी सामने नहीं आ सकी। आंदोलन की उग्रता ये साबित करती है कि आग लंबे समय से धधक रही है। अभी भी वक्त है, ऐसे अफसरों को हटाकर नए चेहरे लाए जाएं। इतिहास गवाह है कि अफसरों की गलती ने हमेशा राजनेताओं और सरकारों को खत्म किया है। अफसर भी ये जानते हैं कि आज तबादला, कल वापसी तय है। शिवराज सिंह को अपनी कार्यशैली और आक्रामक करनी ही होगी, उन्हें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सीखना चाहिए। 

नीतीश कुमार ने अफसरों और मंत्रियों पर भरोसा किया पर पूरा भरोसा कभी नहीं किया। कई स्तरों पर अफसरों की भी ट्रैकिंग नीतीश कुमार करते रहते हैं। यही सफलता का फार्मूला है। 

इस आंदोलन से एक और बात सामने आई कि संघ से जुड़े किसान संगठन और बीजेपी का अपना नेटवर्क कहां गुम हो गया। इसकी भूमिका भी कमजोर रही। बीजेपी का संगठन, विधायक और वरिष्ठ नेता भी खामोश रहे। आंदोलन के आठ दिन में किसी भी बीजेपी के विधायक या वरिष्ठ नेता ने अपने इलाके के किसानों को समझाने की कोशिश तक नहीं की। कहीं ऐसा कुछ सामने नहीं आया। क्या मंत्रियों ने अपने इलाकों में कोई कोशिश की? नहीं। क्यों? इसका भी जवाब तलाशा जाना चाहिए। बीजेपी जैसी संगठनात्मक पार्टी के लिए ये भी एक चेतावनी है। क्या बीजेपी भी कांग्रेस बनती जा रही है। खैर, इस सबके बावजूद आज भी निर्विवाद रूप से शिवराज प्रदेश के सबसे पसंदीदा नेता हैं। उनके चेहरे और कामों की चमक इस मामले से धुंधली जरूर हुई है। पर वे इस धुंध को हटा सकते हैं पर अपनी सच्चाई से। शिवराज को चाहिए कि  दरबारी अफसरों और जमीनी हकीकत से कट चुके मंत्रियों के भरोसे रहने, उनकी सलाह मानने के बजाय खुद पूरे प्रदेश में किसानों की चौपाल लगाएं। एक-एक इलाके में जाएं और किसानों को समझाएं, उनसे पूछे-क्या दिक्कत हैं। मुख्यमंत्री को 51 जिलों में 51 चौपाल करनी चाहिए। साथ में कृषि मंत्री, संबंधित विभागों के अफसरों के सामने किसानों से खुलकर चर्चा करनी चाहिए। संभव है, ये चौपाल दस से बारह घंटे तक चले। पर शिवराज एक किसान के बेटे हैं और दस बारह-घंटे उन्हें थकाएंगे नहीं इस बात का भरोसा तो किया ही जा सकता है। ये कठिन जरूर है पर करना ही होगा, और दोषियों को तत्काल सजा भी सुनानी होगी। ये चौपाल और लोगों से सीधा संपर्क शिवराज को अन्नदाता के सामने नायक साबित करेगा। वे इस प्रदेश के कभी न भुलाने वाले नायक बन जाएंगे। वरना, जनता को भूलते देर भी नहीं लगेगी। 

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