24 Apr 2024, 17:01:34 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

खिरनी, फालसे और करौंदे पहले अमीरों के फलों में शामिल थे, सराफा में इनकी बहुत बिक्री होती थी। सभी धन्नासेठ इन्हें खासा पसंद करते थे। नौलखा और खजराना क्षेत्र में इन फलों के पेड़ बहुतायात में पाए जाते थे, लेकिन आधुनिकीकरण के चलते धीरे-धीरे ये काट दिए गए और अब ये शहर के आसपास गांवों में बहुत कम हैं। अब वो दिन दूर नहीं जब खजूर, चारोली, शहतूत, खिरनी, फालसे और करौंदे के सिर्फ नाम ही बचेंगे। 
 
कुछ सालों तक शहर में सेहजन के पेड़ भी नजर नहीं आते थे, लेकिन जब सरकार ने इसके फायदे जाने तो सेहजन फली के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर इसके पेड़ लगाए और अब ये बाजारों में वापस नजर आने लगी है। इंदौर के एग्रीकचर डिपार्टमेंट का भी मानना है कि इन फलों को बचाने के लिए सही संरक्षण व अभियान चलाना होंगे, ताकि नई पीढ़ी इन फलों का रस ले सके। 
 
अंदाज है अनोखा
मांडव का मेवा यानी खिरनी, हिमालय से आया करौंदा और अब तो मालवा-निमाड़ में पनपने वाला शहतूत इन दिनों दिखाई देने लगा है। जब आप गांधी हॉल से शास्त्री ब्रिज की ओर चढ़ते हैं, तो फुटपाथ पर मालवा-निमाड़ और दूसरे क्षेत्रों के व्यापारियों को ये फल बेचते देख सकते हैं। इनके तौलने का अंदाज भी निराला है, इनके पास कोई तराजू-बांट नहीं है, बल्कि हाथ के अनुसार वे आपको यह फल दे देते हैं। 
 
लौट जाते हैं शाम को  
विक्रेता उज्जैन मंडी या इसके आसपास के गांव से खिरनी, करौंदे और खजूर बेचने आ रहे हैं। इन फलों की कीमत 100 से 200 रुपए किलो तक है। सुबह दस बजे ये पुल पर डेरा जमा लेते हैं और सूर्यास्त के पहले लौट जाते हैं। नेवरी से खजूर लेकर आए सुरेश बताते हंै खरीदने वालों में बुजुर्ग लोग ज्यादा हैं, जिन्हें ये काफी पसंद है। वहीं उज्जैन से आए ऋतुराज कहते हैं हम सुबह से आते हैं और शाम तक काफी बिक्री हो जाती है। 
 
खिरनी
खिरनी की तुलना गुलकंद से की जाती है। यह धातुवर्धक, शुक्रजन, क्षय रोग व वात रोग नाशक है। यह रक्त पित्त रोग में लाभ देने के साथ दुर्बल को बलशाली बनाने में सहायक है। इसमें विटामिन ए, बी, सी, प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवण, कैल्शियम, फास्फोरस और लौह की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। 
 
करौंदा
इसकी प्रकृति गर्म होती है, वैसे रक्त पित्त व कफ बढ़ाता है, लेकिन नमक, मिर्च व मीठा पदार्थ मिलाने से इसके दोष दूर हो जाते हैं। यह भूख बढ़ाता है, प्यास रोकता है, दस्त बंद करता है। 
 
फालसे 
इसे खाने से गैस व एसिडिटी के रोगियों को फायदा होता है। इसका शरबत लू से बचाता है। इसके साथ सेंधा नमक खाने से लू नहीं लगती। जूस पीने से सिरदर्द ठीक होता है। खून की कमी को दूर करता है। इसमें प्रोटीन, ग्लूटेरिक अम्ल, शर्करा, खनिज, कैरेटिन व विटामिन सी पाया जाता है। 
 
शहतूत
इसे खाने से पाचन शक्ति बढ़ती है। यूरीन व लीवर से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं। आंखों की रोशनी बढ़ती है। लू नहीं लगती, थकान दूर होती है। कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल व खून साफ करता है। जलन, मुंहासे व सूजन कम करता है।  
 
खजूर
खजूर कई प्रकार के आते हैं, लेकिन गर्मी में बारीक और पतले खजूर का चलन है, इसमें पोटेशियम, मैग्नेशियम, कॉपर, मैग्नीज व विटामिन बी के साथ प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट व फायबर की पर्याप्त मात्रा होती है। 
 
जाना पड़ता है सांवेर तक 
एक बैंक में कार्यरत सरिता सहयोगी ने बताया मुझे फालसे और करौंदे बहुत पसंद हैं। कई बार तो इस सीजन में ये खरीदने के लिए मैं सांवेर से महू तक चली जाती हूं। पलासिया में रहने वाले साधुराम ने बताया मेरे पोते खिरनी को निंबोली बोल रहे थे, इसलिए मैं उसे इसका स्वाद चखाने लाया हूं। राजबाड़ा निवासी मोहन जोशी ने बताया खिरनी तो मालवा का मेवा थी, इसलिए सभी की पहुंच तक थी, लेकिन फालसे और करौंदे सराफा व्यापारियों को काफी पसंद आते थे। 
 
खिरनी के पौधे में की जा रही चीकू की ग्राफ्टिंग
खिरनी, फालसे, खजूर और करौंदे जैसे फलों को लेकर लोगों की पसंद बदल गई है। चीकू की डिमांड ज्यादा होने के कारण आजकल खिरनी के पौधे में ही चीकू की ग्राफ्टिंग की जा रही है। पुराने पेड़ों का इस्तेमाल नए फलों के लिए किया जा रहा है। आज भी खजराना क्षेत्र में इसके कुछ पेड़ ढूंढ़ने पर मिल जाएंगे। फालसे और चिरोंजी जैसे फलों को पानी कम लगता है, इसलिए ये उन स्थानों पर लगाए जा सकते हैं जहां पानी कम हो। इन फलों को बचाने के लिए एक अभियान चलाना होगा, वरना कुछ सालों में ये पूरी तरह खत्म हो जाएंगे। नई पीढ़ी तो वैसे भी इन फलों के बारे में नहीं जानती, उन्हें भी जागरूक करना होगा।  
 
-डॉ. आरएन बनाफर, हेड आॅफ एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट, स्कूल आॅफ एग्रीकल्चर
 

 

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