विनोद शर्मा -
इंदौर। रेत खनन मामले में लगातार घिरते जाने के बाद मप्र सरकार ने नर्मदा से मशीन से वैध-अवैध रेत खनन पर सोमवार से प्रतिबंध लगा दिया है। पर्यावरण, नर्मदा और सड़कों के हित मेंं फैसले को जहां अच्छा बताया जा रहा है, वहीं प्रतिबंध की घोषणा के बाद ही रेत की कीमत दोगुना हो गई। बढ़ी कंस्ट्रक्शन कॉस्ट को फैसले के साइड इफैक्ट के रूप में भी देखा जा रहा है।
आंकड़ों के लिहाज से बात करें तो रविवार तक जो मल्टीएक्सल डंपर रेत की कीमत 27000 रुपए थी, खनन रोक के बाद सोमवार को वह 40 हजार रुपए में भी ढूंढे नहीं मिल रहा था। यानी 24 घंटे में 48 प्रतिशत का इजाफा। 1000 वर्गफीट के कंस्ट्रक्शन में 60 हजार की जो रेत लगती थी अब उसके 1.05 लाख चुकाना होंगे।
मुख्यमंत्री द्वारा लिए गए रेत खनन प्रतिबंध के फैसले से नर्मदा किनारे संचालित 200 से ज्यादा खदानों पर ताले डलना तय है। इनमें नेमावर, हरदा, हंडिया, नसरूल्लागंज, होशंगाबाद की खदानें प्रमुख हैं, जिनसे इंदौर और भोपाल में रेत सप्लाय होती है। नर्मदा से रेत निकालना पूरी तरह बंद होने से कंस्ट्रक्शन के बडेÞ गढ़ इंदौर और भोपाल सहित कई शहरों में रेत की किल्लत होगी। निर्माण कार्य तो बाधित होंगे ही, जहां आधे निर्माण हो चुके हैं वे भी ठप हो जाएंगे।
नदी, रेत खदानें और लाभान्वित शहर
नर्मदा नदी: नेमावर, हरदा, हंडिया, नसरूल्लागंज, होशंगाबाद सहित 200 खदानें। इंदौर, देवास, सीहोर, होशंगाबाद, भोपाल, धार, बड़वानी, खरगोन।
कारम नदी : सेंधवा गुजरात- धूलिया, मालवा बड़वानी, सनावद में जाती है रेत।
हथनी नदी : अलीराजपुर गुजरात और मुंबई तक जाती है रेत।
सरकार ने किया धोखा
नेमावर, हरदा, हंडिया और नसरूल्लागंज में खदानें चल रही है। नसरूल्लागंज में 12 खदानें 130 करोड़ में ठेके पर दी गई थी। इसके अलावा हरदा, नेमावर, हंडिया में 6 खदानें 34.50 करोड़ में गई थी। 30, 25-25 और 20 प्रतिशत के हिसाब से चार किश्तों में सरकार पैसे लेकर 2020 तक का आंवटन कर चुकी है। खदान मालिकों का कहना है कि सरकार ने बीच में ही अनुबंध तोड़कर खदानें बंद की। 20 हजार परिवार इस कारोबार से जुड़े थे।
जल्दबाजी में लिया गया निर्णय है। जिन शहरों में नर्मदा के अलावा अन्य नदियों से रेत आती है वहां तो काम धक जाएगा लेकिन मालवा-निमाड़ में हालात बिगड़ना तय है। कंस्ट्रक्शन कॉस्ट 1000 से बढ़कर 1050 रुपए/वर्गफीट हो जाएगी। वहीं रेत के दाम की तरह बेरोजगारी भी बढ़ेगी। हाउसिंग से लेकर सरकारी प्रोजेक्ट तक सब अटक जाएगा।
- अतुल सेठ, इंजीनियर
सबसे ज्यादा सरकारी ठेके प्रभावित
हाउसिंग के क्षेत्र में छाई मंदी के कारण जो प्रोजेक्ट चल रहे हैं उनकी रफ्तार पहले ही कम है। सबसे ज्यादा रेत की खपत हो रही है सरकारी प्रोजेक्ट्स में। यहां सीएसआर और एसओआर 28 रुपए क्यूबिक मीटर है। इसे 10 से 30 प्रतिशत ऊपर के साथ ठेकेदार लेता है, लेकिन रेत की नई दरों के बाद कंस्ट्रक्शन कॉस्ट 70 रुपए क्यूबिक फीट तक बढ़ जाएगी।
कंस्ट्रक्शन धीमा
इंदौर और भोपाल में सबसे ज्यादा हाउसिंग प्रोजेक्ट हैं। इंदौर में ही करीब एक हजार से अधिक बिल्डिंगें अंडर कंस्ट्रक्शन हैं। इसके अलावा 400 से ज्यादा कॉलोनियों में विकास कार्य जारी हैं और तकरीबन हर कॉलोनी में कॉक्रीट की सड़क ही बन रही है। रेत न मिलने से इनकी गति धीमी पड़ेगी।