- मुकेश मुवाल
इंदौर। रात के करीब 1.40 बज रहे थे... आधे से ज्यादा शहर नींद की आगोश में था... तभी तुलसी नगर की एक इमारत के दो चौकीदारों ने तेंदुए की गरज और श्वानों के लगातार भौंकने की आवाजें सुनीं। घबराकर उन्होंने तुरंत डायल-100 का फोन घनघना दिया और कहा कि यहां तेंदुआा गरज रहा है। सूचना पर गश्त कर रहे डीएसपी, टीआई, रिजर्व बल के साथ मौके पर पहुंच गए। गाड़ियों की रोशनी में हथियार लिए कुछ जवानों की आंखों में यह भी खौफ था कि कहीं तेंदुआ अचानक सामने न आ जाए। घंटों छानबीन के बाद खुलासा हुआ कि जिस आवाज का पीछा पुलिस कर रही थी वह दो सांडों की लड़ाई के दौरान की थी। इसके बाद पुलिस ने राहत की सांस ली।
राइफल लेकर गाड़ियों की रोशनी में तलाशते रहे
भोपाल (डायल-100) से इंदौर पुलिस कंट्रोल रूम पर मिली सूचना के बाद गश्त कर रहे डीएसपी लाइन सुनील तालान, एमआईजी टीआई तारेश सोनी मौके पर पहुंचे। दस जवानों के रिजर्व बल को भी बुलवा लिया गया। वहीं, हाल ही में सांवेर रोड की एक फैक्टरी में पकड़ाए तेंदुए को याद करते हुए पुलिस कंट्रोल रूम के जरिए वन विभाग को भी सूचना दे दी गई।
संभावित हमले पर आत्मरक्षा के लिए राइफल हाथों में लिए पुलिसकर्मी तेंदुए को तलाशते रहे, लेकिन वह नहीं मिला। महालक्ष्मीनगर, तुलसीनगर व आसपास के इलाके की खाक छानने के बाद पुलिसकर्मी वापस चौकीदार पांडे के पास पहुंचे। उसे समझाने की कोशिश की कि जो आवाजें उन्होंने सुनी वह किसी और जानवर की होगी, लेकिन वह अपनी बात पर अड़ा रहा। रात करीब तीन बजे लसूड़िया थाने की पीसीआर वैन ने खुलासा किया कि तुलसीनगर में दो सांडों की लड़ाई हुई थी। वो ही जोर-जोर से आवाजें कर रहे थे। उन्हें देखकर श्वानों का झुंड भी भौंक रहा था।
सांडों की आवाज थी
निपानिया क्षेत्र में तेंदुए की आवाज सुने जाने संबंधी कंट्रोल रूम की सूचना पर हम मौके पर गए थे। घंटों की तलाश में पता चला कि जो आवाजें चौकीदारों ने सुनी थीं वह तेंदुए की नहीं बल्कि सांडों के लड़ने की थी।
- सुनील तालान (डीएसपी लाइन)
घबराकर खड़ा हो गया चौकीदार
एलआईजी कॉलोनी निवासी श्रीकांत पांडे लसूड़िया थाना क्षेत्र के निपानिया स्थित निर्माणाधीन बीसीएम प्लानेट में चौकीदार है। उसके साथ अवधेश भी चौकीदार है। पांडे ने बताया, शनिवार रात कुर्सी पर बैठे-बैठे मेरी झपकी लगी थी कि करीब 1.40 बजे गरज की आवाज से मैं घबराकर खड़ा हो गया। आवाजों को ध्यान से सुना तो लगा तेंदुआ गरज रहा है। मैंने तुरंत अवधेश को जगाया।
उसने भी आवाज सुनी तो घबरा गया। मल्टी में पहली मंजिल पर 100 से ज्यादा मजदूर व अन्य लोग सो रहे थे। डरे-सहमे हम दोनों डंडा लेकर गेट पर गए और सड़क के दोनों तरफ नजरें दौड़ाईं, लेकिन अंधेरे में कुछ नजर नहीं आया। हालांकि गरजने और कई श्वानों के भौंकने की आवाजें लगातार आती रहीं। हमने डायल-100 पर फोन लगा दिया। इसके बाद डर से परिसर में ही रोशनी में बैठ गए।