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कोर्ट ने पूछा- 30 फरवरी कब आती है ...और कर दिया बरी

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Feb 14 2017 5:53PM | Updated Date: Feb 14 2017 5:53PM
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- तेज कुमार सेन 
इंदौर। चेक अनादरण के एक केस में परिवादी को कोर्ट में  30 फरवरी 2010 को रुपए उधार दिए जाने की बात कहना भारी पड़ गई। कोर्ट ने आरोपी को दोषमुक्त करार दिया। क्योंकि फरवरी में 30 तारीख कभी नहीं होती। 

दोस्त को रुपए दिए थे उधार
मामला इस प्रकार है कि एक रिटायर पुलिस अफसर के बेटे मुकेश दुबे निवासी सुखलिया ने सुखलिया के ही जितेंद्र सोनी के विरुद्ध चेक अनादरण का परिवाद दायर किया। इसमें कहा गया कि जितेंद्र उसका मित्र है। व्यावसायिक कार्य के लिए उधार मांगने पर उसने छह लाख रुपए दिए थे। इसके एवज में एक चेक दिया, जो 29 दिसंबर 2010 को बैंक में लगाया। 
 
दूसरे दिन बैंक से सूचना मिली कि खाते में पर्याप्त राशि न होने से चेक बाउंस हो गया। इस पर यह परिवाद लगाया गया। आरोपी जितेंद्र की ओर से एडवोकेट विकास शर्मा ने तर्क में कहा कि परिवादी ने चेक का दुरुपयोग किया है। उसने कोरा चेक दिया था, जिस पर हस्ताक्षर उसके हैं, अन्य इबारत उसके द्वारा नहीं लिखी गई है। 60 हजार के स्थान पर परिवादी ने छह लाख की राशि भरकर बैंक में पेश कर दिया।
 
परिवादी ने दिए विरोधाभासी बयान
सुनवाई के दौरान उस समय विरोधाभासी स्थिति बन गई जब परिवादी ने प्रतिपरीक्षण में यह कहा कि आरोपी ने उससे मकान बनाने के नाम पर यह राशि ली थी, जबकि परिवाद में व्यावसायिक कार्य हेतु देना बताया था। इसके अलावा कब कब यह राशि दी गई, यह पूछे जाने पर परिवादी ने बताया कि तीन किस्तों में छह लाख दिए थे। ढाई लाख 8 जनवरी 2007 और डेढ़ लाख रुपए 30 फरवरी 2010 को देना बताया। 
तीसरा भुगतान मार्च में किया था जो दो लाख का था, लेकिन उसकी तारीख उसे याद नहीं है।
 
प्रतिपरीक्षण के दौरान आरोपी के वकील ने इसे विरोधासी बताते हुए कहा कि 30 फरवरी तो कभी आती ही नहीं। इस तथ्य को कोर्ट ने अपने फैसले में भी उल्लेख किया है कि फरवरी माह में 30 दिवस कभी नहीं होते हैं, लीप के वर्ष में भी फरवरी 29 दिन की रहती है। 
 
लिखावट भी अलग
हैंडराइटिंग एक्सपर्ट योगिता सिंह की रिपोर्ट में भी यह बात स्पष्ट हुई कि चेक पर साइन तो आरोपी के हैं, लेकिन अन्य इबारत उसके द्वारा नहीं लिखी गई है। इसी तरह परिवादी ने किस स्रोत से यह राशि लाकर परिवादी को दी वह भी सिद्ध नहीं हो पाया। इस आधार पर कोर्ट ने निगोसिएबल एक्ट की धारा 138 से आरोपी को दोषमुक्त करार दे दिया।
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