रफी मोहम्मद शेख इंदौर। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन करने वाले विद्यार्थियों को उत्तीर्ण होने के काफी समय बाद मिलने वाली डिग्री की परेशानी बरकरार है। विवि में परीक्षा जनवरी से नवंबर तक कभी भी पास की गई हो, लेकिन डिग्री की पात्रता दिसंबर के पहले सोमवार को ही मानी जाती है और यही तारीख डिग्री पर अंकित रहती है। यानी विवि से जनवरी में परीक्षा पास की तो 11 महीने बाद दिसंबर में ही वास्तविक रूप से उत्तीर्ण माना जाएगा। इससे नौकरियों में अंतिम परीक्षा की तारीख नहीं होने की समस्या आती है और बड़ी कंपनियां इसे मानने के लिए तैयार नहीं होतीं। विद्यार्थियों की शिकायत के बाद इसे सुलझाने के लिए कमेटी तो बनाई गई, लेकिन मामला जस का तस ही रहा।
वास्तव में विवि का इसके पीछे यह करने का तर्क दीक्षांत समारोह है। पूर्व में विवि में दिसंबर के पहले सप्ताह दीक्षांत समारोह आयोजित होता था, जिसमें डिग्रियां देने का चलन था। विवि द्वारा इस समारोह के बाद ही विद्यार्थी को वास्तविक रूप से उत्तीर्ण माना जाता था। वर्षों से यही सिस्टम चला आ रहा है और इसी आधार पर दिसंबर के पहले सोमवार की तारीख डालकर डिग्री तैयार कर संबंधित विद्यार्थी को सीधे दे दी जाती है।
चार-चार साल तक दीक्षांत समारोह नहीं हुआ
अब दीक्षांत उस साल के अंत में तो ठीक कई-कई साल देरी से हो रहे हैं। बीच में करीब चार-चार साल तक दीक्षांत समारोह नहीं हुआ, लेकिन डिग्री अभी भी पहले की तरह ही बन रही है और इस पर हर साल के संभावित दीक्षांत समारोह की तारीख ही डाली जा रही है। यह दीक्षांत के बजाय विद्यार्थियों को ही सीधे दे दी जाती है, क्योंकि विद्यार्थी दीक्षांत समारोह का इंतजार नहीं करता। वैसे भी दीक्षांत समारोह में केवल मेरिट विद्यार्थियों को डिग्री मिलती है और बाकी को सीधे घर भेज दी जाती है।
फीस फाइनल में ही
सामान्यत: फाइनल ईयर की परीक्षा के फॉर्म के साथ विवि डिग्री की फीस लेता है। उसके बाद उसकी जिम्मेदारी होती है कि वह विद्यार्थी को डिग्री समय पर घर भेजे। दिसंबर की व्यवस्था के कारण ये वर्षों बाद भी तैयार कर घर नहीं भेजी जा सकी। उधर, परीक्षा में पास होने के बाद अगर विद्यार्थी एडमिशन या नौकरी की स्थिति में डिग्री के लिए आवेदन करता है तो उसे दोबारा फीस भरना पड़ती है। इस स्थिति में दिसंबर से पहले आवेदन करने पर उसकी डिग्री में आवेदन की तारीख डाली जाती है। इसमें भी परीक्षा पास होने की तारीख नहीं डलती।
वर्षों से होती आ रही शिकायत
इस परिपाटी को बदलने संबंधी शिकायतें विद्यार्थी वर्षों से करते आ रहे हैं। खासकर इंदौर के बाहर की बड़ी कंपनियों और विदेश जाकर पढ़ाई व नौकरी करने वाले विद्यार्थियों के लिए यह परेशानी का कारण बन जाता है। कंपनियों और विवि में केवल मार्कशीट होना जरूरी नहीं होता, बल्कि उसके साथ ही डिग्री भी मानी जाती है।
मार्कशीट में पास होने की तारीख और डिग्री में लिखी तारीख में कई महीनों का अंतर होता है। इससे कंपनियां उनकी सीनियरिटी कम कर देती हैं, साथ ही उन्हें स्पष्टीकरण भी देना पड़ता है। इसके बाद विद्यार्थी विवि को इसका स्पष्टीकरण देने के लिए चक्कर काटते हैं और फिर विवि को आर्डिनेंस का हवाला देना होता है।
कमेटी भी नहीं सुलझा पाई मामला- विवि ने इस समस्या के निराकरण के लिए एक कमेटी गठित की थी, जिसे विद्यार्थी को परीक्षाफल की तारीख के आधार पर डिग्री देने का मुद्दा हल करने को कहा गया था। कमेटी ने अपने स्तर पर बैठक की और इसे हल करने की दिशा में कदम भी उठाया, लेकिन अधिकारियों ने आर्डिनेंस और कार्यसमिति की बैठक का हवाला देते हुए इसमें परिवर्तन करने से इनकार कर दिया। इस प्रकार यह मामला सुलझ ही नहीं पाया।