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पुलिस की लगाम से सालभर पस्त रहे गुंडे-बदमाशों के मंसूबे

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jan 13 2017 10:46AM | Updated Date: Jan 13 2017 10:46AM
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मुकेश मुवाल इंदौर। पुलिस और लोगों की नाक में दम करने वाले गुंडे-बदमाशों को पिछले साल पुलिस ने अच्छा सबक सिखाया। उन्हें लाठी का स्वाद चखाने के साथ ही ऐसी सख्ती दिखाई कि जिलाबदर, रासुका व अन्य प्रतिबंधात्मक कार्रवाई का ग्राफ गिर गया। बदमाशों की सक्रियता कम हुई और उन्होंने गंभीर अपराध करना छोड़ दिया। 2016 के आंकड़े बयां करते हैं कि 2015 की तुलना में उक्त कार्रवाई लगभग आधी रह गई।

पहले सामान्य दिन हो या निगम, लोकसभा या विधानसभा के चुनाव, पुलिस फरार वारंटियों की धरपकड़ के साथ गुंडे-बदमाशों पर कार्रवाई करती थी। 2016 में इसमें अचानक बदलाव आया। आला अफसरों द्वारा मातहतों को हर बैठक में चेतावनी दी जाती थी कि क्षेत्र में बदमाशों ने गंभीर अपराध किए तो अफसरों की खैर नहीं। इसका असर ये हुआ कि जबरिया चंदा-हफ्ता वसूली, चोरी, डकैती, लूट, हत्या, अवैध शराब, नकली घी व जमीन की धोखाधड़ी में पकड़ाए आरोपियों को थाना प्रभारियों ने ऐसा सबक सिखाया कि जेल भेजने के बाद गए ज्यादातर बदमाशों ने जमानत से ही तौबा कर ली।

रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) : यदि किसी के भाषण, नारे या अपराध से ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए, जिससे बड़े पैमाने पर लॉ एंड आॅर्डर की स्थिति बन जाए या संबंधित व्यक्ति देश की एकता, अखंडता या भीतरी कानून व्यवस्था को उथल-पुथल कर सकता है, उसे एक बार में कम से कम एक साल के लिए इस कार्रवाई के जरिये जिले से बाहर की जेल भेजा जा सकता है। इसके लिए संबंधित जिले के एसपी को जिला दंडाधिकारी (कलेक्टर) को प्रस्ताव भेजना होता है। इसमें जरूरी नहीं कि आरोपी पर पूर्व में भी कोई अपराध दर्ज हो। माह में एक बार हाई कोर्ट की एडवाजरी कमेटी के समक्ष आरोपी, जिला दंडाधिकारी व एसपी की ओर से एक अफसर की पेशी होती है। तब ये कमेटी रासुका लगाने के कारणों की समीक्षा करती है।

जिलाबदर (मप्र राज्य सुरक्षा कानून) : ये राज्य का कानून है, जो आदतन अपराधियों के लिए होता है। बदमाश लूट, हत्या, चाकूबाजी व अन्य संगीन अपराध लगातार करता है। इससे क्षेत्र में दहशत का माहौल बन जाता है। उसे छह माह से एक साल तक के लिए संबंधित जिले से जुड़े पांच जिलों की सीमा से दूर जाने का आदेश दिया जाता है। चूंकि, बाहरी जिलों में उसे कोई नहीं पहचानता, इसलिए उसका भय नहीं रहता। नोटिस देने के पांच दिन में संबंधित को जिला छोड़ना होता है। इसके उल्लंघन पर गिरफ्तारी की जाती है।

जरूरत पड़ी तो बढेगी कार्रवाई
गुंडे-बदमाशों पर निगरानी रखकर की गई कार्रवाई की मॉनिटरिंग कराई जा रही है। जरूरत पड़ने पर ये प्रतिबंधात्मक कार्रवाई बढ़ाई जाएगी।
हरिनारायणचारी मिश्रा (डीआईजी)

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