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बिना जमीन 57.12 करोड़ में थमा दिया विकास का ठेका

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jan 10 2017 10:44AM | Updated Date: Jan 10 2017 10:44AM
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विनोद शर्मा  इंदौर। स्कीम-165 के नाम पर आईडीए अब तक हवा में तीर छोड़ते आया है। किसानों से जमीन लेकर स्कीम के खांके को मैदानी रूप देने में पूरी तरह नाकाम रहे आईडीए के पदाधिकारियों ने बगैर जमीन के ही 24 महीने की समयसीमा के साथ 57.12 करोड़ की सड़कें बनाने का ठेका पीडी अग्रवाल को दे डाला। अब अग्रवाल आईडीए पर मुआवजा क्लेम लगा रहे हैं।

आईडीए ने स्कीम के बायपास से लगे हिस्से के विकास के लिए 14 दिसंबर 2011 को टेंडर जारी किए थे। 13 जनवरी 2012 तक कंपनियों ने टेंडर डाले। टेंडर कॉस्ट थी 52 करोड़, 49 लाख 32800 रुपए। पीडी अग्रवाल इन्फ्रास्ट्रक्चर, 6 जॉय बिल्डर कॉलोनी को 8 प्रश अधिक दर में 10 मई 2012 को वर्कआॅर्डर दे दिया। 5.06 करोड़ की बैंक गारंटी देने के बाद जब कंपनी मौके पर काम करने पहुंची तो पता चला कि जिस आईडीए ने ठेका दिया है, जमीन उसके नाम है ही नहीं। बहरहाल, कंपनी तीन साल से मुआवजा मांग रही है लेकिन आईडीए सुनने को तैयार नहीं है।

ढाई साल बाद जारी हुआ भू-अर्जन अवॉर्ड

आईडीए ने टेंडर निकाले थे दिसंबर 2011 में और वर्कआॅर्डर दिया था मई 2012 में। जबकि जमीन के अधिग्रहण के लिए कलेक्टर इंदौर ने अवॉर्ड पारित (प्रकरण : 01अ82/11-12) किया था 14 नवंबर 2014 को। 40.318 हेक्टेयर जमीन के लिए जारी 119,72,138,20 रुपए का यह अवॉर्ड पहला था, इसके बाद कोई अवॉर्ड पारित नहीं हो सका। तीन महीने में आईडीए को कोर्ट में पैसा भरकर जमीन का कब्जा लेना था, लेकिन वह इस अवधि में सिर्फ 10 करोड़ रुपए ही चुका पाया।

जैसे ही जमीन मिलेगी डेवलपमेंट कर देंगे
जब कंपनी ने आईडीए से संपर्क किया तो अधिकारियों ने तर्क देते हुए कहा कि जमीन जल्द मिल जाएगी। इसीलिए टेंडर जारी किया है ताकि जमीन मिलने के बाद कागजी कवायदों में ज्यादा वक्त न लगे और विकास जल्द
शुरू हो।
हकीकत यह थी कि 350 हेक्टेयर (865 एकड़) में से 50 हेक्टेयर जमीन प्रशासन को मुआवजे के आधार पर लेना थी। 40 हेक्टेयर सरकारी जमीन है। बाकी के लिए आईडीए किसान और जमीन मालिकों से एग्रीमेंट कर चुका है। पैसा नहीं दे पाया।

कंपनी को हुआ भारी नुकसान

पीडी अग्रवाल इन्फ्रास्ट्रक्चर ने 57 करोड़ का ठेका लेने के बाद 10 प्रश के हिसाब से 5 करोड़ रुपए बैंक गारंटी दी थी। जमीन नहीं है आईडीए ने यह बात कंपनी को नहीं बताई। मैदान में जाने के बाद कंपनी को पता चला। कंपनी ने कई पत्र लिखे। जवाब नहीं मिला। उल्टा, बैंक गारंटी जब्त करने की तैयारी शुरू कर दी। जिसे कंपनी ने कोर्ट में चुनौती दी। तब कहीं जाकर बैंक गारंटी बची। पूरी लड़ाई 2014-15 तक चली। कंपनी को ब्याज का तो नुकसान हुआ ही, अधिकारी पैसे के साथ कंपनी की दी गाड़ियां तक वापरते रहे।

आईडीए दे मुआवजा
कंपनी के एक पदाधिकारी ने बताया कि काम के लिए 24 महीने की समयसीमा तय की थी। यदि इसमें कंपनी काम नहीं करती तो रोज पेनल्टी लगती। बैंक गारंटी काटी जाती। बिना जमीन के ही आईडीए ने ठेका दे दिया तब भी अधिकारियों ने हमारी बैंक गारंटी जब्त करना चाही, जबकि गलती कंपनी की थी भी नहीं। गलती आईडीए की है तो मुआवजा उसे देना चाहिए।

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