रफी मोहम्मद शेख इंदौर। तय समय पर परीक्षा व रिजल्ट, अधिकारियों-एचओडी और कर्मचारियों से सेटिंग तथा अच्छे समय की वेटिंग... यही सबकुछ इस साल देअविवि के नए कुलपति डॉ. नरेंद्र धाकड़ के साथ हुआ। पहले नियुक्ति, उसके बाद प्रक्रिया पर विवाद, कार्यपरिषद सदस्य के साथ संबंधों पर लगातार चर्चा, परीक्षा व रिजल्ट पर घेरे जाने और अधिकारियों-शिक्षकों की नाराजगी के सवालों के साथ ही कुलपति के समक्ष नए साल में भी चुनौती रहेगी।
7 मई 2016 को 13 साल के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार राज भवन ने डॉ. नरेंद्र धाकड़ को देअविवि की कुलपति की कुर्सी सौंपी। इससे पहले विवि का समय केवल नए कुलपति के आने की ऊहापोह में बीता। इसके बाद उम्मीद तो बहुत कुछ अच्छे की थी, लेकिन गत आठ महीने में उससे ज्यादा विवाद सामने आए हैं। उनकी नियुक्ति के पहले महीनों तक कुलपति चयन समिति में विवि प्रतिनिधि पर घमासान चला। तीन बार प्रतिनिधि बदले गए। आखिरकार मामला कोर्ट में ही जाकर खत्म हुआ।
नियुक्ति और प्रक्रिया पर सवाल
कुलपति के खिलाफ पूर्व में चल रहे प्रकरण और हुई कार्रवाई को छुपाने की बात सामने आई तो राज भवन द्वारा कुलपति की नियुक्ति प्रक्रिया पर ही सवाल उठाए गए। इसमें सबसे बड़ा सवाल चयन समिति द्वारा दो-दो रिपोर्ट तैयार करने, कुलपति का नाम पहले से ही निश्चित होने का उठाया गया, जिस पर आज तक जवाब नहीं आया है। कुलपति ने इस मामले में चुप्पी साध रखी है। इसके अलावा समय-समय पर उनके, उनसे संबंधित जैन दिवाकर कॉलेज और अन्य मामले भी सामने आते रहे हैं।
परीक्षा और रिजल्ट का सवाल
विवि में सबसे बड़ा सवाल समय पर परीक्षा और उसके बाद रिजल्ट का है। कई साल से सेमेस्टर सिस्टम लागू होने के बाद न तो समय पर परीक्षाएं हो पा रही हैं और न ही तय समय में रिजल्ट घोषित हो रहे। साल के अंत में हुई परीक्षाएं पहली बार समय पर कराई गर्इं, लेकिन सवाल रिजल्ट का है, क्योंकि दो बार से परीक्षाएं तो समय पर हो रही हैं, लेकिन रिजल्ट में फिसड्डी साबित हो रहे हैं।
सबको साथ लेकर चलना
कुलपति के सामने न केवल बाहरी रोड़े हैं, बल्कि अंदर भी सबको सेट करना बड़ी चुनौती है। इसके लिए आठ महीने से वे सेटिंग के लिए प्रयासरत हैं। आते ही कर्मचारी संगठन गुस्सा हो गए, सेल्फ फाइनेंस और डेली वेजेस कर्मचारी भी नाखुश थे और अब एचओडी के बदलाव के बाद शिक्षकों में भी नाराजगी है। उनकी कोशिश इसे दूर करने की होगी। कार्यपरिषद के एक सदस्य के करीबी होने का नुकसान उन्हें अन्य को सेट करने में उठाना पड़ रहा है। वहीं उच्च शिक्षा विभाग के अधिकारी भी विरोध में हैं।
वेटिंग आखिर कब तक
उधर, कुलपति का कहना है वे सब ठीक करने के लिए ही काम कर रहे हैं, वेट कीजिए। उन्होंने अभी तक अपने कदम संभल-संभलकर रखे हैं। एचओडी बदलना हो या अन्य बदलाव हो, किसी भी मामले में कोई निर्णय लेना हो या फिर अन्य कोई काम। वे सीधे निर्णय लेने से बचे हैं। अब नए साल में संभावना है कि कुलपति कुछ कड़े निर्णय लें, ताकि उनके पूर्व प्रशासनिक अनुभव, पैठ और पकड़ का अंदाजा सभी को हो। साऊ फेस्ट में हेमामालिनी को बुलाने का कथित प्रेम हो या दैनिक वेतनभोगियों व सेल्फ फाइनेंस कर्मचारियों को स्थायी करने का मुद्दा, बीएड सहित अन्य कॉलेजों पर कड़ी कार्रवाई आदि भी चुनौतीभरी रहेगी।