विनोद शर्मा इंदौर। विधानसभा से लेकर हाउसिंग सोसायटियों की मनमानी पर अंकुश के लिए बनी एसआईटी तक जनकल्याण हाउसिंग सोसायटी की मनमानी के चर्चे आम हैं। संस्था संचालकों ने सहकारिता विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर उस जमीन पर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से 2010 में 777 प्लॉटों का आवंटन-पत्र जारी करा दिया, जिसके मालिकाना हक को लेकर मामला हाई कोर्ट में विचाराधीन है। आवंटन-पत्र पाने वाले सदस्यों को अब तक प्लॉटों का कब्जा न मिलने की यह भी बड़ी वजह है, जिसे सहकारिता विभाग के अधिकारी अब टालते नजर आते हैं।
इस पूरे मामले का खुलासा अपने खिलाफ एक के बाद एक हो रही शिकायतों का जवाब देते हुए जनकल्याण गृह निर्माण सहकारी संस्था के संचालक मंडल ने गलती से कर दिया। 3 अक्टूबर 2016 को नगर निगम की कॉलोनी सेल उपायुक्त को सौंपे गए जवाब में संचालकों ने कहा है कि संस्था के स्वामित्व के ग्राम पीपल्याकुमार स्थित सर्वे नं. 248/3/1 का प्रकरण हाई कोर्ट में विचाराधीन है। मूल विक्रेता की मृत्यु के बाद उनके वारिसों द्वारा निचली अदालत में वाद प्रस्तुत किया था। प्रकरण संस्था के पक्ष में होने के बाद अपील दायर की गई थी। अब तक हाई कोर्ट ने संस्था के खिलाफ कोई आदेश पारित नहीं किया। न ही प्रकरण में स्टे है।
डायवर्शन हो गया, टीएंडसीपी में अटका मामला
सर्वे नं. 248/3/1 की 0.890 हेक्टेयर जमीन राजस्व रिकॉर्ड में जनकल्याण गृह निर्माण सहकारी संस्था के नाम है, लेकिन पीपल्याकुमार निवासी लीलाधर पिता रामप्रसाद खाती, नरेंद्र पिता रामप्रसाद, उमरावबाई पति रामप्रसाद खाती इस पर अपना मालिकाना हक जताते हैं। इसी को लेकर संस्था और किसानों के बीच मार्च 2007 से केस (सेकंड अपील 322/2007) विचाराधीन है। बावजूद इसके सोसायटी के संचालकों ने उक्त जमीन के साथ 364432 वर्गफीट जमीन का डायवर्शन (3/अ-24/12-13) 31 दिसंबर 2013 को कराया था। संस्था के आवेदन पर 2 जनवरी 2016 को टीएंडसीपी में नक्शा भी प्रस्तुत हो गया, लेकिन मंजूर नहीं हुआ।
सदस्यों की पीड़ा
विवादित जमीन पर कराया आवंटन
योगेश और सानेश शुक्ला के नाम पर महालक्ष्मी नगर के प्लॉट नं. 311 व 312 उक्त विवादित जमीन पर ही आते हैं। इन प्लॉटों का आवंटन भी मुख्यमंत्री के माध्यम से कराया गया।
पैसे लिए 1500 के, दिया 1000 वर्गफीट
संस्था ने द्वारकाधीश कॉलोनी निवासी बद्रीलाल गुप्ता को महालक्ष्मी नगर में 1982 में 1500 वर्गफीट का प्लॉट (501बी) दिया था। उन्होंने प्लॉट मनी, अंशपूंजी और विकास शुल्क पेटे पूरा पैसा दिया। संस्था ने 2008 में कहा अब आपको प्लॉट नं. 327 देंगे। टीएंडसीपी से मई 2004 में अनुमोदित नक्शा दिखाते हुए प्लॉट 1500 वर्गफीट बताया, लेकिन रजिस्ट्री 1000 वर्गफीट की ही करके दी। अब संस्था न 500 वर्गफीट जमीन दे रही है और न उसके पेटे जमा कराए गए पैसे लौटा रही।
आवंटन-पत्र दिया, प्लॉट नहीं
भगवानदीन नगर निवासी डॉ. सुधीर पिता आरएन शर्मा ने 1980 में संस्था की सदस्यता ली। प्लॉट कीमत और विकास शुल्क लेकर संस्था ने सितंबर 2011 में प्लॉट नं. 747 का आवंटन-पत्र दिया। इसके बाद अब तक न कब्जा दिया, न ही रजिस्ट्री कराई जा रही।
मुख्यमंत्री से ही करेंगे बात
संस्था की मनमानी और सहकारिता विभाग से एसआईटी तक के अधिकारियों की मिलीभगत से परेशान सदस्य अब मुख्यमंत्री के समक्ष अपनी पीड़ा रखेंगे, जिन्होंने प्लॉट आवंटित किए थे। इस संबंध में जल्द ही पीड़ित प्लॉटधारक आरटीआई कार्यकर्ता दिलीप जैन के साथ भोपाल में प्रेस कॉन्फ्रेंस लेंगे व धरना देंगे।