प्रमोद जैन इंदौर। जब हमें सफाई में रहना पसंद है तो निश्चित ही भगवान को भी सफाई पसंद होगी...यही सोचकर मंदिरों के सामने झाड़ू लगाती हूं...सफाई भी हो जाती है और सेवा भी....हां, यदि काम से खुश होकर कोई मन से कुछ दे जाए तो साथ में रोटी की जुगाड़ भी हो जाती है...वरना भीख नहीं मांगती...।
खिलखिलाती हंसी और खुद्दारी के मुखर स्वर वाली यह लड़की 20 साल की प्रीति सक्सेना है, जो मंदिरों के सामने पूरी शिद्दत के साथ सफाई अभियान चलाती हैं। दिव्यांग प्रीति की खास बात यह है कि इसके लिए उन्हें किसी ने नहीं बोला, बल्कि वे स्वयं इस काम को करती हैं। हालांकि आम लोगों के लिए उनका यह काम किसी सीख से कम नहीं है।
नौकरी करना चाहती है
रामनगर भमोरी में रहने वाली प्रीति जन्म से ही दिव्यांग हैं। माता-पिता को कभी देखा ही नहीं। नाना ने पाला है। प्रीति का कहना है, अब मैं उन्हें पालती हूं। प्रीति नौकरी करना चाहती हैं, लेकिन शारीरिक अक्षमता के कारण आत्मबल पर कोई ध्यान नहीं दे पाता, इसलिए नौकरी नहीं मिलती। स्वच्छता अभियान के सार्थक अर्थ को बताती प्रीति में दूसरा आकर्षण है उनकी खुद्दारी। वो किसी से कोई भीख नहीं लेती। सफाई के बदले कोई मदद करे तो स्वीकार है। प्रीति कहती हैं मुझे किसी की उतरन पहनना पसंद नहीं, हालांकि मैंने कभी 50 रुपए से ज्यादा के कपड़े नहीं खरीदे।