अनिल धारवा इंदौर। प्राकृतिक वातावरण से परिपूर्ण और सोलर सिटी के रूप में ब्रांडिंग कर विनायक सिटी कॉलोनी का जमकर प्रचार-प्रसार किया गया, वहां सोलर सिस्टम तो दूर विकास के नाम पर एक पत्थर भी नहीं लगा। चार साल बीत गए और प्लॉट के नाम पर लोगों के हाथ कागजों से ज्यादा कुछ नहीं लगा। अब तक कॉलोनाइजर ने न तो खरीदारों को प्लॉट दिए और न ही उनके द्वारा जमा कराई राशि लौटाई।
शहर से 15 किमी दूर ग्राम दतोदा में विनायक रियल विल्ट प्रालि के बैनर तले मैनेजिंग डायरेक्टर उमेश जिंदल ने विनायक सिटी कॉलोनी काटकर दो साल में इसे विकसित करने की घोषणा की थी। यह भी जोर-शोर से प्रचारित किया गया कि पूरी कॉलोनी सोलर सिस्टम से लैस होगी। इन झांसों में आकर सैकड़ों मध्यमवर्गीय परिवारों ने आसान किस्तों में प्लॉट खरीद लिए। इनकी न तो रजिस्ट्री कराई गई और न ही प्लॉट का कब्जा दिया गया।
वैधता को लेकर भी संशय
पीड़ितों के मुताबिक कॉलोनाइजर ने कहा था कॉलोनी पूर्णत: वैध है, लेकिन जब हमने जानकारी निकाली तो पता चला कि इसके लिए डायवर्शन और टीएंडसीपी की प्रक्रिया ही नहीं की गई। इस संबंध में पूछने पर कॉलोनाइजर द्वारा टाल दिया गया। पीड़ित गजेंद्र सिंह ने बताया उन्होंने 800 वर्गफीट का प्लॉट खरीदा था। कुछ समय पहले पुलिस से शिकायत की थी, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
प्लॉट या जमा राशि दिलाने की मांग
कॉलोनाइजर ने चार साल में कॉलोनी विकसित करने का वादा किया था। रुपए जमा करने के बाद भी न तो प्लॉट मिला और न ही रजिस्ट्री कराई। प्रशासन से प्लॉट या रुपए दिलाने की गुहार लगाई है।
-राकेश मेवाड़ा, शिकायतकर्ता
70 लोगों को दिए प्लॉट
2012 में कॉलोनी काटी थी। पुलिस में शिकायत हुई। कोर्ट में केस चल रहा है। 70 लोगों को सांईकृपा कॉलोनी में प्लॉट दे दिए और रजिस्ट्री भी करा दी है।
-उमेश जिंदल, कॉलोनाइजर