विनोद शर्मा इंदौर। एमआर-10 पर साईकृपा कॉलोनी काटने वाली मारुति गृह निर्माण सहकारी संस्था के नाम पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट (टीएंडसीपी) ने 8.30 एकड़ जमीन पर महीनेभर पहले कॉलोनी का नया नक्शा मंजूर कर दिया है। उधर, बताया यह जा रहा है कि जिस जमीन की टीएनसी हुई है, वह कॉलोनी काटते वक्त इन्फॉर्मल सेक्टर के लिए छोड़ी थी। संस्था ने जमीन कलेक्टर को सौंपी। कलेक्टर ने श्रम आयुक्त को, श्रमायुक्त ने बीड़ी श्रमिकों को। हाउसिंग बोर्ड ले-आउट मंजूर करवाकर पूर्व मुख्यमंत्री से शिलान्यास भी करवा चुका है। यह बात अलग है संस्था संचालकों ने हेराफेरी से पहले लगा शिलालेख फेंक दिया।
खजराना की 58.89 एकड़ जमीन पर मारुति गृह निर्माण सहकारी संस्था ने टीएडंसीपी से 22 अगस्त 1988 को साईकृपा कॉलोनी का ले-आउट मंजूर करवाया था। नियमानुसार 15 प्रतिशत (करीब 8.80 एकड़) भूमि इन्फॉर्मल सेक्टर के लिए छोड़ना थी। सर्वे नं. 115, 119, 144, 145 और 166 पर जमीन छोड़ी गई। तत्कालीन नियमों के अनुसार गंदी बस्ती उन्मूलन मंडल को जमीन देते हुए जनवरी 1989 को एसडीएम को कब्जा दे दिया। कलेक्टर ने मंडल से जमीन ली। श्रम आयुक्त कार्यालय को दे दी। श्रम आयुक्त ने बीड़ी श्रमिकों के घर के लिए हाउसिंग बोर्ड को दे दी। बोर्ड ने मंजूरी के लिए टीएनसी में ले-आउट लगाया लेकिन मंजूर नहीं हुआ। अब 25 अक्टूबर को टीएंडसीपी ने संस्था के पक्ष में ले-आउट मंजूर कर दिया। संस्था के सर्वेसर्वा राजेंद्रनाथ अग्रवाल हैं, जो हाउसिंग सोसाइटियों के मास्टर प्रेम गोयल के साले हैं। संस्था में पहले उन्हीं की दखल थी।
आपत्ति लगाई जो खारिज कर दी
ज्वॉइंट डायरेक्टर टीएंडसीपी द्वारा 17 अगस्त को प्रकाशित जाहिर सूचना के आधार पर 813/9 नंदानगर निवासी पप्पू मालवीय ने आपत्ति ली। उन्होंने दस्तावेजी प्रमाणों के साथ प्रस्तुत अपने आपत्ति में पूछा कि जमीन शासन के पास थी तो किस विभाग या किस अधिकारी ने जमीन संस्था को सौंपने का आदेश दिया? कलेक्टर ने इसके लिए कौनसा अनुबंध किया? मालवीय का कहना है टीएनसीपी ने ले-आउट अनुमोदित किया है, उसी की नोटशीट में जमीन श्रम आयुक्त को सौंपने और हाउसिंग बोर्ड द्वारा अनुमोदन के लिए किए आवेदन का जिक्र है फिर अधिकारियों ने पुराने पन्ने क्यों नहीं पलटाए।
संस्था के पास फिर कैसे पहुंची जमीन
जो जमीन कलेक्टर व श्रम आयुक्त के हाथ से होते हुए बीड़ी श्रमिकों के लिए हाउसिंग बोर्ड पहुंची थी, उस पर संस्था ने मालिकाना हक दिखाया क्योंकि सरकार को सौंपने के बावजूद खसरा बी-1 व बी-2 पर संस्था का नाम था। इस संबंध में न कलेक्टोरेट में कोई लिखित प्रमाण है। न श्रम आयुक्त कार्यालय या हाउसिंग बोर्ड में।
पटवारी, तहसीलदार से लेकर नजूल अधिकारी तक ने इस काम में संचालकों का साथ दिया। हाउसिंग बोर्ड व श्रम आयुक्त कार्यालय से एनओसी लिए बिना नजूल अधिकारी ने पुराने तथ्यों को छिपाते हुए 22 जुलाई 2014 को जमीन की एनओसी (971) जारी कर दी थी।
तीन साल में दूसरा नक्शा मंजूर
संस्था ने 13 जून 2016 को आवेदन किया। 25 अक्टूबर 2016 को टीएनसी हो गई। 10 जनवरी 2014 को भी डिपार्टमेंट टीएनसी(333-340/आरएसपी-7/13/नग्रानि/2013) कर चुका है। दोनों नक्शों में इन्फॉर्मल सेक्टर के लिए छोड़ी गई जमीन का जिक्र करते हुए सामान्य वर्ग के लिए भू-खंड विकास की अनुमति दी गई है।
ईडब्ल्यूएस व एलआईजी के हैं प्लॉट
जमीन की टीएनसी में संस्था संचालकों ने कहा उक्त जमीन पर आरक्षित भू-खंडों के स्थान पर ईडब्ल्यूएस व एलआईजी विकसित करेंगे। पहले 13 प्रतिशत पार्क के लिए जमीन छोड़ी थी जो नए ले-आउट में नियमानुसार 10 प्रतिशत छोड़ी।
ये है पूरा माजरा
संस्था की जमीन : 109/1, 109/2, 110/2, 112, 113, 115, 117/1, 117/2, 117/3, 117/4, 118/1/1, 118/1/2, 118/1/3, 118/1/4, 118/2, 119, 120/2, 116/1, 116/2, 116/1444/1, 116/1444/2, 144, 145 और 166। कुल 58 एकड़।
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मंडल को सौंपी : जावक 1058। तारीख 10 जनवरी 1989
कब्जा रसीद : 24 जनवरी 1989 को जारी शासन के पत्र(226/6426/32-1/88) के अनुसार मंडल के नाम कब्जा रसीद जारी की गई जिसे मंडल के परियोजना अधिकारी रहे मोहन मैथिल ने प्राप्त की।
टीएंडसीपी में उल्लेख : 16 अक्टूबर 1990 को लिखा है मंडल ने संशोधित अभिन्यास के हिसाब से 15 प्रतिशत जमीन का कब्जा प्राप्त किया।
हाउसिंग बोर्ड ने किया आवेदन : 4 दिसंबर 1991 को लिखी टीप के अनुसार जमीन श्रम आयुक्त को आवंटित की जा चुकी है। बीड़ी श्रमिकों के आवास के लिए हाउसिंग बोर्ड ने अनुमोदन आवेदन प्रस्तुत किया लेकिन अभी अनुमोदन नहीं किया।