गौरीशंकर दुबे इंदौर। रिटायरमेंट की उम्र 60 साल होती है और जिंदगी की इस अवस्था तक पहुंचते -पहुंचते बहुत से लोग आराम कुर्सी और पलंग पर बहुत सा समय खर्च करते हैं। 40-50 तक उम्र आते -आते विभिन्न विधाओं के जानकार मान लेते हैं कि बहुत हो चुका। अब सिखाना ही सिखाना है। सीखना क्या, सब तो सीख चुके। ऐसा नहीं है कि दुनिया में 60-62 के लोग कुछ नया नहीं सीखते, लेकिन भारत जैसे देश में कोई 90 वर्षीय नामी गिरामी व्यक्ति खुद को छात्र मानकर उर्दू सीख रहे हैं, तो यह सुखद आश्चर्य के साथ उन लोगों के दिशासूचक है, कम उम्र में ही थक गए हैं। पूर्व वरिष्ठ महाधिवक्ता और वकील आनंदमोहन माथुर जिंदगी के 90वें बसंत में उर्दू सीख रहे हैं। उनके उस्ताद हैं 75 वर्षीय शकूर खां साहब।
उर्दू और कोर्ट कचहरी का आपस में बड़ा संबंध
माथुर साहब कहते हैं -उर्दू और कोर्ट कचहरी का आपस में बड़ा संबंध है। हिन्दी फिल्मों में जब कोर्ट कचहरी में कार्रवाई होती है, तो उसमें अधिकतम शब्द उर्दू के ही होते हैं। ...तमाम गवाहों के बयानात के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि मुल्जिम...। आप पुलिस स्टेशन चले जाइये वहां भी मर्ग, तफ्तीश, मामला, गवाह, दावा, मुद्दा जैसे शब्दों को बोला और लिखा जाता है। मुझे इस बात का मलाल नहीं है कि मैं 90 बरस में उर्दू सीख रहा हूं, बल्कि इस बात की खुशी है कि 90 बरस में भी मेरे भीतर बैठा छात्र जिंदा है। मेरे बाबा खुमानसिंह माथुर उर्दू और फारसी बोल-लिख लेते थे। मेरे घर में उर्दू का माहौल था, लेकिन अधिकार से लिखने और बोलने की कमी रह गई थी, जिसे पूरा कर रहा हूं। उस्ताद शकूर खां साहब उर्दू स्कूल से रिटायर्ड प्रिंसिपल हैं। उनके सिखाने का तरीका अच्छा है। वे हिन्दी के क का कि की, ख खा खि खी की तरह सिखाते हैं।
खुद से सीखी मराठी...
माथुर साहब कहते हैं -कंचनबाग आने के पहले मैं और परिवार नारायणबाग, स्नेहलतागंज, रामबाग में रहा। वहां मराठीभाषी लोग ज्यादा रहते हैं। उन्हें सुनते -सुनते मराठी बोलने लगा, बल्कि लिखने भी लगा। मैंने महेश शर्मा (जयशिव) से गुजराती, श्यामप्रसाद भट्टाचार्य से बांग्ला सीखी। एक दर्जन बांग्ला उपन्यास पढ़ चुका हूं। अधिकार से लिखने के लिए सोवनदेव रॉय की मदद ले रहा हूं। एक जमाने में पिता के पास हजार रुपए नहीं थे, इसलिए डॉक्टर नहीं बन सका। इसलिए हिन्दी और अंग्रेजी छात्र जीवन से आती है।
शेरों शायरी के शौकीन
निदा फाजली साहब का शेर -बच्चा बोला देखके मस्जिद आलीशान। अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान।। माथुर साहब का आॅल टाइम फेवरेट शेर है। दीपक जुगनू चांद सितारे सब एकसे हैं। इस दुनिया में इश्क के मारे सब एक से हैं।। जिस दिल में तू है मौला उसके मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे सब एकसे हैं -शेर हरेक को जीवन में उतारना चाहिए, ऐसा आग्रह वे भारतवासियों से करते हैं।
राग रागिनी भी सीख चुके
माथुर साहब ने इसी उम्र में राग रागिनी के साथ हारमोनियम बजाना भी सीखा है। उनके गुरु डॉ. मोहन मुंगरे हैं।