रफी मोहम्मद शेख इंदौर। देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में मानद डॉक्टरेट की उपाधि केवल कागजों तक ही सीमित रह गई है। जून में हुई कार्यपरिषद की बैठक में पांच शख्सीयतों को यह उपाधि देने का निर्णय कार्यपरिषद ने लिया था। एक कार्यपरिषद सदस्य द्वारा अभिनेता धर्मेंद्र को भी इस लिस्ट में शामिल कराना भारी पड़ गया है।
9 जून को हुई यूनिवर्सिटी की कार्यपरिषद बैठक में लोकसभा अध्यक्ष व सांसद सुुमित्रा महाजन और प्र्रख्यात शायर राहत इंदौरी, अभिनेता धर्मेंद्र सहित मालवा के कवि नरहरि पटेल और कबीर गायक प्रहलाददास टिपानिया के नाम दीक्षांत समारोह में मानद उपाधि के लिए प्रस्तावित किए थे। इसके अतिरिक्त अन्य नाम भी शामिल करने की योजना थी। इन नामों की स्वीकृति के लिए आगे प्रक्रिया की जाना थी, जो पांच महीने गुजरने के बाद भी एक कदम आगे नहीं बढ़ी है।
अभिनेता से प्रोफेशनल संबंध
प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ने के पीछे मुख्य कारण अभिनेता धर्मेंद्र का नाम बताया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार जिस कार्यपरिषद सदस्य ने धर्मेंद्र का नाम इस लिस्ट में जुड़वाया था, उनसे उनके परिवार से प्रोफेशनल संबंध है। इस कारण उन्हें फायदा देना था। प्रश्न उठाया जा रहा है कि मानद उपाधि स्थानीय के अतिरिक्त ऐसे नाम को दी जाती है, जिनकी उल्लेखनीय सेवाएं रही हो। फिल्म इंडस्ट्री में धर्मेंद्र से बढ़कर कई हस्तियां हैं और सबसे बड़ी बात उनका प्रदेश से कोई नाता नहीं है। जब धर्मेंद्र के नाम पर आपत्ति उठी तो यह प्रक्रिया ठंडी कर दी गई।
नाम चुनकर भूल गए
सबसे ज्यादा आहत वो शख्सीयतें हुई हैं, जिनके नाम प्रारंभिक रूप से सामने आए थे। यह वास्तव में उनके साथ मजाक भी है। पहले समारोह जुलाई में प्रस्तावित था, जो निरस्त होकर अब 1 दिसंबर को हो रहा है। अगर यूनिवर्सिटी चाहती तो पूरी प्रक्रिया की जा सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। अब कुलपति अगले दीक्षांत में उपाधि देने की बात कह रहे हैं, लेकिन अभी क्यों नहीं, इसका कोई जवाब उनके पास नहीं है।
अब तक 15 को दी
अब तक यूनिवर्सिटी 15 शख्सीयतों को मानद उपाधि दे चुकी हैं। पहली बार पहले दीक्षांत समारोह में 1989 को नौ लोगों को दी गई थी, फिर 2007 में दी गई। अब यह तीसरा मौका था। अब तक पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा, दौलतसिंह कोठारी, डीआर भवालकर, डॉ. शिवमंगलसिंह सुमन, महेश्वर दयाल, वीएस अरुणाचलम्, लता मंगेशकर, बसंत गौरीकर, सुनील गावस्कर, राहुल बजाज, वी. नारायणमूर्ति, शिव नाडार, एस. रामदुराई, बी. कुरील व करसनभाई पटेल को प्रदान की गई है। सत्यम के रामलिंगम राजू को भी देने का निर्णय हुआ, लेकिन घोटाले में नाम आने के बाद उनका नाम वापस ले लिया।
यह है वास्तविक प्रक्रिया
मानद उपाधि ऐसी शख्सीयतों को दी जाती हैं, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया हो। इसके अलावा राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में ख्यात और स्थानीय शख्सीयत भी इसमें शामिल की जाती हैं। सबसे पहले स्टैंडिंग कमेटी प्रस्ताव पारित करती है, जिसे कार्यपरिषद मंजूरी देकर कुलाधिपति के पास राजभवन भेजती है। यहां इन नामों की जांच कमेटी का गठन किया जाता है, जो तय करती हैं कि भेजे गए नाम इस लायक हैं या नहीं। कमेटी की रिपोर्ट के बाद संबंधित शख्सीयत से इसके लिए बाकायदा सहमति ली जाती है। इसके बाद मामला फिर से कार्यपरिषद में आता है। फिर कुलाधिपति विशेष रूप से कार्यपरिषद की बैठक की अध्यक्षता करते हैं और इन नामों को मंजूरी दी जाती है। इस प्रक्रिया में करीब तीन माह लगते हैं।
अभी तय नहीं हो पाया
यह मामला अभी नहीं हो पाया है। अगले दीक्षांत समारोह के पहले यह प्रक्रिया पूरी की जाएगी, उसके बाद दिए जाएंगें।
- डॉ. नरेंद्र धाकड़, कुलपति