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निजी कॉलेजों के रेग्युलर कोर्सेस की फीस तय करेगी यूनिवर्सिटी

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Oct 27 2016 10:19AM | Updated Date: Oct 27 2016 10:19AM
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रफी मोहम्मद शेख इंदौर। प्रदेश में चल रही प्राइवेट कॉलेजों की मनमानी पर अब सरकार लगाम कसने जा रही है। इंजीनियरिंग, मेडिकल और मैनेजमेंट कोर्सेस के समान ही प्राइवेट कॉलेजों के बीए, बीकॉम व बीएससी जैसे रेग्युलर कोर्सेस की फीस अब यूनिवर्सिटी तय करेगी। अगले सत्र से इसके लागू होने की संभावना है। इसका आधार नेशनल फीस कमेटी की अनुशंसाओं को बनाया जाएगा। इससे फीस में एकरूपता आने की संभावना है।

कॉलेजों में चलने वाले पारंपरिक कोर्सेस में फीस कंट्रोल का प्रस्ताव प्रदेश की यूनिवर्सिटीज की सर्वोच्च स्टैंडिंग और उसके बाद को-आॅर्डिनेशन कमेटी में रखा जा रहा है। इसमें पारित होने के बाद इसे लागू किया जाएगा। फीस कंट्रोल करने का अधिकार संबंधित यूनिवर्सिटी को दिया जाएगा। इसके पीछे तर्क है कि यूनिवर्सिटी के परिनियम 27 (जे) में यह प्रावधान है कि प्राइवेट कॉलेज में चलने वाले कोर्स की फीस राज्य शासन और यूनिवर्सिटी तय करेंगे। इसी परिनियम के अंतर्गत कॉलेजों को एफिलिएशन दिया जाता है।

यह देखा जाएगा

फीस तय करने के लिए नेशनल फीस कमेटी के सामने प्रस्ताव रखा जाएगा। यह कमेटी देशभर में चलने वाले शिक्षा संस्थानों की गुणवत्ता, उनकी रैंकिंग, नेक ग्रेड, इन्फ्रास्ट्रक्चर, विद्यार्थियों की संख्या, फैकल्टी आदि को आधार बनाकर फीस की सीमा तय करती है। इसी आधार पर यहां पर भी फीस तय की जाएगी। इससे बड़ा फायदा सभी स्थानों पर एकरूपता के साथ ही गुणवत्ता के आधार पर फीस होगी। बड़े कॉलेजों के समान ही छोटे कॉलेज भी फीस लगभग समान ही रखते हैं, जबकि वहां पर सुविधाएं होती ही नहीं हैं। मेडिकल, इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेजों में सरकार इसी ग्रेड आधार पर फीस तय करती है।

शिकायतों पर ध्यान नहीं
उच्च शिक्षा विभाग और सरकार के पास पिछले सालों में कॉलेजों द्वारा मनमानी फीस वसलूने की कई शिकायतें पहुंची हैं। इसमें कॉलेज अपने स्तर पर फीस तो तय करते ही हैं, साथ ही बीच सत्र में मनमर्जी से फीस में बढ़ोतरी करते हैं, लेकिन न तो शासन और न ही यूनिवर्सिटीज ने कभी इसे रोकने की पहल की। इस कारण शासन और उच्च शिक्षा विभाग ने इसे रोकने के लिए नए नियम या फीस रेग्युलेटरी बोर्ड बनाने पर विचार किया गया। इसी बीच नियमों को तलाश किया तो मालूम हुआ कि यूनिवर्सिटी के नियमों में पहले से ही इसका प्रावधान है।

अंतिम रूप से यूनिवर्सिटी
अब तक रेग्युलर कोर्सेस की फीस की बात आती थी तो गवर्नमेंट तो शासन निश्चित कर देता था, लेकिन प्राइवेट कॉलेजों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था। प्रदेश में शुरू होने वाला कोई भी प्राइवेट कॉलेज तीन स्तर पर मान्यता के बाद ही शुरू हो सकता है। इसमें पहले उच्च शिक्षा विभाग से मान्यता लेना है। इसके बाद संबंधित फैकल्टी या बोर्ड से उक्त पाठ्यक्रम के लिए अनुमति ली जाती है। अंत में यूनिवर्सिटी निरीक्षण व प्रारंभिक दो अनुमतियों को आधार बनाते हुए उसे अंतिम रूप से एफिलिएशन देती है, इसीलिए यूनिवर्सिटी का अधिकार सबसे ज्यादा है।

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