रफी मोहम्मद शेख इंदौर। मध्यप्रदेश की यूनिवर्सिटी में होने वाले दीक्षांत समारोह में विद्यार्थियों, अधिकारियों और अतिथियों द्वारा पहने जाने वाला गाउन जल्दी ही गायब हो सकता है। इसका स्थान कुर्ता-पायजामा और सलवार-कुर्ता या साड़ी ले सकती है। इसके लिए प्रस्ताव तैयार हो चुका है और प्रदेश की यूनिवर्सिटीज की सर्वोच्च को-आॅर्डिनेशन कमेटी की बैठक में निर्णय के बाद लागू हो जाएगा। इसके पहले यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन पिछले साल ही इस मामले में निर्देश दे चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई नेता गाउन का विरोध कर चुके हैं।
22 अक्टूबर को स्टैंडिंग कमेटी की बैठक में प्रदेश की यूनिवर्सिटीज में दीक्षांत समारोह में गाउन नहीं पहनने का प्रस्ताव रखा जाएगा। यहां से पारित होने के बाद इसे 16 नवंबर को होने वाली को-आॅर्डिनेशन कमेटी की बैठक में अंतिम मुहर के लिए रखा जाएगा। प्रत्येक निर्णय कुलाधिपति यानी राज्यपाल की अध्यक्षता में होने वाली कुलपतियों व रजिस्ट्रार की सर्वोच्च परिषद को-आॅर्डिनेशन कमेटी में पारित होने के बाद ही लागू होता है।
कुलपतियों की कमेटी
को-आॅर्डिनेशन कमेटी में पिछली बार यह मुद्दा उठने पर प्रदेश की तीन यूनिवर्सिटी के कुलपति की एक कमेटी बनाई गई थी, जिसे अन्य यूनिवर्सिटीज से प्रस्ताव मंगवाकर अंतिम रिपोर्ट बनाने को कहा गया था। अब कमेटी ने रिपोर्ट तैयार कर ली है और जानकारी के अनुसार गाउन हटाने का निर्णय लिया गया है।
परंपरागत खादी की पोशाक
सूत्रों के अनुसार अब गाउन के स्थान पर छात्रों के लिए धोती-कुर्ता या कुर्ता-पायजामा की पोशाक प्रस्तावित की गई है। वहीं छात्राओं के लिए सलवार-कुर्ता या फिर साड़ी दीक्षांत समारोह में पहनना होगी। यह पोशाक भी खादी की होगी। इससे बड़ा फायदा यह होगा कि अभी गाउन यूनिवर्सिटी को सिलवाना होता था और किराया चुकाने के बाद भी वह कार्यक्रम के बाद विद्यार्थी के किसी काम का नहीं होता था। अब उक्त पोशाक करीब उतने ही किराए में विद्यार्थी खुद सिलवा लेगा और उसे बाद में भी उपयोग कर सकेगा। साथ ही यह भारतीयता को भी दर्शाएगी।
प्रधानमंत्री कह चुके
पिछले साल सितंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में गाउन को हटाने की बात कही थी। इसके बाद तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने भी इसकी वकालत की थी। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन सहित भारतीय जनता पार्टी व कई संगठनों के प्रतिनिधि पहले ही लगातार इस बात को उठाते रहे हैं, लेकिन इसे बंद नहीं किया जा सका। इसके बाद यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन ने देश की सभी यूनिवर्सिटीज को पत्र जारी कर इस परंपरा को बंद करने को कहा था। प्रदेश में करीब एक साल बाद इसे लागू करने पर अंतिम निर्णय होने जा रहा है।
महू-इंदौर में सबसे पहले
सबसे पहले महू की बीआर आंबेडकर यूनिवर्सिटी आॅफ सोशल साइंसेस में इसे लागू किया जा सकता है। वहां 17 नवंबर को समारोह प्रस्तावित है और गाउन उनके पास नहीं है। उसके बाद देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी ने भी कुलाधिपति से नवंबर के तीसरे या चौथे सप्ताह में दीक्षांत समारोह आयोजित करने के लिए तारीख मांगी है। को-आॅर्डिनेशन कमेटी की बैठक 16 नवंबर को है। इसके बाद इंदौर में भी पहली बार इसे मानना पड़ेगा।