मुनीष शर्मा इंदौर। राज्य सरकार ने विभिन्न विभागों में आर्थिक अनियमितताओं पर रोक लगाने के लिए आॅडिट विभाग की स्थापना की है, लेकिन इसी विभाग का एक अफसर अपने हित साधने में जुटा है। उसने 10 सालों से यूनिवर्सिटी का दामन ऐसे पकड़ा कि बेटे के मैनेजमेंट कोर्स में एडमिशन के लिए उसने अपना मूल विभाग ही त्याग डाला।
यूनिवर्सिटी के कर्मचारियों ने भी नियमों को ताक में रखते हुए मैनेजमेंट कोटे का उपयोग कर उसके बेटे का एडमिशन कर दिया। ये सज्जन विवि से और भी ढेरों फायदे उठा रहे हैं और बदले में यूनिवर्सिटी की कई आर्थिक अनियमितताओं पर आंख मूंदे बैठे हैं। हाल ही में इसकी शिकायत भी हुई।
मामला है डिप्टी डायरेक्टर आरके झंवर का, जिन्होंने बेटे को आईएमएस में एडमिशन दिलाने के लिए ‘चोला’ ही बदल डाला। यह एडमिशन करीब तीन साल पहले करवाया गया। फिलहाल बेटे की पढ़ाई जारी है। एडमिशन के समय जो दस्तावेज लगाए गए थे उनसे कई और राज खुल सकते हैं। अब विभाग के डायरेक्टर वरुण वर्मा का कहना है कि मामले की निष्पक्ष जांच और नियमानुसार कार्रवाई भी होगी।
प्रमोशन भी यूनिवर्सिटी में
बेटे के एडमिशन के वक्त झंवर यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट डायरेक्टर के पद पर थे और पदोन्नति के बाद उन्हें यहीं डिप्टी डायरेक्टर बना दिया गया। बताया जाता है पदोन्नति के बाद झंवर की नई नियुक्ति के लिए यूनिवर्सिटी के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने भी आॅडिट विभाग के आला अधिकारियों को सिफारिश की थी। यह भी बताया जाता है झंवर ने अपने विभाग के उच्च पदस्थ अधिकारियों को ‘संभाल’ रखा है जिससे उनका स्थानांतरण ही नहीं होता।
अकेले निगम को भी ‘संभाल’ रहे
हाल ही में उन्हें यूनिवर्सिटी के साथ नगर निगम में भी आॅडिट का दायित्व सौंपा गया है। दोनों ही विभाग इतने बड़े हैं कि यहां दिन-प्रतिदिन इतने बिल आते हैं कि उन्हें जांचना एक डिप्टी डायरेक्टर के लिए संभव नहीं है भले ही उनके अधीनस्थ भी ये चेक करते हों। बताया जाता है महालेखाकार की टीम ने भी झंवर के बेटे के एडमिशन को लेकर सवाल उठाया था लेकिन विभाग में इसे दबा दिया गया। इसके साथ ही टीम ने यूनिवर्सिटी के कुछ बिलों में की गई अनियमितताओं को लेकर भी आपत्ति ली थी लेकिन इन आपत्तियों को भी दरकिनार कर दिया गया।
बंगला भी दिया: यूनिवर्सिटी कैंपस में झंवर को बंगला भी आवंटित है। बंगला आवंटन को लेकर उन्हें पात्रता जरूर है लेकिन इसका भुगतान आॅडिट विभाग द्वारा दिए जाने वाले वेतन से कटौत्रे के रूप में होना चाहिए लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि झंवर चेक से यूनिवर्सिटी को पेमेंट करते हैं।
बेटे का एडमिशन गलत नहीं
मेरे बेटे के एडमिशन में कोई गड़बड़ी नहीं है। यह नियमानुसार ही है। मैं आॅडिट के दौरान कोई गलत बिल पास नहीं करता। बंगले का किराया चेक से भरता हूं जो गलत नहीं है। 10 साल से यूनिवर्सिटी में पदस्थ हूं तो यह सरकार का लुकआउट है। वह जहां चाहे मुझे पदस्थ करें। मैं किसी के दबाव-प्रभाव से भी यहां पदस्थ नहीं हूं। - आरके झंवर, डिप्टी डायरेक्टर, आॅडिट विभाग