25 Apr 2024, 16:56:02 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

विनोद शर्मा इंदौर। एक दशक से बारोली और अलवासा की पहाड़ी में सेंधमारी करते आए बाणगंगा के शुक्ला परिवार ने उस जमीन को भी नहीं बख्शा जो उन्हीं ने मानव भूमि गोरक्षा ट्रस्ट को बेची थी। साढ़े तीन एकड़ जमीन के लिए ट्रस्ट 17 साल से संघर्षरत है। दर्जनों शिकायतों और दो सीमांकन के बाद शुक्ला परिवार ने जमीन की जगह पहाड़ नापकर दे दिया और बाद में वहां भी मुरम खुदाई शुरू कर दी। कब्जे की जमीन की गाइडलाइन कीमत ही साढ़े सात करोड़ रुपए है।

मामला बारोली गांव का है, जहां प्रतिबंध के बावजूद शुक्ला परिवार और वीरसिंह नरवरिया की अवैध मुरम खदान चल रही है। इसे लेकर ‘दबंग दुनिया’ ने जब सरकारी दस्तावेज खंगाले तो शुक्ला परिवार के कब्जे की कहानी सामने आ गई। दस्तावेजों के लिहाज से बात करें तो 1998-99 में शुक्ला परिवार ने 1990 में रजिस्टर्ड (286/1990) हुए मानव भूमि गोरक्षा ट्रस्ट को सर्वे नं. 4/1/2, 4/2/2, 9/3/2, 14/2/2, 15/2/1 और  15/2/2/2 की छह एकड़ (261360 वर्गफीट) जमीन 25 लाख रुपए में बेची थी। शुक्ला परिवार की रंगदारी के कारण सौदे और तमाम प्रयासों के बावजूद ट्रस्ट को सिर्फ 1.25 लाख वर्गफीट जमीन ही मिली, जहां 2001-02 में गोशाला की स्थापना की गई। बाकी 136360 वर्गफीट जमीन के लिए ट्रस्ट की टेंशन जारी है।

साढ़े सात करोड़ की है जमीन
जिस जमीन पर शुक्ला परिवार का कब्जा है वहां सरकारी गाइडलाइन प्लॉट की 550 रुपए/वर्गफीट है जबकि कृषि भूमि की कीमत 82 लाख रुपए/हेक्टेयर है। हेक्टेयर के हिसाब से भी शुक्ला परिवार के कब्जे की 1.266 हेक्टेयर जमीन की कीमत 1 करोड़ 03 लाख 81 हजार 200 रुपए है जबकि 136360 वर्गफीट की कीमत 7 करोड़ 49 लाख 98 हजार है।

कलेक्टर की हिम्मत से हुआ सीमांकन
जिला प्रशासन के पास ट्रस्ट द्वारा शुक्ला परिवार के खिलाफ की गई शिकायतों का पुलिंदा है, जो 1999 से 2011-16 तक प्राप्त हुई हैं। 2011-12 तक तो कलेक्टर सीमांकन के आदेश देते थे पर शुक्ला के सिपहसालारों के डर से सीमांकन तो दूर पटवारी जमीन तक जाना भी पसंद नहीं करते थे। 2011-12 में पहली बार तत्कालीन कलेक्टर राघवेंद्र सिंह ने सख्ती की और सीमांकन हुआ।

सीमांकन से भी नहीं सहमे
2011-12 में हुए सीमांकन के बावजूद शुक्ला परिवार गोशाला की जमीन पर काबिज रहा। ट्रस्ट शिकायतें करता रहा। पटवारी व आरआई रिपोर्ट देते रहे। फिर भी उन्होंने जमीन नहीं छोड़ी।

तो नपवाया पहाड़
विधायक उषा ठाकुर के जुड़ने से ट्रस्ट की उम्मीदें जागीं। जून में ठाकुर के नेतृत्व में ट्रस्ट ने फिर प्रयास किए। इस बार साथ दिया कलेक्टर पी.नरहरि ने। जमीन का सीमांकन हुआ लेकिन शुक्ला परिवार ने अपनी जमीन नहीं छोड़ी, बल्कि ट्रस्ट के नाम पर पहाड़ का हिस्सा नपवा दिया।

बाज नहीं आए
जून में हुए सीमांकन और विधायक की पहल पर प्रशासनिक स्तर पर शुरू हुई गोपर्वत की तैयारियों के बावजूद शुक्ला परिवार ने कदम पीछे नहीं खींचे। जहां मानव भूमि गोरक्षा ट्रस्ट के बोर्ड लगे थे या पत्थरों पर नाम लिखा था, वहीं मुरम की खुदाई शुरू कर दी।

अब कहां जाएं
ट्रस्ट का कहना है कि हम शुक्ला परिवार के खिलाफ खुलकर मोर्चा नहीं खोल सकते। जमीन को लेकर विधायक से लेकर कलेक्टर तक से बात कर चुके हैं, सीमांकन हो गया, अब क्या करें? देखते हैं जमीन मिलेगी या नहीं।

 

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