तेज कुमार सेन इंदौर। हाई कोर्ट के एक फैसले से राज्य सरकार की बड़ी जीत हुई है। देवास की बैंक नोट प्रेस के मामले में कोर्ट ने माना कि वह राज्य सरकार द्वारा वसूले जाने वाले तमाम टैक्स के दायरे से बाहर नहीं है। ये कहते हुए जस्टिस पीके जायसवाल व विवेक रूसिया की डिविजन बेंच ने उसकी ओर से दायर याचिकाएं खारिज कर दीं। इस फैसले से शासन को 35-40 करोड़ रुपए टैक्स के रूप में यहां से मिलने की उम्मीद जाग गई है।
देश की करंसी छापने की एक यूनिट देवास में है। पहले इसका संचालन केंद्र सरकार के अधीन होता था, लेकिन सन् 2006 से इसे कंपनी बना दिया गया। इस कारण राज्य सरकार ने सेल टैक्स, इंट्री टैक्स आदि वसूली के नोटिस जारी किए।
हम बिजनेस नहीं करते
नोटिस को लेकर नोट प्रेस की ओर से समय-समय पर याचिकाएं इंदौर हाई कोर्ट में दायर की गर्इं। सन् 2006 ये 14 के बीच करीब 27 याचिकाएं लगीं। इनमें कहा गया कि इसका संचालन धारा 285 के तहत प्रोटेक्ट है। इस कारण इस पर कोई टैक्स आरोपित नहीं किया जा सकता। हम पर कोई टैक्स इसलिए भी नहीं बनता क्योंकि हम बिजनेस नहीं करते।
बिजनेस की परिधि में है
शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता सुनील जैन ने तर्क में कहा कि उक्त कंपनी धारा 285 के तहत प्रोटेक्ट नहीं है। इसका कार्य व्यवसाय की परिधि में ही आता है। इस कारण इनकी याचिकाएं खारिज की जाएं। दोनों के तर्क सुन कोर्ट ने बैंक नोट प्रेस की सभी याचिकाएं खारिज कर दीं।