रफी मोहम्मद शेख इंदौर। भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजना राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रूसा) के अंतर्गत देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी को मिलने वाली ग्रांट समस्या बन गई है। दो साल में 10 करोड़ रुपए साल के हिसाब से यूनिवर्सिटी को कुल 20 करोड़ रुपए मिलना थे, लेकिन डेढ़ साल बाद भी मात्र ढाई करोड़ रुपए ही अकाउंट में आए हैं। उधर बचे हुए छह महीने में साढ़े 17 करोड़ रुपए मिल भी गए तो खर्च कैसे हो पाएंगे?
पिछले साल मानव संसाधन मंत्रालय और उच्च शिक्षा विभाग ने देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी सहित प्रदेश की तीन यूनिवर्सिटीज को रूसा के अंतर्गत ग्रांट के लिए चयनित किया था। इसमें हर साल यूनिवर्सिटी को 10 करोड़ रुपए की राशि मिलना है, जो ढाई-ढाई करोड़ रुपए की चार किस्तों में दी जाना है। पिछले साल सारी प्रक्रिया सितंबर में खत्म हो गई थी और उसकी पहली किस्त तुरंत मिलना थी।
पहली किस्त में ही ढीलपोल
नियमानुसार इस राशि में केंद्र सरकार का 65 प्रतिशत हिस्सा मानव संसाधन विभाग देगा, जबकि बची हुई 35 प्रतिशत राशि का हिस्सा राज्य शासन को मिलाना है। विभाग ने दिल्ली से नवंबर 2015 में एक करोड़ 62 लाख रुपए राज्य शासन के अकाउंट में जमा किए थे। राज्य शासन ने अपनी ओर से राशि मिलाने में दो महीने का समय लगा दिया। हद तो तब हो गई, जब तीन महीने के बाद तक यानी मार्च के अंतिम सप्ताह तक यह राशि यूनिवर्सिटी के अकाउंट में ट्रांसफर नहीं की गई, जबकि यूनिवर्सिटी कई बार शासन को याद दिलाती रही और काम पूरे करने के लिए ई-टेंडरिंग प्रक्रिया भी पूरी कर ली। मार्च के अंत में राशि देने के बाद यूनिवर्सिटी से कहा गया कि वह राशि खर्च कर यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट भेजे।
काम पूरा, अब रुके
पहली किस्त की राशि से यूनिवर्सिटी के तक्षशिला परिसर में स्थित सालों पुराने विज्ञान भवन, लाइब्रेरी और स्कूल आॅफ लैंग्वेज के कायाकल्प का काम पूरा कर दिया गया है। इन भवनों की हालत अंदर से खराब थी और दीवारों-छतों के प्लास्टर के साथ ही खिड़की-दरवाजे भी खराब हो चुके थे। अब यूनिवर्सिटी को बची हुई किस्तों का इंतजार है। इससे आगे के काम भी रुक गए हैं। यूनिवर्सिटी को पिछले सत्र 2015-16 में ही 10 करोड़ रुपए मिल जाना चाहिए थे, लेकिन उसके भी साढ़े सात करोड़ रुपए बकाया हैं। इस साल के दस करोड़ की राशि में से भी एक रुपया नहीं मिला है।
प्रोजेक्ट आगे बढ़ने की संभावना
बड़ी समस्या यह है कि अगर यह राशि मिल भी गई तो यूनिवर्सिटी इसे खर्च कैसे करेगी? इतनी रकम का प्रस्ताव तो तैयार है, लेकिन टेंडरिंग प्रक्रिया के साथ ही काम पूरा होना असंभव है। जब मात्र ढाई करोड़ का काम पूरा होने में करीब छह महीने का समय लग गया तो साढ़े 17 करोड़ के काम एक साथ हो ही नहीं सकते हैं। यूनिवर्सिटी अगली किस्तों के लिए कई बार मानव संसाधन विभाग और राज्य शासन को लिख चुकी है, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। इससे 31 मार्च 2017 तक भी सत्र 2015-16 की राशि का यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट नहीं दिया जा सकता है। इससे यह पूरा प्रोजेक्ट आगे बढ़ने की संभावना बन गई है।