रफी मोहम्मद शेख इंदौर। प्रदेश के सभी कॉलेजों में राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) की यूनिट शुरू करना अनिवार्य कर दिया गया है, लेकिन हर जिले में इन कॉलेजों को एक सूत्र में पिरोने वाले को-आॅर्डिनेटर अब भी टेंपरेरी हैं।
इन्हें इस काम के लिए मानदेय के रूप में जेब खर्च दिया जा रहा है। इधर, नई यूनिटों के नाम पर विभाग की आय लगातार बढ़ती जा रही है।
उच्च शिक्षा विभाग ने प्रदेश के सरकारी विश्वविद्यालयों के अंतर्गत आने वाले जिलों में को-आॅर्डिनेटर नियुक्त किए हैं। अधिकांश सालों से इन पदों पर कार्यरत हैं, उन्हें फिर इसी पर पदस्थ किया गया है। इन्हें जिलावार विभिन्न कॉलेजों की गतिविधियों पर नजर रख, उसे एनएसएस प्रोग्राम को-आॅर्डिनेटर के साथ विवि संचालित करना होता है।
मोबाइल का बिल तक नहीं
इन्हें 550 रुपए मानदेय देने के निर्देश हैं। वर्तमान में एक माह का मोबाइल व इंटरनेट बिल का भुगतान भी इस रकम से नहीं किया जा सकता। साथ ही ये शर्त भी लगाई गई कि को-आॅर्डिनेटर रजिस्ट्रेशन कार्य, एनएसएस यूनिट का निरीक्षण, स्पेशल कैंप लगाना, यूनिट व स्टोर का रखरखाव, समय-समय पर एनएसएस की गतिविधियां व स्पेशल कैंप की जानकारी भी भेजने वाला होना चाहिए। अगर वह ऐसा नहीं कर रहा तो उसे ये खर्च नहीं दिया जाए।
आठ रुपए प्रतिदिन में कैसे
साथ ही उन्हें तीन हजार रुपए सालाना (250 रुपए महीना) यात्रा भत्ते के रूप में भी स्वीकृत किए गए हैं। इंदौर जिले में ही करीब 120 कॉलेज हैं और एनएसएस यूनिट की संख्या भी 75 है। को-आॅर्डिनेटर को इन सभी कॉलेजों में जाकर निरीक्षण और दूरदराज के क्षेत्रों में लगाए गए स्पेशल कैंप में जाना अनिवार्य किया गया है। करीब आठ रुपए रोज में वह कैसे इन कॉलेजों में यात्रा कर पाएगा? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। इससे साफ है कि ये को-आर्डिनेटर केवल खानापूर्ति के लिए ही नाम के लिए काम कर रहे हैं।
सालों से कोई बढ़ोतरी नहीं
भारत सरकार और मानव संसाधन मंत्रालय की अनुशंसा के बाद देशभर में नए कॉलेज खोलने की अनुमति के लिए न केवल वहां इन्फ्रॉस्ट्रक्चर, स्टाफ और प्रोफेसर्स होना जरूरी है, साथ ही एनएसएस की यूनिट भी अनिवार्य है। इससे विवि के तहत तीन साल में एनएसएस यूनिट की संख्या करीब दोगुना हो गई है। प्रत्येक कॉलेज अपने स्तर पर एनएसएस के नाम पर प्रति विद्यार्थी से 200 रुपए शुल्क लेता है। इसका एक हिस्सा शासन को जाता है, लेकिन जिला को-आॅर्डिनेटर को इतनी कम रकम सालों से दी जा रही है। इसमें कोई बढ़ोतरी भी नहीं हुई है।
वैसे ये कम है
1970 से प्रदेश में जिला को-आर्डिनेटर की व्यवस्था है। इनके लिए मानदेय शासन ने ही तय कर किया है। वैसे ये कम है। हम इसमें कुछ नहीं कर सकते। इनका काम जिलावार होता है।
- डॉ. प्रकाश गढ़वाल, एनएसएस प्रोग्राम को-आॅर्डिनेटर, देअविवि
मांग कर रहे हैं
हम सालों से शासन से जेब खर्च बढ़ाने की मां कर रहे हैं। अब तो कॉलेजों और यूनिट की संख्या भी बढ़ रही है तो काम कैसे करें?
- डॉ. सचिन शर्मा,
जिला को-आॅर्डिनेटर