रफी मोहम्मद शेख इंदौर। आरपीएल माहेश्वरी कॉलेज में हुए रैगिंग कांड में आरोपी अर्पित धीमान का मामला इस बात पर उलझा है कि वह कॉलेज का छात्र है या नहीं। रैगिंग में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यही है। वास्तव में अर्पित का पिछले सेमेस्टर में कॉलेज में नियमित एडमिशन था और उस आधार पर ही उसने यूनिवर्सिटी की परीक्षा भी दी थी। अभी इसका रिजल्ट आया नहीं है। उधर कॉलेज उसके एडमिशन नहीं लेने की बात कह उसे विद्यार्थी बताने से इनकार कर रहा है, जबकि उसने अब तक कॉलेज से टीसी भी नहीं ली है।
जानकारी के अनुसार अर्पित दो साल से बीकॉम का नियमित विद्यार्थी है। उसने कॉलेज के विद्यार्थी के रूप में ही यूनिवर्सिटी द्वारा निश्चित किए गए पीएमबी गुजराती कॉमर्स कॉलेज के सेंटर पर जाकर परीक्षा दी थी। फोर्थ सेमेस्टर की परीक्षा यूनिवर्सिटी ने इस साल जून में आयोजित की थी। इसका रिजल्ट घोषित नहीं हुआ है।
रिजल्ट आने तक छूट
उच्च शिक्षा विभाग और यूनिवर्सिटी के नियमानुसार कॉलेजों में एडमिशन की आखिरी तारीख 24 अगस्त थी, लेकिन यह नियम केवल फर्स्ट सेमेस्टर या कॉलेज में नए एडमिशन लेने वाले विद्यार्थी के लिए लागू होता है। जबकि ऐसे विद्यार्थी जो पिछले सालों में नियमित रूप से कॉलेज में पढ़ रहे हैं, उन्हें यूनिवर्सिटी का रिजल्ट आने तक एडमिशन की छूट दी जाती है। हालांकि कॉलेज अपने स्तर पर क्लासेस पहले शुरू कर देते है, लेकिन नियमानुसार विद्यार्थी को रिजल्ट आने के बाद रेग्युलर एडमिशन की छूट होती है। सारे कॉलेज ऐसे विद्यार्थियों को एडमिशन भी देते हैं।
टीसी भी नहीं ली है..
अर्पित के मामले में कॉलेज ने पहले साफ कहा था कि वो वहां का विद्यार्थी नहीं है और पूर्व छात्र है। वास्तविकता यह है कि जून में परीक्षा देने से लेकर रिजल्ट आने तक वह कॉलेज का ही विद्यार्थी कहलाएगा। वैसे भी जब तक वह कॉलेज से ट्रांसफर सर्टिफिकेट (टीसी) नहीं ले लेता है तब तक उसे पूर्व विद्यार्थी नहीं कहा जा सकता। अर्पित ने ऐसा नहीं किया और कॉलेज के अन्य विद्यार्थियों के समान ही वह कॉलेज रेग्युलर आ रहा है। इसके साथ रैगिंग व मारपीट करने वाले अन्य अगर कॉलेज के विद्यार्थी निकले तो उनके खिलाफ अन्य धाराओं में भी कार्रवाई होगी।
अब एडमिशन से इनकार
उधर, कॉलेज ने यह मामला सामने आने के बाद अब नोटिस चस्पा कर दिया है कि अर्पित को नियमित एडमिशन नहीं दिया जाएगा। यह कॉलेज अपने स्तर पर कर सकता है क्योंकि विद्यार्थी रैगिंग और मारपीट जैसे संगीन मामले में फंस गया है। इससे कॉलेज की भूमिका पर सवाल उठना स्वाभाविक है कि उसने पहले स्थिति साफ क्यों नहीं की? कॉलेज में भी थर्ड से लेकर आगे की क्लासेस में कई एडमिशन रिजल्ट आने के बाद ही होते है तो उसे पूर्व विद्यार्थी बताकर मामला दबाने की कोशिश क्यों की गई।
सख्त है रवैया
सुप्रीम कोर्ट और यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन ने रैगिंग के मामले में बड़ा सख्त रवैया अपना रखा है लेकिन यह सिद्ध होना जरूरी है। अधिकांश मामलों में रैगिंग नहीं, बल्कि मारपीट या आपसी मामला ही सिद्ध होता है। इसके लिए केवल कॉलेज कैम्पस में ही सीनियर द्वारा जूनियर को प्रताड़ित करना या मारपीट करना जरूरी नहीं है, बल्कि अगर सीनियर उसे कॉलेज के बाहर बुलाकर भी ऐसा करता है तो भी यह रैगिंग की श्रेणी में आता है। इस मामले में भी कॉलेज कैम्पस के पास ही यह घटना हुई है, लेकिन विवाद पहले से ही चल रहा था। साथ ही अर्पित उसका सीनियर भी सिद्ध हो रहा है।
एडमिशन नहीं दे रहे
अभी उसने एडमिशन नहीं लिया है इसलिए विद्यार्थी नहीं कहलाएगा। अब हम उसे एडमिशन भी नहीं दे रहे हैं। हमने पहले ही यह निश्चित कर लिया है।
- डॉ. राजीव झालानी, प्रिंसिपल - आरपीएल माहेश्वरी कॉलेज
(सबसे पहले झालानी ने अर्पित को पूर्व विद्यार्थी बताया था)