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छोटे- मोटे रोग दूर करने वाली डिस्पेंसरी ताला रोग का शिकार

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Sep 3 2016 9:47AM | Updated Date: Sep 3 2016 9:47AM
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अनुप्रिया सिंह ठाकुर इंदौर। मोहल्ले-कॉलोनियों में जिन डिस्पेंसरियों को सिर्फ इसलिए खोला गया कि लोगों को सर्दी-खांसी, बुखार या टीकाकरण के लिए भटकना न पड़े। साथ ही सरकारी अस्पतालों पर भी इन छोटी-मोटी बीमारियों का अनावश्यक भार न पड़े लेकिन ये डिस्पेंसरियां खुद ताला रोग का शिकार हो गई हैं। खास बात यह है कि इस ताला रोग को दूर करने के बजाय स्वास्थ्य विभाग इन्हीं स्वास्थ्य केंद्रों पर लाखों रुपए खर्च कर रहा है।

स्कीम नंबर-78, अरण्य नगर अस्पताल

 शाम के करीब 6 बज रहे थे लेकिन अस्पताल तालों से बंद था। मुख्य दरवाजे के साथ ही भीतर के चैनल गेट पर ताला लगा हुआ था। नियम के मुताबिक जहां शाम 5 बजे ओपीडी खुलना चाहिए, वहां एक घंटे बाद तक अस्पताल के पट ही नहीं खुल पाए। डॉक्टर से लेकर चतुर्थश्रेणी कर्मचारी भी नहीं, परिसर भी पूरा खाली था। कुछ लोग पूछते हुए अस्पताल तक पहुंचे, लेकिन जिस तेजी से आए उस तेजी से लौट गए।

स्वास्थ्य केंद्र, भंवरकुआं
गनीमत यह थी कि घरनुमा भवन में संचालित हो रहा यह सरकारी अस्पताल खुला मिला, एक कर्मचारी भी बाहर की ओर बैठा नजर आया लेकिन भीतर गए तो पता चला डॉक्टर नहीं हैं। पूछा क्यों नहीं हैं, तो जवाब मिला तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए अभी गई हैं। कोई और भी नहीं हैं, स्टाफ नर्स या अन्य, तो उसने नकारते हुए सिर हिला दिया।

शासकीय डिस्पेंसरी, रेसीडेंसी

रेसीडेंसी डिस्पेंसरी भी ताले में बंद है। कितने दिनों से बंद है, इसके बारे में बताने वाला न कोई कर्मचारी है और न ही आसपास का कोई रहवासी दिखा।

एक डिस्पेंसरी पर सालभर में 14 लाख होते हैं खर्च
शहरी स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 14 है, जो अलग-अलग क्षेत्रों में किराए के भवनों से संचालित किए जा रहे हैं। रिकॉर्ड के मुताबिक एक डिस्पेंसरी में महीनेभर में एक लाख रुपए से ज्यादा खर्च होते हंै। इसमें डॉक्टर का वेतन करीब 35 से 45 हजार रुपए प्रतिमाह, 15 से 20 हजार रुपए भवन का किराया, स्टाफ व अन्य छोटे-बड़े कार्यों पर किया गया खर्च शामिल है। यानी सालभर में एक डिस्पेंसरी के लिए 14 लाख रुपए और शहर की सभी 14 डिस्पेंसरी के लिए करीब दो करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं।

न सख्ती न मॉनिटरिंग
इन डिस्पेंसरी की मॉनिटरिंग नहीं की जा रही है, न ही कोई रिकॉर्ड नियमित रूप से स्वास्थ्य विभाग मुख्यालय में दर्ज किया जा रहा है, जो रिकॉर्ड भेजा जाता है, वो सही है या फर्जी सुध नहीं ले रहे हैं।

आॅनलाइन मॉनिटरिंग की जाएगी
14 में से महज 10 डिस्पेंसरी पर ही डॉक्टर नियुक्त हैं, चार डिस्पेंसरी पर डॉक्टर नहीं हैं। इसलिए एक ही डॉक्टर को अन्य डिस्पेंसरी का प्रभार देकर जैसे-तैसे काम चलाया जा रहा है। इसी तरह स्टाफ नर्स, फार्मासिस्ट, एएनएम व अन्य चतुर्थश्रेणी कर्मचारी भी हर डिस्पेंसरी में नहीं हैं। मैं इस मामले को गंभीरता से दिखवाता हूं। जल्द ही सभी डिस्पेंसरी की आॅनलाइन मॉनिटरिंग की व्यवस्था की जाएगी। ब्लॉक स्तर पर ब्लॉक मेडिकल आॅफिसर को इसकी जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। - डॉ. एस पोरवाल, सीएमएचओ

ये हैं डिस्पेंसरियां

पॉली क्लिनिक मल्हारगंज, डिस्पेंसरी डीआरपी लाइन, हुकमचंद पॉली क्लिनिक, नंदानगर प्रसूति गृह, सिविल डिस्पेंसरी रेसीडेंसी, सिविल डिस्पेंसरी कृष्णपुरा, सिविल डिस्पेंसरी वृंदावन कॉलोनी, सिविल डिस्पेंसरी भंवरकुआं, पीसी सेठी अस्पताल, हरिजन डिस्पेंसरी अरण्य नगर, मांगीलाल चूरिया हॉस्पिटल, हरिजन डिस्पेंसरी भागीरथपुरा, हरिजन डिस्पेंसरी कमलाकांत मोदी जूनी इंदौर।

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