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जिला अस्पताल में किराए के वेंटिलेटर पर मरीजों की सांसें

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Aug 28 2016 10:32AM | Updated Date: Aug 28 2016 10:32AM
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अनुप्रिया सिंह ठाकुर इंदौर। एक गंभीर मरीज की जान बचाने के लिए शहर के सरकारी अस्पताल को किराए का वेंटिलेटर मंगाना पड़ता है..., किराए के वेंटिलेटर से सांसे उपलब्ध करवाने की यह मजबूरी है शहर के जिला अस्पताल की। बहरहाल यह एक वाकया अस्पताल की वह हकीकत बयां करता है, जो जिला अस्पताल को समझौते का नाम देती है। जहां मरीज को उचित इलाज सेवा से समझौता करना पड़ रहा है, और प्रबंधन को जीवनरक्षक उपकरणों सहित कई जरूरी सुविधाओं की कमी से।

व्यवस्था का अभाव
पर्याप्त जगह और व्यवस्था का अभाव झेल रहे अस्पताल प्रबंधन के पास कुपोषित बच्चों को भी सुरक्षित रखने की जगह नहीं है। छत से टपकते बारिश के पानी से एनसीआर वार्ड को उस वार्ड में शिफ्ट किया गया है, जिसे स्वाइन फ्लू स्क्रीनिंग सेंटर के रूप में स्वाइन फ्लू मरीजों की जांच के लिए तैयार किया गया था। वार्ड में शहर व इसके आसपास के गांवों से आए आठ से 10 कुपोषित बच्चों का इलाज किया जा रहा है। वहीं सर्दी-खांसी के पीड़ित मरीजों कीस्क्रीनिंग के लिए यहां कोई इंतजाम नहीं हंै।

स्वाइन फ्लू वार्ड में कुपोषित बच्चे
बच्चों को भी करना पड़ रहा शिफ्ट

वार्डों की हालत इतनी खराब है कि तीन दिन से बंद शिशु रोग वार्ड बुधवार को खोला गया। वहीं बारिश के दौरान शिशुओं को अन्य वार्डों में खाली पड़े वार्ड में शिफ्ट करना पड़ा। करंट के खतरे के चलते वार्ड को बारिश के दौरान बंद करना पड़ता है। इसके अलावा अस्पताल प्रबंधन के पास अन्य कोई व्यवस्था नहीं है।

अधूरा छोड़ा ब्लड बैंक का काम

300 बिस्तर वाले नए अस्पताल की मांग कर रहे अस्पताल प्रबंधन ने अब तक करीब तीन बार प्रस्ताव तैयार कर भोपाल भेजे हैं। प्रमुख सचिव सहित हाल ही में अन्य स्वास्थ्य अधिकारियों ने भी अस्पताल का दौरा कर इंदौर जिला अस्पताल की बदहाली जाहिर की है। बावजूद इसके अब तक शासन की ओर से किसी भी तरह की कोई मंजूरी नहीं मिली है। बजट के अभाव और पुरानी बिल्डिंग के चलते ब्लड बैंक का काम पूरा नहीं हो पा रहा। पीडब्ल्यूडी विभाग के अनुसार बिल्डिंग की हालत इतनी खराब है कि जितना काम कर रहे हैं, नया काम निकल आता है। इसलिए बजट में बढ़ोत्तरी होती है, जब तक बजट नहीं मिलेगा, तब तक काम पूरा नहीं हो सकता।

हर महीने 60 से 70 सीजर
रोजाना करीब 700 से 800 मरीज पहुंचते हैं इलाज के लिए
हर महीने 60 से 70 सीजर, कई बार 90 तक पहुंचता है आंकड़ा
आईसीयू, एमआरआई, सिटी स्कैन, ब्लड-बैंक सहित अन्य सुविधाओं की कमी के चलते हर दिन पांच से छह गंभीर मरीजों को किया जाता है रैफर।

लाइफ सपोर्ट सिस्टम है वेंटिलेटर
वेंटिलेटर एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम है, जिसकी जरूरत उस समय पडंÞती है, जब मरीज के शरीर में कार्बन डाय आॅक्साइड की मात्रा बढ़ रही हो और मांसपेशियां कमजोर हो रही हों। मरीज कोमा में चला गया हो, तब भी वेंटिलेटर की आवश्यकता पड़ती है। शरीर में लगातार आॅक्सीजन की कमी होने पर भी मरीज को वेंटिलेटर पर रखा जाता है।
डॉ. संजय धानुका, कंटेंटिव इंटेंसिव केयर फीजिशियन,
ग्रेटर कैलाश हॉस्पिटल

नई बिल्डिंग बनाना होगी

अभी हमारे यहां ब्लड स्टोरेज की व्यवस्था है, लेकिन ब्लड बैंक नहीं है। इसलिए आईसीयू और लाइफ सपोर्ट सिस्टम यानि वेंटिलेटर की भी व्यवस्था नहीं की जा सकती। अस्पताल के लिहाज से यह बिल्डिंग नहीं है। इसलिए यदि जिला अस्पताल को सुव्यवस्थित करना है तो इसे तोड़कर नई ईमारत बनानी होगी, जिसकी कोशिश हम कर रहे हैं।
-डॉ. दिलीप आचार्य, प्रभारी सिविल सर्जन

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