रफी मोहम्मद शेख इंदौर। यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन द्वारा असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती में 2009 से पहले पीएचडी करने वाले विद्यार्थियों को नेट-स्लेट की अनिवार्यता से छूट देने के बाद सबसे बड़ा असमंजस यूनिवर्सिटी के समक्ष है। उसके लिए इन्हें सर्टिफिकेट देना कठिन काम है, क्योंकि यह सर्टिफिकेट डीन या कुलपति द्वारा जारी किया जाना है। यूजीसी ने इसके लिए पांच बिंदु निश्चित किए हैं, जिसकी प्रामाणिकता निश्चित करना जरूरी है।
यूजीसी ने 11 जुलाई 2016 को कॉलेज और यूनिवर्सिटी में नियुक्ति संबंधी न्यूनतम अर्हताएं विनियम 2009 में चौथा संशोधन किया है। पहले कॉलेज व यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति के लिए यूजीसी ने नए नियमों के अनुसार पीएचडी या पीएचडी के साथ नेट या स्लेट की अनिवार्य योग्यता निश्चित की थी।
विरोध के बाद किया
2009 के पहले पीएचडी करने वालों के लिए भी नेट या स्लेट अनिवार्य योग्यता हो गई थी। इनका विरोध यह था कि उन्होंने जब रजिस्ट्रेशन करवाया था या उन्हें जब पीएचडी अवार्ड हुई थी तब यह नियम नहीं था इसलिए उनके लिए यह बाध्यता नहीं होना चाहिए। देशभर में इसके लिए आंदोलन और विरोध हुआ। तब तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी के हस्तक्षेप के बाद यूजीसी ने इसमें नए बदलाव करते हुए इन्हें छूट दी है, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने इसके लिए पांच शर्तें भी जोड़ दी हैं। इसके बिना यह छूट मान्य नहीं होगी।
पहले नियम का फेर
इस पांच शर्तों को प्रामाणिक करने के लिए यूजीसी ने अधिकारी भी निश्चित कर दिए हैं। इसमें यूनिवर्सिटी के कुलपति या संबंधित फेकल्टी के डीन को ही इन्हें प्रामाणिकता देने का अधिकार दिया गया है। यह जो सर्टिफिकेट जारी करेंगे, उसके आधार पर ही नौकरी में मान्यता मिलेगी। इसमें सबसे बड़ी समस्या रिसर्च प्रकाशन या पेपर प्रजेंटेशन की आ रही है। यूजीसी के नियमों के अनुसार यह रिसर्च प्रकाशन या प्रजेंटेशन उस समय का होना चाहिए, जब अभ्यर्थी पीएचडी कर रहा हो। ऐसा अधिकांश के साथ नहीं है, क्योंकि उस समय यह नियम था ही नहीं इसलिए उनके प्रकाशन बाद के हैं। यूनिवर्सिटी के अधिकारियों के सामने परेशानी भी यही है। इसके बिना वो सर्टिफिकेट जारी ही नहीं करेंगे।
तो अटकेगी गाड़ी
उधर, इसके साथ ही यूनिवर्सिटी इनसे कोर्स वर्क करने की बात भी कह रही है। वैसे यूजीसी ने अपनी मीटिंग में कोर्स वर्क होने की शर्त रखी थी, लेकिन जब विनियम जारी किया गया तो इसे हटा दिया गया है। बाकी रेग्युलर पीएचडी, ओपन वाइवा और बाहरी परीक्षकों द्वारा पीएचडी थीसिस का मू्ल्यांकन तो सालों से हो रहा है। बाकी दो नियमों के कारण इनकी गाड़ी अटक सकती है। वर्तमान में मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा असिस्टेंट प्रोफेसर्स की भर्तियां की जा रही हैं। इसमें अभी इन्हें छूट नहीं दी गई है, लेकिन संभावना है कि यूजीसी नियमन के आधार पर यह मिल जाए। तब यह सर्टिफिकेट जरूरी हो जाएगा।
क्या है पांच जरूरी बिंदु
अभ्यर्थी को केवल रेग्युलर पद्धति से पीएचडी की डिग्री प्रदान की गई हो।
कम से कम दो बाहरी परीक्षकों द्वारा पीएचडी थीसिस का मूल्यांकन किया गया हो।
अभ्यर्थी का ओपन वाइवा हुआ हो।
अभ्यर्थी ने पीएचडी रिसर्च वर्क में से दो रिसर्च पेपर प्रकाशित किए हैं, जिनमें कम से कम एक पेपर संदर्भित (रिफर्ड) जर्नल में प्रकाशित हुआ हो।
अभ्यर्थी ने अपने शोध कार्य संबंधित दो पेपर कॉन्फ्रेंस या सेमिनार में प्रजेन्ट किए हों।