कृष्णपाल सिंह इंदौर। शहर के मुक्तिधाम पर पहुंचने वाले लोगों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। अर्थी रखते ही उसे मवेशी घेर लेते हैं, उन्हें भगाने के लिए न तो गार्ड हैं और न ही साधन। लोगों को जद्दोजहद करके मवेशियों को भगाना पड़ता है। अंतिम संस्कार के लिए गीली लकड़ियां मिलती हैं। बाणगंगा मुक्तिधाम की छत भी टूटी-फूटी है। इस छत से बारिश में दाह संस्कार के समय पानी गिरता है। इसके अलावा मालवा मिल और मूसाखेड़ी मुक्तिधाम पर भी लोगों को समस्याओं से जूझना पड़ता है।
बाणगंगा मुक्तिधाम पर जिम्मेदारों का ध्यान कभी नहीं गया। हर बार नगर निगम के अधिकारी झूठी बातें बनाकर कन्नी काटते हैं। आलम यह है कि आसपास की 100 से ज्यादा कॉलोनी के करीब ढाई से तीन लाख लोगों के बीच एक ही मुक्तिधाम है, जिसकी दुर्दशा किसी से नहीं छिपी। न विधायक और न पार्षद ने इस ओर गंभीरता दिखाई। परिवार पर पहले ही दुखों का पहाड़ टूटा रहता है और मुक्तिधाम पहुंचने पर भी समस्याओं से दो चार होना पड़ता है।
तीन लाख लोगों के बीच एक मुक्तिधाम
कांग्रेस नेता दीपू यादव ने बताया बाणगंगा मुक्तिधाम को लेकर कई मर्तबा शिकायतें कर चुके हैं, लेकिन निगम के जिम्मेदारों का ध्यान नहीं जाता है। यहां बड़ों के साथ बच्चों का भी श्मशान है, जिसकी स्थिति जर्जर है। लोगों को टूटी-फूटी चद्दर से गिरते बारिश के पानी में अंतिम संस्कार करना पड़ता है। जैसे-तैसे अंतिम संस्कार करने के बाद जब परिजन तीसरे दिन अस्थि संचय करने पहुंचते हैं तो राख गीली और अस्थियां बहकर इधर-उधर पड़ी रहती है। इस दौरान लोग व्यवस्था को कोसते नजर आते हैं। मुक्तिधाम में आवारा पशुओं का डेरा रहता है। यहां चौकीदार और माली की मांग कर रहे हैं। इसमें रघुवंशी कॉलोनी, गाड़रा खेड़ी, कुम्हार खाड़ी, बाणगंगा, छोटी कुम्हार खाड़ी, सुभाष कॉलोनी, वृंदावन कॉलोनी, गोविंद कॉलोनी, संगम नगर, स्कीम 51, हेमू, लक्ष्मीपुरी, यादव नगर, महाराणा प्रताप नगर सहित 100 से ज्यादा कॉलोनियां हैं, जिसमें ढाई से तीन लाख लोगों के बीच एक मात्र मुक्तिधाम है। इसीलिए इसे सुव्यस्थित करना बहुत जरूरी है।
मालवा मिल मुक्तिधाम
यहां भी आवारा पशुओं का जमघट रोज लगा रहता है। इसके अलावा देखरेख करने वालों ने लकड़ियों को बिजली के ट्रांसफॉर्मर से सटाकर जमा दिया है। इस कारण हादसे की आशंका बनी रहती है, क्योंकि पंच लकड़ी ले जाने की परंपरा के चलते लोग खुद ही लकड़ी उठाकर चिता तक ले जाते हैं।
मूसाखेड़ी मुक्तिधाम
यहां के हालात ही निराले हैं...। रहवासी अपने पशुओं को चिता जलाने के स्थान पर बांध देते हैं। ज्ञात रहे कि सारे मुक्तिधामों की देखरेख की जिम्मेदारी नगर निगम की है। इसके बावजूद हालात बिगड़ते जा रहे हैं और गैरजिम्मेदार अफसर इस ओर झांकते तक नहीं।
संवारेंगे मुक्तिधाम
मुक्तिधाम को संवारने के लिए रणनीति तैयार कर रहे हैं। इसीलिए एक-एक स्थान की रिपोर्ट के आधार पर योजना बनाई है। इसमें वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत कराकर काम शुरू कर दिया जाएगा। - अशोक राठौर, सिटी इंजीनियर, नगर निगम