रफी मोहम्मद शेख इंदौर। एक ओर सातवां वेतनमान लागू करने की तैयारी की जा रही है तो वहीं दूसरी ओर प्रदेशभर के 445 गवर्नमेंट कॉलेजों में कार्यरत करीब 5000 प्रोफेसर्स को छठे वेतनमान के एरियर का पूरा भुगतान नहीं हो पाया है। उक्त भुगतान यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन द्वारा किया जाना है और दो किस्त दी जा चुकी है, लेकिन शासन 110 करोड़ रुपए की तीसरी किस्त का यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट ही भेजना भूल गया जिसके चलते यह स्थिति बनी है। पिछले साल दूसरी किस्त के समय भी यही समस्या आई थी, जिसके बाद प्रोफेसर्स को आंदोलन करना पड़ा था।
उल्लेखनीय है कि प्रदेशभर के गवर्नमेंट कॉलेजों में कार्यरत असिस्टेंट प्रोफेसर्स, एसोसिएट प्रोफेसर्स और प्रोफेसर्स को प्रदेश सरकार ने 1 अप्रैल 2010 में छठा वेतनमान देने की घोषणा की थी। यह वेतनमान केंद्र सरकार ने जनवरी 2006 से लागू किया था। अप्रैल का वेतन इन्हें छठे वेतनमान के हिसाब से मिल गया था। सरकार को जनवरी 2006 से लेकर मार्च 2011 के पांचवें और छठे वेतनमान के अंतर में एरियर देना था। तब सरकार ने इन्हें यह एरियर तीन किस्तों में देने का वादा किया था।
यूजीसी देता है ग्रांट
उच्च शिक्षा विभाग के गवर्नमेंट कॉलेजों में नियम है कि जब भी कोई नया वेतनमान लागू होता है तो यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन पहले पांच सालों का वेतन अपनी तरफ से ग्रांट के रूप में देती है। प्रदेश शासन को भी यह एरियर तीन किस्तों में यूजीसी से लेना था। यूजीसी के नियमानुसार जब ग्रांट की पहली किस्त भेजी जाती है तो दूसरी तभी मिलती है, जब शासन उन्हें पहली किस्त के भुगतान और उपयोग का यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट भेज देता है। प्रोफेसर्स के मामले में शासन दो किस्त का भुगतान कर चुका है, लेकिन जानकारी के अनुसार तीसरी किस्त देने के यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट यूजीसी को भेजना ही भूल गया। इस कारण तीसरी किस्त का भुगतान नहीं हुआ है।
झूठा साबित हुआ वादा
शासन ने पहले यह किस्तें छह-छह महीने में देना तय किया था, लेकिन चार साल बाद भी पूरा भुगतान नहीं हो पाया है। पहली किस्त दिसंबर 2010 में मिलना थी, लेकिन सरकार ने 29 महीनों के बाद जून 2013 में भुगतान किया। इसके बाद छह महीने में दूसरी किस्त का वादा एक बार फिर झूठा साबित हुआ। दिसंबर 2013 में मिलने वाली दूसरी किस्त के लिए प्रोफेसर्स को फिर से दो साल से ज्यादा तक सूचना ही नहीं दी गई। तब भी पहली किस्त का यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट भेजने में लेटलतीफी के चलते दूसरी किस्त नहीं आई थी।
बिना आंदोलन नहीं मिला पैसा
प्रोफेसर्स ने छठा वेतनमान लागू करने के लिए आंदोलन किया तो एरियर की पहली किस्त प्राप्त करने के लिए भी एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा। दो साल बाद यह मिली थी और कॉलेज बंद होने की स्थिति बनी थी। दूसरी किस्त के लिए प्रोफेसर्स ने प्रदेशभर में आंदोलन किया तो उच्च शिक्षामंत्री ने इसमें हस्तक्षेप किया। तब भी यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट की समस्या आई थी जिससे उच्च शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों को दिल्ली तक दौड़ लगाना पड़ी थी। इसके बाद सरकार ने यह राशि देने की बात कही थी। तब तीसरी किस्त तुरंत देने की बात कही गई थी, लेकिन विडंबना है कि इसके लिए भी एक बार फिर प्रोफेसर्स आंदोलनरत हैं।
बाकी को दिया भुगतान
सरकार ने छह-छह महीने में हमें एरियर की तीन किस्त देने का वादा किया था। अप्रैल 2010 में वेतन लागू होने के बाद इसे 2011 तक मिल जाना चाहिए था, लेकिन छह साल बाद भी नहीं दिया। बाकी विभागों को यह भुगतान कर दिया है।
- डॉ. अनूप व्यास, प्रांताध्यक्ष,
शासकीय प्राध्यापक संघ