मुनीष शर्मा इंदौर। स्कीम-140 के प्लॉटधारक परेशान हैं। उनके साथ समस्या है कि क्षेत्र में नर्मदा लाइन या पानी का अन्य कोई जलस्रोत नहीं है। यदि वे बोरिंग कराना चाहते हैं तो कलेक्टर की रोक आड़े आती है और नगर निगम नर्मदा का पानी देने को तैयार नहीं है। ऐसे में यदि प्लॉट का कब्जा ले लिया और छह साल में मकान नहीं बना पाए तो एक हजार रुपए रोज का जुर्माना इंदौर विकास प्राधिकरण वसूलेगा। कॉलोनी के पास जो तालाब है वहां भी जिला कोर्ट बन रही है, जिससे परेशानी बढ़ना ही है।
उल्लेखनीय है कि स्कीम-140 में प्राधिकरण ने करीब तीन हजार प्लॉट विकसित किए हैं। इसमें उसका हाईराइज प्रोजेक्ट भी है जिसके अधिकांश फ्लैट्स, दुकानें व आॅफिस बिक चुके हैं। हाईराइज में 200 से ज्यादा फ्लैट्स हैं, जिनमें कुछ लोग रह रहे हैं। हाईराइज पानी के लिए छह बोरिंगों पर निर्भर है, जिनमें से तीन तो गर्मी में सूख गए थे। टैंकर से पानी डलवाकर काम चलाना पड़ा। यह स्थिति तो तब है जब मात्र 35 परिवार ही यहां रहने आए हैं। दुकानें व आॅफिस तो अभी खुले नहीं हैं। इस साल के अंत तक आधा हाईराइज भराने की बात कही जा रही है, जिसमें पासपोर्ट कार्यालय खुलने से लेकर फ्लैट मालिक तक रहने आने की बात कर रहे हैं। ऐसी ही कुछ स्थिति प्लॉटधारकों की है। उन्हें प्लॉट आवंटित करके पजेशन भी दे दिया, लेकिन नर्मदा लाइन या अन्य किसी जलस्रोत से पानी मुहैया कराने में प्राधिकरण व नगर निगम असमर्थ हैं। मकान निर्माण में पानी महत्वपूर्ण है। इसके बिना निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता। बोरिंग करवाने पर धारा-144 के तहत कलेक्टर द्वारा कार्रवाई की जाती है, इस कारण कई लोग मकान बनाने से हिचकिचा रहे हैं। प्राधिकरण व निगम अधिकारियों से लोग पूछते हैं तो यही कहा जाता है कि जब नर्मदा से कनेक्शन जुड़ेगा तब ही पानी मिल पाएगा। समस्या यह है कि मकान नहीं बनाने पर सरकार दंड भी देती है। 2013 के बाद जिसे प्लॉट का कब्जा मिला है, उसे छह साल में मकान बनाना है अन्यथा एक हजार रुपए प्रतिदिन के आधार पर दंड देना होगा। 600 व 800 स्क्वेयर फीट के प्लॉटधारकों को 500 रुपए प्रतिदिन के आधार पर राशि जमा कराना होगी। 2013 के पहले के प्लॉटधारकों को सालाना एक हजार रुपए का दंड देना पड़ेगा जिसका निर्णय कुछ समय पहले ही बोर्ड ने लिया है।
तालाब के लिए रखा था दो करोड़ का बजट
पीपल्याहाना तालाब के लिए इंदौर विकास प्राधिकरण ने 2008-09 में करीब दो करोड़ रुपए का बजट रखा था, लेकिन जब उसे पता चला कि इस पर जिला कोर्ट बनना है तो उसने हाथ खींच लिए। तालाब का सौंदर्यीकरण करने का कारण स्कीम में पानी सप्लाय योग्य बनाना था। यदि सप्लाय नहीं भी किया जा सकता तब भी यह तालाब काम का रहता, क्योंकि इससे क्षेत्र का भू-जलस्तर ठीक रहता। अब तालाब समाप्त होने से प्राधिकरण की इस स्कीम को और ज्यादा नुकसान होगा।
नर्मदा लाइन के साथ शुरू करें काम
आमतौर पर देखा गया है कि प्राधिकरण की हर कॉलोनी में नर्मदा लाइन आती है। इससे पहले वह पानी की टंकी व लाइनें डालने का काम कर चुका होता है। स्कीम-136 में भी लोगों को यही परेशानी आती है, जिसमें टैंकर खरीदकर उन्हें काम करना पड़ता है। स्कीम-94 भी एक दशक पहले विकसित हो गई थी, लेकिन नर्मदा की लाइन चार साल पहले ही मिल पाई। इससे साफ है कि टंकी व पानी की लाइनें जर्जर होने लगती हैं या सड़ जाती हैं। जब नर्मदा कनेक्शन मिलता है तो शुरुआत में कुछ दिन लोगों को गंदा पानी मिलता है। स्कीम-140 में भी प्राधिकरण ने टंकी बनाने के साथ लाइनें डाल दी हैं।
हम बोर्ड में प्रस्ताव रखेंगे
स्कीम-140 में नर्मदा कनेक्शन के लिए हमने छह माह पहले 18 करोड़ रुपए नगर निगम में जमा करा दिए हैं। यह कॉलोनी भी हमने निगम को सौंप दी है, जिसका उसे ध्यान रखना है। प्लॉट आवंटन की स्थिति तक हम नर्मदा का कनेक्शन ले लें, यह व्यवस्था जरूर होना चाहिए जिसका प्रस्ताव हम बोर्ड में रखेंगे।
-ललित पोरवाल
उपाध्यक्ष, इंदौर विकास प्राधिकरण