विनोद शर्मा इंदौर। हम तो डूबे हैं, तुम्हें भी ले डूबेंगे...। यह स्थिति कैलाश गर्ग की नारायण निर्यात (इंडिया) लिमिटेड को सवा अरब का कर्ज देकर बैठी पंजाब नेशनल बैंक, यूको बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक की है। इन बैंकों ने कर्ज की रिकवरी के लिए एवलांचा रियलिटी, अंबिका सॉल्वेक्स और दौलतवाला एक्जिम की जिस जमीन की आॅक्शन विज्ञप्ति जारी की है, उसमें से आठ एकड़ जमीन 2011-12 में ही 40 से ज्यादा लोगों के नाम चढ़ चुकी है।
अगस्त 2010 में बैंक ने नायता मुंडला स्थित एवलांचा रियलिटी, अंबिका सॉल्वेक्स और दौलतवाला एक्जिम को गिरवी रखकर नारायण निर्यात के विस्तार के लिए 110.50 करोड़ का लोन दिया था। रिकवरी न होने के बाद 3 मई 2016 को तीनों बैंकों ने तीनों कंपनियों की 31.66 एकड़ जमीन की संयुक्त रूप से विज्ञप्ति जारी कर दी। इस विज्ञप्ति में जिन खसरों का जिक्र किया गया है, उनमें से आधा दर्जन खसरों की 3.217 हेक्टेयर (7 एकड़, 41355 वर्गफीट) जमीन पहले ही दूसरों के नाम हो चुकी है। जिसकी गाइडलाइन कीमत 27.70 करोड़ है।
प्रशासन ने दी जमीन
कॉलोनी की जमीन का नामांतरण इंदौर के प्र.क्र.352/अ-6/2010-2011 की सुनवाई के बाद न्यायालय भूमि परिवर्तन शाखा कलेक्टोरेट द्वारा 9 फरवरी 2011 को दिए आदेश के बाद हुआ है। जमीन पाने वालों में कुछ तो वे प्लॉट होल्डर हैं, जिन्हें रीतेश उर्फ चंपू अजमेरा ने प्लॉट बेचे थे। इसके अलावा कुछ बड़ी जमीनें हैं, जिनके सौदे मनमाने तरीके से हुए थे।
संकट में सौदा
जमीन का पजेशन 2013 में बैंकों ने लिया था। तीन वर्षों में बैंकें तीन बार आॅक्शन विज्ञप्ति जारी कर चुकी है। तीसरी विज्ञप्ति 3 मई 2016 को जारी हुई। इसमें जितनी जमीन का जिक्र है, मौके पर उतनी है ही नहीं। इसलिए बैंकों को पहले उन खसरों की जानकारी निकालना होगी जिन्हें वह बेचने का अधिकार रखती है और नियमानुसार तब जाकर चौथी विज्ञप्ति जारी कर सकती है अन्यथा बैंकें 31.66 एकड़ की जगह 23.66 एकड़ जमीन बेचकर खरीदार को ठगेगी।
अधिकारी आंख पर पट्टी बांधे बैठे रहे
नगर निगम में जब भी किसी कॉलोनी के प्लॉट धरोहर रखे जाते हैं तो उन प्लॉटों का रजिस्टर्ड एग्रीमेंट कराया जाता है, लेकिन यहां जिन जमीनों को गिरवी रखकर बैंकों ने 110.50 करोड़ का लोन दिया, उसका कोई रजिस्टर्ड एग्रीमेंट नहीं कराया गया। न ही मॉर्टगेज एग्रीमेंट के साथ उक्त खसरों की जानकारी जिला पंजीयक को दी गई। दी जाती तो भू-माफिया जमीन नहीं बेच पाते। राजस्व विभाग को खसरों की जानकारी होती तो नामांतरण नहीं होता।