रफी मोहम्मद शेख इंदौर। प्रदेश के मैनेजमेंट कॉलेजों में एडमिशन की प्रक्रिया शनिवार से शुरू हो जाएगी। इस बार एआईसीटीई के अनिवार्य कॉमन मैनेजमेंट एडमिशन टेस्ट (सी-मेट) की रैंक के साथ ही सीधे एडमिशन देने की तैयारी कर ली गई है। मैनेजमेंट कॉलेजों की खाली सीटों के दबाव के चलते यह गणित (फॉर्म्यूला) बनाया गया है। इससे सी-मेट का वेटेज कम हो गया है, जबकि दूसरे प्रदेशों और अन्य इंस्टिट्यूट में प्रवेश के लिए सीमेट की रैंक जरूरी रहती है।
तकनीकी शिक्षा संचालनालय (डीटीई) ने इस बार ऐसे विद्यार्थियों को भी दाखिला देने का कार्यक्रम घोषित कर दिया है, जो सी-मेट में शामिल नहीं हुए थे। उसने सी-मेट और बिना सी-मेट वाले विद्यार्थियों के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया एक साथ आरंभ की है। डीटीई के मुताबिक, इंस्टिट्यूट अपने स्तर पर विद्यार्थियों का टेस्ट लेगा और उसे एडमिशन के लिए पात्र मानेगा। वास्तव में यह सब मात्र औपचारिकता ही होगा और ऐसे विद्यार्थियों को एडमिशन मिल ही जाएगा।
कॉलेजों की खराब स्थिति
कुछ सालों से मैनेजमेंट कॉलेजों को सीटें भरने में पसीना आ रहा है। इसका प्रमुख कारण सी-मेट की रैंक है। इसके साथ ही पूरा सिस्टम आॅनलाइन होने से कॉलेज इन विद्यार्थियों को अपने तरीके से एडमिशन नहीं दे पाते। नई व्यवस्था से कॉलेजों को प्रवेश प्रक्रिया में छूट मिल जाएगी। हालांकि इस कवायद के बाद भी कॉलेजों में एडमिशन पूरे हो पाएंगे, इस पर संशय ही है।
कॉम्पिटिशन से बाहर
डीटीई की कॉलेजों की फायदा देने की यह नीति न केवल सी-मेट के महत्व को कम कर रही है बल्कि विद्यार्थियों को कॉम्पिटिशन से भी बाहर कर रही है। इस पहल से भविष्य में सीमेट देने वाले विद्यार्थियों की संख्या कम हो सकती है। हालांकि, प्रदेश के बाहर अन्य स्थानों पर अभी भी सीमेट के अंकों के आधार पर ही एडमिशन दिया जाता है। इससे इन विद्यार्थियों के मौके प्रदेश के बाहर कम होते चले जाएंगे।
पहले मिलते थे दो मौके, इस बार से एक ही बार
एआईसीटीई ने प्रदेश में जनवरी में सीमेट आयोजित की थी, इसका रिजल्ट भी जनवरी में ही घोषित कर दिया गया था। पहले यह टेस्ट साल में दो बार होता था। इस बार से इसे एक ही बार कर दिया गया है। डीटीई पांच महीने से एडमिशन की प्रक्रिया आरंभ ही नहीं कर पाया, जिससे कॉलेजों में एडमिशन की स्थिति खराब होने की पूरी उम्मीद थी।