अनूप सोनी इंदौर। शहर में तीन हजार दवाई की दुकानें हैं। इनकी जांच के लिए खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग में मात्र चार ड्रग इंस्पेक्टर हैं, जिससे सभी दुकानों की जांच नहीं हो पाती। कई मेडिकल स्टोर संचालक नियमोें को ताक पर रख दवाइयां बेच रहे हैं। इन पर लगाम कसने के लिए सात ड्रग इंस्पक्टर होना चाहिए।
गौरतलब है कि विभाग की टीम ने कुछ मेडिकल स्टोर पर फेंसीड्रिल और कोरेक्स कफ सीरप गलत तरीके से बेचने के मामले में लाइसेंस सस्पेंड करने की कार्रवाई की थी। इसके बाद चारों इंस्पेक्टर ने इक्का-दुक्का कार्रवाई की हैं। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि यह ड्रग इंस्पेक्टर किस तरह अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। शहर में करीब 2500 दवाइयों की दुकानें हैं, वहीं करीब 500 होलसेल दुकानें हैं। इन सभी पर विभिन्न तरह की जांच करने का जिम्मा ड्रग इंस्पेक्टर का रहता है। सूत्रों के मुताबिक जब दवा बाजार में दुकानों की जांच करने की बात आती है, तो ड्रग इंस्पेक्टर एक दुकान पर बैठकर सभी दुकानों रिकॉर्ड बुलवा लेते हैं। यहां सिर्फ रिकॉर्ड देखकर जांच की खानापूर्ति कर ली जाती है।
लाइसेंसधारक को बैठना जरूरी
नियम के मुताबिक जिसके नाम पर दवा दुकान का लाइसेंस होगा, उसे दुकान पर बैठना जरूरी है, वह सहयोग के तौर पर कर्मचारी रख सकता है। इस नियम का सैकड़ों दुकानों पर पालन नहीं हो रहा है।
सात ड्रग इंस्पेक्टर होना चाहिए
जानकारी के मुताबिक इंदौर में कुल सात ड्रग इंस्पेक्टर होना चाहिए। इसमें दो सीनियर और चार जूनियर होना चाहिए। वर्तमान में जो चार ड्रग इंस्पेक्टर हैं, उनमें से कोई भी सीनियर नहीं है।
नहीं रखते रिकॉर्ड
सरकार ने अल्प्राजोलम (ड्रग का नाम) फेंसीड्रिल, कोरेक्स आदि दवाइयों के संबंध में तय कर रखा है कि उसे सिर्फ डॉक्टर के लिखे पर्चे पर ही मेडिकल स्टोर संचालक बेच सकता है। मेडिकल स्टोर वाले को रिकॉर्ड भी रखना होता है, लेकिन शहर के कई मेडिकल स्टोर संचालक रिकॉर्ड नहीं रहते हैं।