गौरीशंकर दुबे इंदौर। बॉक्सर विजेंदर सिंह और एमसी मैरीकॉम के लंदन ओलिंपिक में पदक जीतने के बाद देश में इस नाकतोड़ू खेल का माहौल बना है। इंदौर ने भी बॉक्सिंग में नामो निशानी की राह पकड़ी है।
रामबली नगर (संगम नगर) की खोली में रहने वाले 14 साल के अक्षत तिवारी ने बीते दिनों 30 किलोग्राम समूह में स्वर्ण पदक जीता, तो भारतीय थलसेना की पुणे स्थित बॉक्सिंग एकेडमी ने उन्हें गोद ले लिया। अक्षत 1 जुलाई को एकेडमी में प्रवेश लेंगे। वहां इन्हें जाने-माने बॉक्सर के साथ सीखने का मौका मिलेगा। पढ़ाई और अन्य जरूरतें सरकार पूरी करेगी। साढ़े सत्रह साल के होने पर इन्हें सेना में नौकरी भी मिल जाएगी। पिता श्याम पीथमपुर की फैक्टरी में सात हजार रुपए महीने की नौकरी करते हैं। मां उर्मिला तिवारी को कभी कभार काज-बटन का काम मिल जाता है। जिस बच्चे को पीने को पाव भर दूध और खाने को एक अंडा नसीब नहीं होता, उसने बलशालियों के खेल में पानी पीकर जौहर दिखाए हैं।
800 मीटर दौड़ 2.50 सेकंड में पूरी...
माइक टायसन और विजेंदर सिंह के दीवाने अक्षत ने जब इस साल दिल्ली में नेशनल मेडल जीता, तो सेना ने उन्हें पुणे एकेडमी में ट्रायल्स के लिए बुलाया। संयोग की बात है फाइनल में उन्होंने दिल्ली के टायसन नामक बॉक्सर को 2-1 से हराया। वहां उनकी सात बाउट कराईं, जो वे जीत गए। 800 मीटर दौड़ लगवाई, जिसे 2.50 सेंकड में पूरा कर लिया। तकनीकी तौर पर अच्छे रहे, जिसके परिणाम स्वरूप 21 जून को सेना एकेडमी में बुलावे का पत्र आया। बड़ी बहन आयुषी और अमीषा की जिंदगी बनाने और माता पिता को आरामदेह जिंदगी देने का सपना देख रहा, यह बच्चा इंदौर से प्रण लेकर जाकर रहा है कि सीमा भंडारी, नरेंद्र हिरवानी, रिंकू आचार्य और मीति अगाशे युग के इंदौर युग को याद दिलाने की पुरजोर कोशिश करेगा।
पहली तनख्वाह कोच साहब को
इंदौर जिला बॉक्सिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष आइरन गेम गुरु मोहनसिंह राठौर के प्रयासों से नेहरू स्टेडियम में बॉक्सिंग एरिना बना है। एनआईएस कोच नर्मदा कश्यप 15 साल से साधना कर रहे हैं, जिसका परिणाम अक्षत जैसी प्रतिभा है। अक्षत ने बताया कि हैसियत नहीं कि मैं घर से नेहरू स्टेडियम तक लोकसेवक वाहन में आ सकूं। कोच साहब दो साल से घर से सुबह पांच बजे बाइक पर स्टेडियम लाते हैं। सुबह 9 बजे तक रनिंग, पेडिंग, बैग, पंच, शेडो, स्कूल बॉक्सिंग, टचिंग, टप्पे, स्प्रिंट, स्टेÑचिंग का अभ्यास कराते हैं। फिर घर छोड़ते हैं। शाम 3.30 बजे फिर स्टेडियम लाते हैं और रात नौ बजे तक अभ्यास दोहराया जाता है। कभी मम्मी पांच-दस रुपए देती हैं, तो जेब चनों से भर जाती है। कभी-कभी कोच साहब सांची पॉइंट पर दूध पिलवा देते हैं। जब मैं बारिश या ठंड में नहीं आता था, तो लेने आते थे। अक्षत ने कहा कि जब मैं साढ़े सत्रह साल की उम्र में सेना में नौकरी पा लूंगा, तो पहली तनख्वाह कोच साहब को दूंगा। सपना ओलिंपिक खेलने का है। उन्होंने अपने पैसों से मेरी जिंदगी का बेशकीमती तोहफा बॉक्सिंग ग्लब्स दिए हैं।