अनूप सोनी इंदौर। जब आप दवाइयां खरीदने जाएं और कोई मेडिकल संचालक आपको दवाई की एमआरपी पर 10 से 50 प्रतिशत छूट दे तो समझिए इसमें आपका कम उसका ज्यादा फायदा है, क्योंकि इतना डिस्काउंट देने के बाद भी वह दोगुना से दस गुना तक फायदे में रहेगा। ऐसा ही गोरखधंधा शहर में अधिकांश मेडिकल स्टोर पर चल रहा है। मेडिकल स्टोरों पर सैकड़ों की संख्या में इस तरह की दवाइयां बिक रही है, जिनमें मेडिकल वाला ग्राहक को एमआरपी पर पचास प्रतिशत भी डिस्काउंट दे दे तो भी मेडिकल वालों को बड़ा फायदा होगा। लेकिन बहुत कम ऐसा करते है।
जनहित याचिका भी विचाराधीन इसे लेकर हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका विचाराधीन है। याचिकाकर्ता अक्षत पहाड़िया ने याचिका में कहा है कि होलसेलर और रिटेलर के बीच का अधिकतम मार्जिन 16 फीसदी होना चाहिए, जबकि कई दवाइयों पर रिटेलर को 300 से 700 फीसदी फायदा हो रहा है। याचिका में एक दवाई की भी जानकारी दी है जो रिटेलर को 11 रुपए में मिलती है, वहीं एमआरपी 65 से 70 रुपए है। कीमत में इस तरह की बढ़ोतरी से शासन और बीमा कंपनी को भी नुकसान हो रहा है।
ऐसे होता है ग्राहकों के साथ धोखा
डॉक्टर द्वारा जब भी दवाइयां लिखी जाती हैं, वह अधिकांश लोगों को समझ नहीं आती है। व्यक्ति दवाई लिखे पर्चे को लेकर मेडिकल स्टोर पर पहुंचता है, फिर मेडिकल वाला ही वह सब दवाइयां देता है। ऐसे में यदि कोई मेडिकल वाला दवाई का विकल्प दे तो कई लोगों को इसका पता भी नहीं चलता है। ऐसे विकल्प में ही मेडिकल वालों की तगड़ी कमाई होती है।
ऐसे होता है खरीदी और एमआरपी में खेल
’ कफड्रील- सिरप खांसी के इलाज में उपयोग होती है। यह इन्टॉस कंपनी का सिरप है। इसकी एमआरपी 68 रुपए है, जबकि यह मेडिकल स्टोर वालों को स्टाकिस्ट से मात्र 12 रुपए में मिल जाती है।
’ सिपकॉल 500 - यह सिप्ला कंपनी की टेबलेट है। इसमें कैल्शियम और विटामिन डी-3 है। इसकी शहर में काफी अधिक खपत है। इस टेबलेट की स्ट्रिप पर 69 रुपए 50 पैसे एमआरपी लिखी है, जबकि यह मेडिकल स्टोर वालों को आठ से दस रुपए में मिलती है।
’ पेंटोसेक- डी - यह भी सिप्ला कंपनी की दवाई है। यह घबराहट और एसिडिटी ठीक करने के काम आती है। इसकी एमआरपी 103 रुपए 50 पैसे है। यह दवाई मेडिकल स्टोर वालों को मात्र 10 रुपए 50 पैसे में मिलती है यानी सीधे-सीधे दस गुना ज्यादा एमआरपी इसमें है।
’ नाईसीप- सिप्ला कंपनी की दवाई है। यह दर्द, बुखार आदि के इलाज में काम आती है। इसकी एमआरपी 27 रुपए 50 पैसे है, जबकि यह दवाई मात्र 6-7 रुपए में मेडिकल स्टोर वालों को मिलती है।
’ रेबी डीएम - यह दवाई एलिक्सीर लाइफ केयर कंपनी बनाती है। यह एसिडिटी दूर करने के उपयोग में लाई जाती है। यह आठ से दस रुपए में मेडिकल वालों को मिलती है, जबकि इस पर 58 रुपए एमआरपी है।
दवाइयों की कीमत तय करने का काम नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइजिंग अथॉरिटी का है। खाद्य एवं औषधि प्रशासन इस मामले में कुछ भी नहीं कर सकता है।
- धर्मेश भिंगोनिया, ड्रग इंस्पेक्टर, खाद्य एवं औषधि प्रशासन
कुछ दवाइयों में बहुत अधिक मार्जिन रहता है, यह बात सही है, लेकिन दवाइयों की कीमत तय करने का काम हमारा नहीं, सेंट्रल गवर्नमेंंट का है।
- विनय बाकलीवाल, अध्यक्ष, दवा बाजार व्यापारी एसोसिएशन, इंदौर