संतोष शितोले इंदौर। स्कूल चलें हम अभियान के तहत समग्र पोर्टल को अपडेट करने के सर्वे में जिले को बदनामी झेलना पड़ रही है। हालांकि ग्रामीण इलाकों में यह अभियान पूर्णता की ओर है, जबकि शहरी क्षेत्र में दस फीसदी कार्य भी पूरा नहीं हो सका। इस पर नाराज प्रशासन ने सर्वे कार्य से नदारद शिक्षकों पर कार्रवाई के लिए उनकी सूची बुलाई है, लेकिन ज्यादातर संकुल प्राचार्यों द्वारा जो सूची वरिष्ठ कार्यालय भेजी गई, उसमें विधायकों, निर्वाचन एवं अन्य कार्यालयों में अटैच शिक्षकों के नाम का उल्लेख ही नहीं है। उधर, उनके दल प्रभारी के पास सतत गैरहाजिरी लग रही है। मामले की बारीकी से जांच की जाए तो संकुल प्राचार्यों की पोलपट्टी उजागर हो सकती है।
राज्य शिक्षा केंद्र (राशिकें) ने इस अभियान के प्रथम चरण को 30 अप्रैल तक पूर्ण करने के निर्देश दिए थे। राशिकें का यह परिपत्र एजुकेशन पोर्टल पर अपलोड होते ही शिक्षकों ने इसका विरोध शुरू कर दिया था, लेकिन बाद में वे यह कार्य करने के लिए तैयार हो गए थे। यह विरोध मीडिया में सुर्खियां बना रहा, मगर जिला शिक्षा केंद्र और विकासखंड शिक्षा केंद्र की एक बड़ी चूक ने शहरी क्षेत्र में इस अभियान को काफी पीछे धकेल दिया है। इन कार्यालयों ने शिक्षकों को 20 मई के बाद सर्वे करने का आदेश जारी कर 30 मई तक पूर्ण करने की हिदायत भी दी, जबकि अभियान के प्रथम चरण की तारीख निकल चुकी थी। इसके बाद भी आदेश तो जारी कर दिए, लेकिन शिक्षकों को सर्वे सामग्री 28 से 30 मई के बीच प्रदान की गई।
लापरवाही का सिलसिला चला
इस अभियान में शाला प्रमुखों को सर्वे दल का प्रभारी बनाकर उन्हें सर्वे के प्रपत्रों के ढेर से अपने वार्ड के प्रपत्र छांटने का काम सौंप दिया गया। इसमें शाला प्रमुखों को तीन से चार दिन लग गए। उनके दल में शामिल सर्वेकर्ता को यह सामग्री सौंपना थी, लेकिन 50 फीसदी से अधिक शिक्षकों, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं एवं आशा कार्यकर्ताओं ने सर्वे शुरू नहीं किया। वहीं जो शुरू कर चुके, उन्हें थमाए गए सर्वे प्रपत्रों में पता-ठिकाना ही नहीं है। इसके चलते वे भर गर्मी में दिनभर घूमकर खाली हाथ लौट रहे हैं। बताते हैं पिछले दिनों राजधानी से हुई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान स्थानीय अधिकारियों को जमकर फटकार सुनना पड़ी थी। इसके बाद अब 15 जून तक कार्य पूरा करने को कहा गया है।