संतोष शितोले इंदौर। एक ओर दिल्ली में पांच निजी अस्पतालों पर गरीबों का मुफ्त में इलाज नहीं करने पर 600 करोड़ रुपए का जुर्माना किया गया है, वहीं दूसरी ओर इंदौर का सबसे बड़ा निजी अस्पताल पिछले 13 वर्षों से इस मामले में बचता आ रहा है।
दरअसल, बॉम्बे हॉस्पिटल और इंदौर विकास प्राधिकरण के बीच दो दशक पहले हुए लीज डीड करारनामे में एक अनिवार्य शर्त का उल्लंघन किया जा रहा है। इसके तहत आईडीडीए ने अस्पताल को उक्त जमीन लोक कल्याणकारी उपयोग के तहत एक रुपए प्रतिवर्ष के लीज रेंट पर दी थी। शर्तों में खास तौर पर गरीब वर्गों के लिए 15 प्रतिशत नि:शुल्क इलाज करना था। विडम्बना यह कि अस्पताल शुरू होकर 13 साल हो गए हैं लेकिन इन सालों में कितने लोगों का इलाज नि:शुल्क हुआ इसका कोई रिकॉर्ड आईडीए के पास नहीं है। जबकि इस शर्त का उल्लंघन करने पर लीज समाप्ति का प्रावधान भी है।
हॉस्पिटल ने रिकॉर्ड नहीं भेजा
उधर, आईडीए की ओर से जवाब दिया गया कि अस्पताल की ओर से कभी नि:शुल्क इलाज के मामले में कभी जानकारी ही नहीं दी गई। 13 सालों में आईडीए के रिकॉर्ड में अब तक कितने लोगों का नि:शुल्क इलाज हुआ, इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। अहम सवाल यह कि 30 साल के इस करार में अस्पताल बनने में आठ साल (1995-2003) लग गए। फिर 2003 में शुरू होकर अब 13 साल हो चुके हैं। ऐसे में अगर अब अगर आईडीए अस्पताल से जानकारी मंगाता भी है तो वह कितनी विश्वसनीय होगी, यह बात सवालिया है।
टैक्स में भी राहत
उधर, समझा जाए तो 15 प्रतिशत नि:शुल्क इलाज के नाम अस्पताल को कई प्रकार के टैक्स में राहत मिलती है। ऐसे में अस्पताल को तो फायदा मिल ही रहा है लेकिन कमजोर वर्ग के लोगों को कितना मिल रहा है, इसका जवाब आईडीए के पास नहीं है। अस्पताल प्रबंधन का दावा है कि वह शर्तों का पालन कर रहा है। बहरहाल, दोनों से जानकारी नहीं मिलने पर कार्यकर्ता ने इस संबंध में मुख्य सचिव को शिकायत की है। शिकायत में 1995 लीज डीड के प्रमाणित दस्तावेज की प्रतियां भी हैं। इसमें शासन को किस तरह से आर्थिक नुकसान हुआ, इसकी भी जानकारी है।
13 साल से आईडीए को कोई रिपोर्ट नहीं भेजी
करारनामे का सच
1995 में (स्कीम-94-95) पर दी थी 31,785 वर्गमीटर जमीन।
आईडीए ने 100 रुपए प्रति वर्ग मीटर प्रीमियम तय की थी इसके लिए।
लीज रेंट प्रति वर्ष एक रुपए के मान से तय किया गया था।
यह लीज 2 प्रतिशत वार्षिक लीज रेंट के आधार पर 30 साल के लिए दी थी।
इस तरह 31.78 लाख रुपए के भुगतान पर उक्त जमीन लीज पर दे दी गई।
ये थीं प्रमुख शर्तें
अस्पताल कम से कम 500 बेड वाला हो।
कुल मरीजों का कम से कम 15 प्रतिशत (गरीबों) का नि:शुल्क इलाज किया जाए।
शुरू से ही की ढीलपोल : जानकारी के मुताबिक अस्पताल शुरू होने के बाद से प्रबंधन ने नि:शुल्क इलाज में ढीलपोल की। रिसेप्शन काउंटर और ओपीडी में इस संबंध में कोई नोटिस नहीं लगाया गया, जो अनिवार्य था। इससे कई जरूरतमंद मुफ्त इलाज से वंचित रह गए। मामले में जब एक आरटीआई कार्यकर्ता ने जानकारी मांगी, तो अस्पताल प्रबंधन ने कहा कि वह जानकारी देने के लिए बाध्य नहीं है।
रिकॉर्ड निकालने के साथ परीक्षण होगा
आवंटन का मामला काफी पुराना है। शर्तों के तहत कमजोर वर्ग के लोगों के लिए 15 प्रतिशत नि:शुल्क इलाज का बिंदु है। मामले में पूरा रिकॉर्ड निकालने तथा परीक्षण के बाद ही कुछ कहा जा सकता है। - शंकर लालवानी अध्यक्ष, आईडीए
शासन मांगेगा तो दे देंगे जानकारी
नियम-शर्तों के तहत अस्पताल 500 नहीं 300 बेड का होना चाहिए। अभी 270 बेड हैं। 2003 में अस्पताल का शुभारंभ हुआ था तो 100 बेड थे। प्रबंधन द्वारा शुरू से ही कमजोर लोगों के लिए 15 प्रतिशत इलाज मुफ्त में कराया जाता है। अस्पताल के पास पूरा रिकॉर्ड है। अगर शासन (आईडीए) जानकारी मांगता है तो उपलब्ध करा दी जाएगी।
- राहुल पाराशर, जनरल मैनेजर