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हुकमचंद मिल की 50 करोड़ की दुकानों पर किराएदारों का कब्जा

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 11 2016 10:26AM | Updated Date: Jun 11 2016 10:26AM
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राजेंद्र खंडेलवाल इंदौर। हुकमचंद मिल के श्रमिकों के लिए राहतभरी खबर है कि मिल की 28 दुकानें क्लॉथ मार्केट में हैं, जिनकी कीमत करीब 50 करोड़ रुपए है। यदि ये दुकानें खाली कराकर बेची जाएं तो मिल की संपत्तियों को बेचकर आने वाले पैसों में इजाफा हो सकता है। ये दुकानें करीब 30 साल पहले मिल ने ही किराए पर दी थीं, लेकिन कुछ वर्षों तक किराया देने के बाद दुकानदारों ने उस पर कब्जा जमा लिया।

दरअसल, ये दुकानें इसलिए खरीदी गई थीं कि यहां से मिल में बने कपड़े बेचे जा सकें और ऐसा हुआ भी, लेकिन बाद में दुकानदारों ने अन्य ब्रांड का कपड़ा रखना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे मिल का प्रोडक्ट बेचना बंद कर दिया। चूंकि तत्कालीन मिल प्रबंधन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया, इसलिए दुकानदारों ने किराया देना भी बंद कर दिया। 24 दिसंबर 1991 को मिल बंद हो गई और तब से ही ये दुकानें दुकानदारों के कब्जे में हैं।

5 से 7 हजार रुपए स्क्वेयर फीट का भाव

क्लॉथ मार्केट में पांच से सात हजार रुपए स्क्वेयर फीट का भाव है। मिल की इन दुकानों की साइज एक समान नहीं, बल्कि अलग-अलग है। यदि कुल दुकानों की कीमतों का जोड़ दिया जाए तो करीब 50 करोड़ रुपए की आय हो सकती है। इन दुकानों को डीआरटी मुंबई नहीं बल्कि ओएल यानी आॅफिशियल लिक्विडेटर यूके साहू बेच सकते हैं। उनके पास दुकानों से संबंधित दस्तावेज हैं। इंटक प्रधानमंत्री हरनामसिंह धारीवाल ने इस संबंध में उन्हें पत्र लिखा है, जिसमें इन दुकानों को खाली कराकर बेचने का आग्रह किया गया है, ताकि श्रमिकों के लिए आने वाले पैसों में इजाफा हो सके।

दो-चार वर्षों तक ही दिया किराया
दुकानें लेने के बाद दुकानदारों ने दो-चार वर्षों तक ही किराया दिया और उसके बाद मिल प्रबंधन की ओर से ढिलाई देखी तो उन्होंने किराया देना बंद कर दिया। ये दुकानें एमजी रोड की ओर से क्लॉथ मार्केट में घुसने पर बांयी ओर हैं और तब मिल की ओर से इन दुकानों का हुकमचंद मार्केट बनाया गया था।

खाली कराना बड़ी चुनौती

ओएल के लिए दुकानों को बेचना बड़ी चुनौती होगी। उन्हें दुकानों को खाली करवाना होगा जो आसान काम नहीं होगा। पूर्व में आॅफिशियल लिक्विडेटर गुप्ता एक बार यहां गए थे, तब दुकानदारों ने उनसे दुर्व्यवहार की कोशिश की थी।

दुकानें बेच दें, हम खरीद लेंगे
दुकानें हुकमचंद मिल की हैं। मिल प्रबंधन दुकानें बेचने के लिए स्वतंत्र है। यदि दुकानें बेची जाती हैं तो हम खरीद लेंगे या नीलामी में जो भी खरीदे। हमें न तो मिल प्रबंधन की ओर से और किसी अन्य पक्ष की ओर से कभी किसी भी प्रकार का कोई नोटिस आज तक नहीं मिला।
-शरद गंगवाल
क्षमा टेक्सटाइल्स

दुकान पर दो पीढ़ियां गुजर गर्इं

इन दुकानों पर हमारी दो पीढ़ी बैठ चुकी है। पिताजी से सुनते थे कि ये दुकानें हुकमचंद मिल की हैं। यदि कोई कार्रवाई होती है तो हम तैयार हैं। मिल की संपत्ति बिके तो कोई दिक्कत नहीं। किराए के बारे में मैं ज्यादा कुछ नहीं जानता।
-कमलेश कटारिया
कमलेश टेक्सटाइल्स

कार्रवाई नहीं हुई तो ओएल को लिखा है

हम लगातार दुकानों को बेचने की मांग उठाते रहे हैं। बैंकों की ओर से ओएल को जो दस्तावेज सौंपे गए हैं, उनमें इन दुकानों के भी हैं, लेकिन उस पर अब तक कार्रवाई नहीं हुई है। हमने उन्हें पत्र भी लिखा है।
-हरनामसिंह धारीवाल
प्रधानमंत्री इंटक

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